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Tuesday, July 27, 2021

Bhagat Singh Biography in Hindi- वह कहानी जिसने हजारो युवाओ को देश पर कुर्बान होने के लिए प्रेरित किया-

 भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर के बंगा गांव में हुआ था। इत्तेफाक की बात यह थी कि भगत सिंह के जन्म के समय पिता के किशन सिंह व चाचा अजीत सिंह जेल से छूटकर घर आए थे , और बड़े भाई का नाम जगत सिंह होने के कारण इनका नाम भगत सिंह रखा गया।


 भगत सिंह का परिवार पीढ़ियों से स्वतंत्रता के लिए प्रयत्नरत था । दादा अर्जुन सिंह , पिता किशन सिंह व चाचा अजीत सिंह व स्वर्ण सिंह ने देश की स्वतंत्रता के लिए अनेकों प्रयास कियें व अनेंको क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल रहे ।


 स्वर्ण सिंह (भगत सिंह के चाचा) को झूठे आरोपों में फंसा कर अंग्रेजों ने जेल में डाल दिया ।
गंदा खाना व अन्य वजहों सें जेल में उन्हें तपेदिक हो गया और 23 वर्ष की आयु में 1910 ईस्वी में सरदार स्वर्ण सिंह देश के लिए शहीद हो गए।


चाचा अजीत सिंह कें क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने के कारण अंग्रेजों ने उन्हें अपने षडयंत्र में फंसाने के लिए योजना बनाई परंतु इस योजना के सफल होने से पहले ही सरदार अजीतसिंह देश को छोड़ कर चले गए ।
जब भगत सिंह ने कहा बंदूक है बो रहा हूं।


भगत सिंह की उम्र जब ढाई 3 वर्ष की थी तब खेतों में बाघ लग रहा था सरदार किशन सिंह अपने मित्र मेहता नंदकिशोर को बाग़ दिखाने लायक भगत सिंह मूवी छोड़ के खेत में जितने के रोने लगे पिता किशन सिंह ने पूछा क्या कर रहे हो भगत सिंह मंजू के बोल रहा हूं भगत सिंह का जवाब था। महज 3 वर्ष में ही भगत सिंह को या एहसास हो गया कि अंग्रेजों को भगाने के लिए बंदूकों की अति आवश्यकता है।


5 वर्ष की उम्र तक भगत सिंह पचासों किताबें पढ़ चुके थे।


भगत सिंह की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई थी , भगत सिंह अपने साथ पहने वाले बच्चों में से सबसे आगे थे ।
 जब वह चौथी कक्षा में थे तो घर में रखी अजीत सिंह ,लाला हरदयाल और सुफी अम्बा प्रसाद की लिखी छोटी-छोटी पचासों पुस्तकें पढ़ डाली थी।


युवावस्था में खाली समय में वह पुस्तकालय में जाकर पुस्तकें पढ़ा करतें थें ।
 उन्होंने फ्रांसीसी क्रांति , रूसी क्रांति को बहुत अच्छे से अध्ययन किया था। उन्हें भारतीय इतिहास में व विदेशी इतिहास के बारे में बहुत ही अच्छा ज्ञान था।


 शादी से बचकर में कानपुर भाग गए थे दादी जयकौर चाहती थी कि भगत सिंह दूल्हा बने व किशन सिंह भी यही चाहते थे ।

पिता किशन सिंह को मां की इच्छा का पालन करना था, मन्नावाला गांव का एक धनी व्यक्ति तेज सिंह मान अपनी बहन के लिए भगत सिंह को देखने आया। भगत सिंह उन्हें पसंद आ गए व सगाई की तारीख तय कर दी गई ।
सगाई के कुछ दिन पहले भगत सिंह अपने पिता के नाम खत छोड़कर कानपुर चले गए।शुरुआत में वह कानपुर के मन्नीलाल जी अवस्थी के घर पर रुके। उस वक्त कानपुर के क्रांतिकारी नेता सुरेश चंद्र भट्टाचार्य थे।
 वहीं पर भगत सिंह की मुलाकात श्री बटुकेश्वर दत्त जी से हुई।

 जब 12 वर्ष की उम्र में पैदल चलकर जलियांवाला बाग गए और शहीदों को नमन किया


 13 अप्रैल 1919 के दिन सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के विरोध में एक सभा आयोजित की गई थी। जिस पर जनरल डायर ने गोलियां चलवा दी . जिसमें सैकड़ों बेगुनाह शहीद हुए थे .
भगत सिंह स्कूल जाने के बजाय सीधा अमृतसर पहुंचे ।


 शहर में अकारण ही किसी को गोली मार दी जाती थी ऐसा डर का माहौल वहां पर स्थापित किया गया था ।
 उन्होंने शहीदों के खून से सनी हुई मिट्टी को माथे पर लगाया और उसे एक बोतल में भरकर अपने घर ले आए
उन्होंने वह शीशी अपनी बहन को दिखाई व वहां उस पर पुष्प चढ़ाए . पुष्प चढ़ाने का यह सिलसिला लंबे समय तक चलता रहा । असहयोग आंदोलन में भगत सिंह देश सेवा के लिए आंदोलन में कूद गए.

 जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन चालू किया तब यह लक्ष्य रखा गया कि आजादी 1 वर्ष के भीतर मिल जाएगी भगत सिंह खुशी से नाच-नाच कर कहा करते थे कि 1 वर्ष के भीतर आजादी आने वाली है।
 परंतु चौरी चोरा की घटना के बाद गांधी जी ने आंदोलन को वापस ले लिया क्योंकि उस घटना में 21-22 पुलिसकर्मियों को जिंदा जला दिया गया था . पुलिस ने चौरी चोरा में भीड़ पर तब तक गोलियां चलाई थी जब तक उनकी गोलियां खत्म नहीं हो गई थी।


 तब भीड़ नें पुलिसवालो को चौकी में बंद कर आग लगा दी थी । इसके पश्चात महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन स्थगित कर दिया ।


उसके पश्चात भगत सिंह का अहिंसा सें मोहभंग हो गया और उन्होंने क्रांति का पथ अपनाया , जेल में भगत सिंह व उनके सहयोगी क्रांतिकारियों ने 114 दिन लंबी भूख हड़ताल की।


जेलों में राजनीतिक कैदियों के साथ में बहुत ही बुरा सलूक किया जाता था . उनको जानवरों से भी बदतर हालात झेलने पड़ते थे.


खाने-पीने की व्यवस्था बेहद खराब थी, भगत सिंह की कुछ मांगे इस प्रकार थी. 

  • अच्छा खाना,  खाने का स्तर यूरोपीय कैदियों जैसा होना चाहिए
  • सम्मान हीन कार्य को करनें के लिए बाध्य ना किया जाए ।
  • लिखने का सामान व अखबार मिले ।
  • स्नान की सुविधा व अच्छे कपड़े मिलें ।

 
 यतींद्रनाथ भगत सिंह व अन्य साथियों ने अपनी मांगों की पूर्ति के लिए भूख हड़ताल चालू की, अंग्रेजों ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का विषय बना लिया . जितेंद्र नाथ जी की मृत्यु हड़ताल के 63 में दिन हुई तब सरकार झुकी व भगत सिंह और उनके साथियों की मांग को स्वीकार किया।


 भूख हड़ताल 14 जून 1929 से अक्टूबर 1929 के प्रथम सप्ताह तक चली ,114 दिन,114 दिन बाद 5 अक्टूबर 1929 को भूख हड़ताल समाप्त हुई ।


 भगत सिंह को तय समय से पहले फांसी की सजा क्यों हुई?


 भगत सिंह को लाहौर षड्यंत्र केस में फांसी की सजा सुनाई गई थी . फांसी के लिए 24 मार्च 1931 का दिन निर्धारित किया गया था परंतु देश में विरोध प्रदर्शन को देखते हुए भगत सिंह को 23 मार्च 1931 के शाम 7:00 बजे लाहौर के सेंट्रल जेल में फांसी की सजा दी गई थी।


 आमतौर पर फांसी की सजा सुबह के वक्त भी जाती है परंतु ब्रिटिश सरकार इतना घबराई हुई थी व उन पर इतना दबाव था कि फांसी की सजा एक दिन पहले ही दे दी गई।


गुपचुप तरीके से उनका शरीर बाहर ले जाकर अंतिम संस्कार किया जाने लगा परंतु गांव वालों को उसकी भनक लग गई, तब वहां से पुलिस भागी.


 तत्पश्चात गांव वालों ने दोबारा आदरपूर्वक भगत सिंह और उनके साथियों का अंतिम संस्कार किया ।
यह भारत भूमि धन्य है की इस पर भगत सिंह , राजगुरु , सुखदेव जैसे बेटो ने जन्म लिया है ।

Monday, June 7, 2021

कांग्रेस के प्रमुख अधिवेशन- ये अधिवेशन इतिहास में बहुत महत्व रखते हैः

कांग्रेस की स्थापना सन् 1885 में की गयी थी जिसके संस्थापक ए.ओ.ह्यूम माने जाते है, कांग्रेस आगे चलकर गरम दल व नरम दल दो गुटो में विभाजित हो गया और उसके पश्चात मुस्लिम लीग के साथ भी आ गया।

कांग्रेस से सम्बन्धित सभी जानकारियो को उनके प्रमुख अधिवेशनो के माध्यम से समझने की कोशिश करते है-


 कांग्रेस के प्रमुख   अधिवेशन

 

 

कांग्रेस के अधिवेशन

अधिवेशनो से सम्बन्धित जानकारी

प्रथम अधिवेशन

कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन सन् 1885 को बंबई शहर में हुआ था, प्रथम अधिवेशन के अध्यक्ष व्योमेशचन्द्र बनर्जी थे. कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में लगभग 72 व्यक्तियो ने भाग लिया था।

कांग्रेस की स्थापना ए.ओ. ह्यूम ने की थी.

fद्वतीय अधिवेशन

कांग्रेस का दूसरा अधिवेशन कलकत्ता में सन् 1886 में हुआ था जिसकी अध्यक्षता दादाभाई नौरोजी ने की थी।

तीसरा अधिवेशन

कांग्रेस का तीसरा अधिवेशन मद्रास में सन् 1887 में हुआ था जिसकी अध्यक्षता बदरूद्दीन तैय्यब जी ने की थी। वह कांग्रेस के प्रथम मुस्लिम अध्यक्ष थे.

चौथा अधिवेशन

कांग्रेस का चौथा अधिवेशन इलाहाबाद में सन् 1888 में हुआ था, जिसकी अध्यक्षता जार्ज यूल ने की थी जो कि प्रथम अंग्रेज अध्यक्ष थे.

बारहवां अधिवेशन

कांग्रेस का बारहवां अधिवेशन सन् 1896 में कलकत्ता में किया गया था जिसकी अध्यक्षता रहीमतुल्ला सयानी ने की था, इस अधिवेशन में पहली बार वंदे मातरम् गाया गया था।

इक्कीसवां अधिवेशन

कांग्रेस का इक्कीसवां अधिवेशन सन् 1905 में बनारस में हुआ था जिसकी अध्यक्षता गोपालकृष्ण गोखले ने की थी।

बाईसवां अधिवेशन

कांग्रेस का 22 वां अधिवेशन सन् 1906 में कलकत्ता में हुआ था जिसकी अध्यक्षता दादाभाई नौरोजी ने की थी पहली बार स्वराज शब्द का प्रयोग इसी अधिवेशन के दौरान हुआ था।

तेईसवां अधिवेशन

कांग्रेस का तेईसवां अधिवेशन सन् 1907 में सूरत में किया किया गया था जिसकी अध्यक्षता रास बिहारी बोस ने की थी, इसी अधिवेशन में कांग्रेस दो भागो में विभाजित हो गयी थी।

सत्ताइसवां अधिवेशन

यह अधिवेशन सन् 1911 में कलकत्ता में हुआ था जिसकी अध्यक्षता पं बिशननारायण धर ने की थी, इस अधिवेशन की विशेषता यह थी कि इसमें पहली बार जन-गण-मन गाया गया था।

बत्तीसवां अधिवेशन

यह अधिवेशन लखनऊ में सन् 1916 में हुआ ता जिसकी अध्यक्षता अंबिकाचरण मजमूदार ने की थी. इस अधिवेशन में मुस्लिम लीग से समझौता हुआ व कांग्रेस और मुस्लिम लीग एक साथ आये थें.

तैतीसवां अधिवेशन

यह अधिवेशन सन् 1917 में कलकत्ता में हुआ था जिसकी अध्यक्षता एनी बेसेंट मे की थी. वह कांग्रेस की अध्यक्षता करने वाली प्रथम महिला थी।

चालीसवां अधिवेशन

यह अधिवेशन सन् 1924 में बेलगाँव में आयोजित किया गया था जिसकी अध्यक्षता महात्मा गाँधी ने की थी. उन्होने कांग्रेस की अध्यक्षता सिर्फ एक ही बार की थी।

इकतालीसवां अधिवेशन

कांग्रेस का यह अधिवेशन सन् 1925 में कानपुर में आयोजित हुआ था जिसकी अध्यक्ष श्रीमती सरोजनी नायडू थी जो कि पहली भारतीय कांग्रेस महिला अध्यक्ष थी।

तेतालीसवां अधिवेशन

यह अधिवेशन सन् 1927 में मद्रास में हुआ था जिसकी अध्यक्षता डॉ एम.ए.अंसारी ने की थी.

चौवालीसवां अधिवेशन

यह अधिवेशन 1928 में पंडित मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में कलकत्ता में हुआ था।

पैतालीसवां अधिवेशन

कांग्रेस का यह अधिवेशन 1929 में लाहौर में आयोजित हुआ था जिसकी अध्यक्षता पंडित जवाहर लाल नेहरू ने की थी, इसमें पहली बार पूर्ण स्वराज की माँग की उठाया गया था।

छियालीसवां अधिवेशन

कांग्रेस का यह अधिवेशन 1931 में कराची में आयोजित हुआ था जिसकी अध्यक्षता सरदार बल्लभ भाई पटेल ने की थी जिसमें पहली बार मौलिक अधिकारो की माँग को उठाया गया था।

बावनवां अधिवेशन

कांग्रेस का बावनवां अधिवेशन 1938 में हरिपुरा में हुआ था जिसकी अध्यक्षता सुभाष चंद्र बोस ने की थी।

तिरपनवां अधिवेशन

यह अधिवेशन सन् 1939 में त्रिपुरी में आयोजित किया गया था, जिसकी अध्यक्षता सुभाषचंद्र बोस ने की थी.

पचपनवां अधिवेशन

कांग्रेस का यह अधिवेशन सन् 1946 में मेरठ में आयोजित किया गया था जिसकी अध्यक्षता आचार्य जे.बी कृपलानी ने की थी. आचार्य जे.बी कृपलानी स्वतंत्रता के समय कांग्रेस के अध्यक्ष थे.

 

Saturday, June 5, 2021

डॉ सत्यपाल की गिरफ्तारी के बाद अंग्रेज नीचता की किस हद तक गिर गये थे जानिये यहां से-

जलियांवाला हत्याकांड के वक्त पंजाब में डॉ सत्यपाल व डॉ किचलू लोगो के नेता बनकर उभरे थे व उन्हे जनता बेहद पसंद करती थी, वह भी लोगो की भलाई के लिए कार्य कर रहे थें। 

पंजाब में उत्पन्न रोष के कारण पंजाब सरकार ने इनको दोषी ठहराया व इन्हे अज्ञात जगह पर भेज दिया। पंजाब की जनता डॉ सत्यपाल व डॉ किचलू की गिरफ्तारी के विरोध में जलियांवाला बाग में इकठ्ठी हुई थी और इससे क्रोधित होकर जनरल डायर ने भीड पर गोली चलाने का आदेश दे दिया था। 

Image Source- Tribuneindia.com



उस घटना के बाद डॉ सत्यपाल ने क्या कहा था आइये पढते है-

 

मुझे 10 तारीख को अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर माइल्स इर्विग का संदेश प्राप्त हुआ कि मैं प्रात: दस बजे उनसे उनके सरकारी आवास पर जाकर भेंट करूं।उस समय मैने रेलवें स्टेशन के प्लेटफार्म पर भारतीयों को भी जाने की अनुमति देने की मुहिम छेङ रखी थी।
इस कारण सोचा कि उसी संदर्भ में वार्ता की जानी होगी, लेकिन वहां पहुंचते ही मुझे और डॉ किचलू को गिरफ्तार कर सशस्त्र सैनिकों के साथ मोटर वाहन द्वारा धर्मशाला भिजवा दिया गया।

 

एक महीने तक हमें कैद में रखने के बाद सिंहासन के प्रति राजद्रोह के जुर्म में बंदी बनाया गया व लाहौर की एक अदालत में पेश किया गया. तीन जून को मार्शल के सामने हाजिर किया गया । इस बीच यातनाऐ देने का कोई भी अवसर छोङा नही गया।
एक संकरी कोठरी में हमें रखा गया, वही पर सोना होता था और वही पर नित्य-कर्म भी करने होते थे।

 


मैने प्लेटफार्म पर प्रवेश देने के लिए शांतिपूर्ण आंदोलन किया था। जिसके बदले में मुझ पर लूटमार, आग लगाने, हत्या करने, डकैती डालने, माहौल खराब करने, षडयंत्र रचने, गोरो के खिलाफ जनभावना फैलाने व मुकुट के विरूद्ध की धाराऐ लगाकर मुकदमें कायम किए गयें।

 

पुलिस सर्वेसर्वा बन चुकी थी व उनके डर से सच्चाई की पैरवी करने वाला निडर शख्स कोई भी नहीं था। क्रूर गोरो के व्यवहार से स्तब्ध व भयभीत लोगो नें उनके खिलाफ गवाही नही दी। पूर्व में गवाहो को जिस प्रकार प्रताडित किया गया उससे भी वे सदमें में थे. अंतत: निर्णय का दिन आया और 7 लोगो को आजन्म कारावास, कुछ को रिहाई, दो को तीन वर्ष की कठोर कैद व डॉ बशीर को फांसी की सजा दी गई।

 

जेल में रहते हुए ही मैनें हंटर कमेंटी के बारे में सुना था और बताया गया कि न्यायिक कार्यवाही में सवाल-जवाब नही किये जाने थे और न ही वरिष्ठ नागरिक उपस्थित किए जाने थे। मैंने सरकारी रूख देखकर तय किया था कि खामोश रहना ही उचित होगा।

हम सभी गतिविधियां सार्वजनिक रूप से करते रहे थे। सभाएं भी खुलेआम ही होती थी। अत: बगावत का षडयंत्र रचा जाता तो उसे गुपचुप ही रचा जाता था। यह बगावत तो प्रशासकों के कुटिल गिमाग की उपज थी, ताकि बगावत का हौव्वा खङा कर लोगो को प्रताङित कर सकें।

मै और मेरे साथ के सभी लोग कानून में विश्वास करने वाले लोग थें। अंग्रेजों का यह कहना कि हिंदुस्तान पर आक्रमण करने के लिए अफगानिस्तान के अमीर के पास न्यौता भेजा गया था, कतई वागियात बात थी।

 


जो ब्रिटिश प्राशासन जर्मनी के छक्के छुङा रहा था, उस प्रशासन को किसी अफगानिस्तानी अमीर से भला किस प्रकार डराया जा सकता थायदि अफगानिस्तान से युद्ध छिडा था तो वह अंग्रेजो से युद्ध छिडा था तो वह अफगानिस्तान की अफगान नीति के कारण छिङा था। उसमें हमारा कोई लेना-देना नही था।

ब्रिटिश अत्याचाक की इंतहां को इसी बात से समझा जा सकता है कि उन्होने मेरे बुजुर्गवार पिता को, जिनसे प्रशासन को कोई खतरा नही था, उस पिता को जेल मे डालकर यातनाएं दी कि इस कारण बेटा टूट जायेगा।

डॉ सैफुद्दीन किचलू ने जलियांवाला बाग हत्याकांड के बारे में यह बताया जो अग्रेजो की पोल खोल देता है-

 डॉक्टर सैफुद्दीन किचलू अलीगढ़ विश्वविद्यालय के प्रतिभाशाली छात्र थे।  वार एट लॉ व  डॉक्टरेट करने के लिए वह इंग्लैंड गए व 1912 में डॉक्टरेट कर वापस भारत आ गए।

 इनका घर अमृतसर में था। इन्होंने 1916 से कांग्रेस व मुस्लिम लीग की सभा में भाग लेना शुरू कर दिया था। इनका उद्देश्य यह था कि भारतीयों का उत्थान हो व उन्नति हो, वह इसके लिए प्रयत्नशील भी थे जिसके कारण अंग्रेज इन्हें पसंद नहीं करते थे।

डॉ. सैफुद्दीन किचलू



 

 जलियांवाला बाग हत्याकांड के वक्त डॉ किचलू की आपबीती-

 

डॉ सत्यपाल तथा मैंने पंजाब के दूसरे शहरों में भी सभाएं करके कांग्रेस दल का और उसकी सोच का प्रचार किया था। अमृतसर कि वह सभा जो 21 मार्च 1919 को हुई थी उसमें 40000 लोगों की मौजूदगी दर्ज हुई थी।

 

हम दोनों को नोटिस दिया गया कि हम किसी भी सार्वजनिक सभा के मंच पर मौजूद नजर नहीं आने चाहिए। इस प्रकार हमें प्रताड़ित करने के लिए पाबंदी करने की कार्यवाही की गई।

 6 अप्रैल को अमृतसर में शांतिपूर्ण हड़ताल हुई, 9 तारीख को शहर में रामनवमी का जुलूस भी अच्छे माहौल से निकला और कोई अप्रिय वारदात नहीं घटी।

 

 मैं अपनी तारीफ नहीं करता किंतु सच्चाई यही है कि हिंदू मुस्लिम सौहार्द की भावना में यदि ऐसा हुआ तो उसका कारण यही था मैं इस प्रकार की तकरीरे करता था जिससे दोनों समुदायों के विश्वास में बढ़ोतरी होती।

 

 10 अप्रैल को कलेक्टर ने 11:00 बजे के मध्य अपने सरकारी आवास पर मुझे बुलाया। मेरे वहां पहुंचने पर मुझे व डॉ सत्यपाल को गिरफ्तार कर धर्मशाला भेज दिया। दोनों को अलग अलग रखा गया व हमें हमारे अपराध कें बारें में कुछ नही बताया गया। फिर 5 और 6 मई को हमें अदालत में प्रस्तुत कर बताया गया कि हम धारा 124 (अ) कें दोषी हैं। इसके पूर्व हमें परेशान और प्रताड़ित करके तोड़ने का प्रयास किया गया।

 

 आदतन मुजरिम जैसा सुलूक हमारे साथ किया गया, दुर्दशा वाली स्थिति में रखकर अंग्रेज अधिकारियों ने मेरी हंसी उड़ाई।

Wednesday, June 2, 2021

Women freedom fighters of India- इन महिलाओ का वजह से ही आज भारत आजाद हो पाया है. 8वीं महिला के बारे में शायद ही आप जानते हो-

भारत की आजादी की लङाई में पुरुषो के साथ-साथ महिलाओ ने भी बढ-चढकर हिस्सा लिया और भारत की आजादी दिलाने में सफलता पायी, तो आइये इसी क्रम में जानने की कोशिश करते है कि वे कौन-कौन सी महिला स्वतंत्रता सेनानी थी जिन्होने भारत को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की.

 रानी लक्ष्मी बाई:-

  •  रानी लक्ष्मी बाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को वाराणसी में हुआ था। उनका विवाह गंगाधर राव के साथ हुआ। 21 नवंबर 1853 में गंगाधर राव की मृत्यु हो गई। उसके बाद प्रशासन की सारी जिम्मेदारी रानी लक्ष्मीबाई ने अपने कंधों पर ले ली।

Rani Laxmibai file pic



  • अंग्रेजों की हड़प नीति के कारण उन्होंने अंग्रेजों का डटकर सामना किया और 1857 की क्रांति में उन्होंने अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया। अंत में वो झांसी की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुई।

 

बेगम हजरत महल:-

  • 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय बेगम हजरत महल ने अंग्रेजों को कड़ी टक्कर दी थी। वह अवध के नवाब वाजिद अली शाह की पत्नी थी।
  • ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों ने इनके पति को गिरफ्तार कर कोलकाता भेज दिया था,  इसके पश्चात बेगम हजरत महल में अवध की बागडोर संभाल कर लखनऊ पर कब्जा कर लिया। उन्होंने अपने नाबालिक पुत्र बिरजिस कादर को गद्दी पर बैठा कर अंग्रेजों का सामना स्वयं किया था,उनके अंदर मातृत्व और साहस का गुण था व नेतृत्व की अभूतपूर्व क्षमता थी।
  •  उन्होंने अंग्रेजों से जी जान लगाकर लगा लड़ाई की परंतु उन्हें हार का सामना करना पड़ा। जिसके कारण वह नेपाल चली गई और वहां उनकी मृत्यु 1879 ईसवी में हुई।

 

एनी बेसेंट:-

  • एनी बेसेंट आइरिश मूल की स्त्री थी जिनका जन्म 1 अक्टूबर 1847 में लंदन के एक परिवार में हुआ था, उनका विवाह 1867 में फ्रैंक बेसेंट नामक पादरी से हुआ था परंतु उनका वैवाहिक जीवन ज्यादा समय तक चल ना सका। इसके पश्चात उन्होंने भारत आकर अनेक सामाजिक कार्य किए।
  • वह कांग्रेस की प्रथम महिला सदस्य बनी और भारतीयों के अधिकारों के लिए लड़ी ।
  •  वह एक प्रसिद्ध समाज सुधारक, महिला कार्यकर्तालेखिका और प्रवक्ता थी, एनी बेसेंट की उपलब्धियों में थियोसोफिकल सोसायटी की स्थापना, कांग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्ष बनना, होमरूल की स्थापना व भारत में स्वशासन की मांग करना था।

 

मैडम भीकाजी कामा:-

  • मैडम भीकाजी कामा का जन्म 24 सितंबर 1861 को मुंबई में हुआ था। उनके पिता सोहराबजी पटेल एक प्रसिद्ध व्यापारी थे। भीकाजी कामा का स्वास्थ्य खराब रहने के कारण वह मुंबई से यूरोप सन् 1902 में चली गई।  वहां से उन्होंने लंदन अमेरिका जर्मनी भ्रमण कर भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाया।
  •  वह मैडम भीकाजी कामा ही थी जिन्होंने 22 अगस्त 1907 को जर्मनी की अंतरराष्ट्रीय सोशलिस्ट कान्फ्रेंस में भारत के राष्ट्रीय झंडे को फहराया था , जिस पर वंदे मातरम लिखा हुआ था।

 

  •  तिरंगे झंडे की कल्पना भी भीकाजी कामा की ही थी।

 

कस्तूरबा गांधी:-

  •  कस्तूरबा गांधी का जन्म पोरबंदर में 11 अप्रैल 1869 को हुआ था, वह महात्मा गांधी की पत्नी थी उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था।
  •  सन् 1930 में व दांडी और धरासड़ा के बाद जब गांधी जी जेल चले गए तो वह सभी का मनोबल बढ़ाते रही।



  •  22 फरवरी 1944 को जब गांधी जी जेल में थे तो उनकी मृत्यु हो गई।

 

सरोजिनी नायडू:-

  •  सरोजिनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 में हैदराबाद में हुआ था, वह होनहार विद्यार्थी थी उन्हें उर्दू, तेलुगु, इंग्लिश, बांग्ला व फारसी भाषा का अच्छा ज्ञान था।
  •  इंग्लैंड में उन्होंने पढ़ाई की। गोल्डन थ्रेसोल्ड उनका पहला कविता संग्रह था, उनके दूसरे व तीसरे कविता संग्रह बर्ड आफ टाइमब्रोकन विंग ने उन्हें सुप्रसिद्ध कवियत्री बना दिया।
  •  1903 से 1917 के बीच व नेहरू व टैगोर व अन्य भारतीय नायकों से मिली।
  •   1915 से 1918 तक भारत भ्रमण किया ताकि भारत में राष्ट्रीय भावनाओ को जाग्रत किया जा सकें।
  •  सविनय अवज्ञा आंदोलन में वह गांधी जी की विश्वसनीय थी.

 

  • 1922-26 तक वह दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के प्रति प्रयत्नरत रही।

 

  • नायडू ने सन् 1925 में कानपुर कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता की थी व उत्तर प्रदेश के गवर्नर बनने वाली पहली महिला थी ।

 

अरूणा आसफ अली:-

 

  इनके बचपन का नाम अरुणा गांगुली था, इन्हें 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान मुंबई के गोवालिया मैदान में कांग्रेस का झंडा फहराने के लिए हमेशा याद किया जाता है।

 

  •  1930 में उन्होंने सार्वजनिक सभाओं को संबोधित किया व जुलूस निकाला,  1932 में उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेजा गया और वहां पर उन्होंने कैदियों के खिलाफ हो रहे बुरे व्यवहार के विरोध में भूख हड़ताल की।

 

दुर्गाबाई देशमुख:-

 

 इनका जन्म 1909 में आंध्र प्रदेश में हुआ था, 10 वर्ष की उम्र में उन्होंने महिलाओं के लिए पाठशाला खोली व 500 से अधिक महिलाओं को हिंदी पढ़ाने के साथ-साथ स्वयं सेविका बनाने का कार्य किया।

 

  •  सन् 1930 से 33 तक वे तीन बार जेल गई।

  • उनका विवाह 1953 में भूतपूर्व मंत्री चिंतामणि देशमुख के साथ हुआ।

  •  आंध्र प्रदेश में शिक्षा के प्रसार के लिए उन्हें नेहरू साक्षरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  •  71 वर्ष की आयु में लंबी बीमारी के बाद 9 मई सन 1981 को हैदराबाद में उनका निधन हो गया.

 

डॉक्टर लक्ष्मी सहगल:-

 

 डॉ लक्ष्मी सहगल का जन्म 24 अक्टूबर 1914 को तमिल परिवार में हुआ था, कैप्टन सहगल ने 1932 में स्नातक की परीक्षा पास की और बाद में उन्होंने एमबीबीएस किया और डॉक्टर बनी ।

 

  • 1942 में वे भारत छोड़कर सिंगापुर चली गई और द्वितीय विश्व युद्ध में घायल युद्ध बंदियों के लिए काम किया ।

 

  •  1943 में सुभाष चंद्र बोस से वह काफी प्रभावित हुई और आजाद हिंद फौज को ज्वाइन कर लिया।

 

  • अक्टूबर 1943 में डॉक्टर लक्ष्मी ने रानी लक्ष्मी रेजीमेंट का कार्यभार संभाला व बाद में उन्हें कर्नल का पद भी मिला ।

 

  • जापान की हार के बाद उनको आजाद हिंद सैनिकों के साथ पकड़ा गया व बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया, उन्होंने कर्नल प्रेम कुमार सहगल से विवाह किया ।

 

  •  23 जुलाई सन् 2012 को उनका देहांत कानपुर में हो गया ।

 

विजय लक्ष्मी पंडित:-

 विजय लक्ष्मी पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन थी, उनका जन्म 18 अगस्त 1900 को इलाहाबाद में हुआ था, उन्होंने असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था।

  •  इनका विवाह 1921 में सीताराम पंडित के साथ हो गया।
  •  1932 में इन्होंने आंदोलन में भाग लेने के कारण गिरफ्तार कर लिया गया ।
  •  1937 में विधानसभा चुनाव में हुए विधानसभा की सदस्य चुनी गई।
  •  1942 में असहयोग आंदोलन के वक्त उन्हें गिरफ्तार किया गया
  •   सन् 1946 में भी पुनः उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्य बनी।

 

  •  स्वतंत्रता के बाद विजय लक्ष्मी पंडित ने संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया व संघ में महासभा में प्रथम महिला अध्यक्ष निर्वाचित की गई।

 

  • 1 दिसंबर 1990 को उनकी मौत हो गई।

 

सुचेता कृपलानी:-

  •  सुचेता कृपलानी भारतीय स्वतंत्रता सेनानी व राजनीतिज्ञ थी।
  • 1946 में संविधान सभा के सदस्य चुनी गई।
  •  1958 से 1960 तक वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महासचिव थी ।
  •  वह उत्तर प्रदेश की प्रथम महिला मुख्यमंत्री थी।
  • वह नोआखली यात्रा के समय बापू के साथ थी।

 

  • 1963 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनने से पहले वह दो बार लगातार लोकसभा के लिए चुनी गई थी।

 

  • उनकी मृत्यु 1 दिसंबर 1974 को हुई थी.

 


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