जब भारतवासी आजाद भारत के सपने देख रहे थे व इसके लिए अपने प्राणों की बाजी लगा रहे थे, उस वक्त कुछ लोग ऐसे भी थे जो भारत का विभाजन करना चाहते थे। |
भारत का विभाजन करने का आधार, धार्मिक आधार बनाया गया और मुसलमानों के लिए पृथक देश पाकिस्तान की मांग की गई।
विभाजन में भारत की भूमि के दो टुकड़े, पाकिस्तान व पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) हुए और करोड़ों लोगों को पलायन करना पड़ा, लाखों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।
भारत का विभाजन भारतीय इतिहास की अप्रिय घटनाओं में से एक है, वर्तमान पीढ़ी विभाजन के लिए गांधी को पूर्ण रूप से जिम्मेदार मानती है।
आइए समझते हैं कि विभाजन के वक्त देश की क्या परिस्थितियां थी और इसका जिम्मेदार कौन था?
विभाजन पर गांधी की राय:-
गांधी हमेशा से ही भारत के विभाजन के खिलाफ थे , एक वक्त उन्होंने कहा था कि अगर भारत का विभाजन होगा तो उनकी लाश के ऊपर से होगा । फिर धीरे-धीरे उनकी राजनीति से दूरी बढ़ती गई और भारत का विभाजन करना पड़ा |
गांधी ने कभी भी भारत के विभाजन को स्वीकार नहीं किया।
15 अगस्त को जब भारत आजादी का जश्न मना रहा था तब गांधीजी बंगाल में थे उन्होंने कहा था "मैं 15 अगस्त को उपवास करूंगा और मेरी प्रार्थना भी खासतौर पर उस दिन यही होगी की , हे ईश्वर ! हिंदुस्तान तो आजाद हुआ परंतु इसे बर्बाद ना करें"
10 अगस्त को बंगाल सरकार के कांग्रेस मंत्री ने उनसे पूछा कि, 15 अगस्त किस तरह मनाया जाए?
इस पर गांधी ने कहा ,"सब लोग मर रहे हैं , जल रहे हैं , नंगे मर रहे हैं। ऐसे में कोई जश्न नहीं हो सकता , सिवाय उपवास, प्रार्थना और चरखें के समर्पण के।"
भारत सरकार के सूचना विभाग का एक अधिकारी जब उनसे 15 अगस्त के लिए संदेश लेने आया तो गांधी ने कहा ,"कि वह अंदर से सूख गए हैं , कुछ नहीं है उनके पास कहने को।"
इस पर अधिकारी ने कहा कि इस ऐतिहासिक अवसर पर अगर गांधी का कोई संदेश न छपा तो बहुत ही खराब होगा।
गांधी ने जवाब दिया," है ही नहीं कोई मैसेज , होने दो खराब।"
विभाजन के वक्त गांधी की मनोस्थिति बहुत ही दुखद थी वह आंतरिक उथल-पुथल से जूझ रहे थे।
विभाजन के वक्त गांधी और कांग्रेस:-
1 अप्रैल 1947 को प्रार्थना सभा में गांधी ने कहा था ," पर होना क्या है, मेरे कहने के मुताबिक तो कुछ होगा नहीं ! होगा वही जो कांग्रेस करेगी , मेरी चलती कहां है? मेरी चलती तो ना तो पंजाब हुआ होता ,ना बिहार होता, ना नोआखाली होता!
आज तो ना कांग्रेस मेरी मानती है, ना हिंदू, ना मुसलमान।
दरअसल गांधी विभाजन की ओर इशारा करके कह रहे थे कि उनके चाहने से कुछ नहीं होता। अब उनकी राजनीति में वह स्थित नहीं रही जो कभी हुआ करती थी।
अब उनकी बात मानने वाला शायद कोई नहीं था , यह पहली बार नहीं था कि कांग्रेसी उनकी नहीं सुन रही थी। कांग्रेस संग अक्सर उनकी नहीं चलती थी।
विभाजन के वक्त गांधी के क्रियाकलाप:-
विभाजन के वक्त हिंदू और मुस्लिमों के बीच में दंगे अपनी चरम सीमा पर थे | देश के विभिन्न हिस्सों में सांप्रदायिक घटनाएं हो रही थी जिन्हें सुनकर व पढ़कर गांधी का हृदय व्याकुल हो जाता था।
16 अगस्त 1946 को मुस्लिम लीग कें डायरेक्ट एक्शन डे के बाद बंगाल व देश भर में सांप्रदायिक घटनाएं होने लगी थी।
गांधी इन घटनाओं को रोकने के लिए प्रयत्नरत थे।
वह मानते थे कि अगर वह बिहार व नोआखली में सांप्रदायिक उन्माद खत्म कर, लोगों में भाईचारा स्थापित कर देते हैं ,तो देश में शांति आ जाएगी।
नोआखली में हो रही हिंसा को गांधी रोकने का भरसक प्रयास कर रहे थे, उन्होंने 1946 में नोआखली में हुई सांप्रदायिक हिंसा के प्रमुख आयोजक मियां गुलाम सरदार और उनके सबसे खास सहयोगी, कासिम अली को सांप्रदायिक शांति बनाए रखने के लिए मना लिया था।
गांधी जब नोआखली में शांति स्थापित करने की कोशिश कर रहे थे तों उस वक्त बिहार में भी दंगे शुरू हो गए थे। जिसमें भारी संख्या में मुसलमानों को छति पहुंचाई जा रही थी।
उस वक्त बंगाल के नेताओं ने गांधी को बिहार जाकर वहां दंगों को शांत कराने के लिए कहा।
उनके अनुसार वह नोआखली में हिंदुओं की सलामती के लिए आए थे , अब यहां शांति स्थापित हो चुकी है , तो उन्हें मुसलमानों को बचाने के लिए बिहार जाना चाहिए।
बंगाल में , हिंदू युवा, गांधी का विरोध कर रहें थें और कह रहे थे ," क्यों आए हो यहां ? तब क्यों नहीं आए जब हम मुसीबत में थे ? 16 अगस्त को जब डायरेक्ट एक्शन डे की मार पड़ी तब नहीं आए । अब जब मुस्लिम इलाकों में थोड़े से गड़बड़ हो गई है तब आप भागे चले गए हैं।"
इस पर गांधी का जवाब था
1946 में मुसलमानों ने जो किया वह सरासर गलत था। पर 1947 में 1946 का बदला लेने से क्या होगा।
मैं समझता हूं कि मुझे आप लोगों की सेवा करनी है , आप को समझना चाहिए कि यहां सिर्फ मैं मुसलमानों के ही नहीं बल्कि हिंदू, मुसलमान और बाकी सबकी बराबर सेवा करने आया हूं।
जो लोग इस तरह की हैवानियत पर उतर आए हैं वे अपने धर्म पर कालिख पोत रहे हैं।
13 सितंबर को प्रवचन देते हुए गांधी ने कहा था -
आप मुझसे कह सकते हैं, काफी हिंदू कहते हैं, गुस्से में आ जाते हैं, लाल-लाल आंखें करते हैं, कि तू तो बंगाल में पडा रहा, बिहार में पडा रहा, पंजाब में आकर तो देख सही पंजाब में मुसलमानों ने हिंदुओं की क्या हालत की है। लड़कियों की क्या हालत हुई है।
इस पर गांधी ने जवाब दिया
मैं यह सब नहीं समझता हूं ऐसा तो है नहीं . लेकिन मैं उन दोनों चीजों को साथ साथ रखना चाहता हूं। वहां तो अत्याचार होता ही है, पर मेरा एक भाई पागल बने और सब को मार डाले , तो मैं भी उसके समान पागल बने और गुस्सा करूं ? यह कैसे हो सकता है?
गांधी के अनुसार इस वहशीपन से निकलने का एक ही तरीका था कि, हिंदू या मुसलमान में से कोई एक वहशीपन छोड़ दे।
विभाजन को रोकने के लिए गांधी के प्रयास:-
गांधी जो कि विभाजन के पक्ष में नहीं थे, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों व कांग्रेस के विभाजन स्वीकार करने के बाद उन्हें भी विभाजन स्वीकार करना पड़ा।
लेकिन मन से कभी वह विभाजन को स्वीकार न कर पाए।
नोआखली में सांप्रदायिक घटनाओं को रोकने के लिए वह वहॉ चले गए और कई महीनों तक वहां का माहौल शांत करते रहे । उसके बाद जब बिहार में दंगों की आग फैली तो उन्हें बिहार आना पड़ा, बिहार के बाद वह दिल्ली पहुंचे।
उस वक्त पंजाब व पाकिस्तान में बहुत ही हिंसात्मक घटनाएं हो रही थी, वह दिल्ली के बाद, फरवरी में, पाकिस्तान जाने वाले थे, ताकि वहां के अल्पसंख्यकों को बचा सके वहां शांति ला सकें व जनमानस में विभाजन को वापस लेने की बात डाल सके और विभाजन रद्द करवा सके।
लेकिन पाकिस्तान जाने से पहले वह यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि भारत में अल्पसंख्यक (मुसलमान) सुरक्षित हो जाए, ताकि वह पाकिस्तान पर दबाव बना सके कि भारत में मुसलमान सुरक्षित है, तो पाकिस्तान में हिंदू और सिख को भी सुरक्षित किया जाए।
भारत में शांति स्थापित करवा कर वह पाकिस्तानी मुसलमानों (जो भारत से पलायन कर वहां जा बसे थे ) को वापस आने का निमंत्रण देने वाले थे।
अगर उन्होंने यह साबित कर दिया कि भारत मुसलमानों के लिए सुरक्षित है, और अगर पाकिस्तान से मुसलमान वापस आकर भारत में पुनः बसने लगें, तो विभाजन का कोई महत्व ही नहीं रह जाएगा और विभाजन स्वत: ही रद्द हो जाएगा, वह पाकिस्तान जाकर अल्पसंख्यकों (हिंदुओं और सिक्खों ) के लिए बहुत कुछ करना चाहते थे।
18 सितंबर को उन्होंने कहा था
जो मुसलमान यहां से चले गए हैं, उनको हम अभी नहीं लाएंगे। पुलिस या मिलिट्री के बदौलत थोड़ी ही लाना है? जब हिंदू और सिख उनसे कहें कि आप हमारे अपने हैं, दोस्त हैं, आप आइए अपने घर में ।
आपको कोई पुलिस या मिलिट्री की जरूरत नहीं है । तब हम सब भाई-भाई मिलकर रहेंगे, हम तब उन्हें लाएंगे।
मैं तो आप से कहता हूं कि पाकिस्तान में हमारा रास्ता साफ हो जाएगा , और एक नया जीवन पैदा हो जाएगा ।
पाकिस्तान में जाकर मैं उनको नहीं छोडूंगा, वहां के हिंदू और सिखों के लिए जाकर मरूंगा। मुझे तो अच्छा लगे कि मैं वहां मरूँ , मुझे तो यहां भी मरना अच्छा लगे है।
अगर यहां जो मैं कहता हूं नहीं हो सकता ,तो मुझे मरना ही है।
गांधी का अंतिम आमरण अनशन
गांधी हिंदू-मुस्लिम दंगों से अत्यंत दुखी हो गए थे। उनको शांति के लिए कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। अंत में उन्होंने आमरण अनशन का ऐलान किया।
13 जनवरी से शुरू होने वाले आमरण अनशन से पहले कि उनकी कुछ बातें जों उन्होनें कही थी
मैं आशा करता हूं कि शांति तो मुझे मिलने वाली नहीं है, तो शांति से मुझे मरने दे ।
हिंदुस्तान का ,हिंदू धर्म का, सिख धर्म का और इस्लाम का बेबस बनकर , नाश होते हुए देखना ,निस्बत मृत्यु ,मेरे लिए सुंदर रिहाई होगी ।
अगर पाकिस्तान में दुनिया के सब धर्मों के लोगों को समान हक ना मिले , और उनका जानमाल सुरक्षित ना रहे , और भारत भी उनकी नकल करें। तो दोनों का नाश निश्चित है . मेरा उपवास लोगों की आत्मा जागृत करने के लिए है, उन्हें मार डालने के लिए नहीं ।
मेरे उपवास की खबर सुनकर लोग दौड़ते हुए मेरे पास ना आए , सब अपने आसपास का वातावरण सुधारने का प्रयत्न करें तो बस है ।
13 जनवरी को सुबह 9:30 बजे गांधीजी अनशन के लिए बैठ गए।
गांधी सांप्रदायिक दंगों से विचलित होने के बावजूद उनका ध्यान निरंतर बिगड़ रही सांप्रदायिक मानसिकता पर केंद्रित था जिसका यह दंगे लक्षण भर थें।
उन्होंने कहा था "हम गुनहगार बन गए हैं , लेकिन कोई एक आदमी गुनहगार थोड़ी है ? हिंदू , मुस्लिम, सिख तीनों गुनहगार है। अब तीनों गुनहगारों को दोस्त बनना है।"
अंग्रेजों ने जब सत्ता भारत और पाकिस्तान को सौंपी, तब 375 करोड रुपए की कुल नकदी थी।
जिसमें पाकिस्तान को 75 करोड़ दिए जाने थे , 20 करोड पाकिस्तान को 14 अगस्त 1947 को ही दे दिए गए थे , बाकी के 55 करोड़ दिए जाने थे।
लेकिन फिर कश्मीर का मसला लड़ाई का रूप ले बैठा।
भारत सरकार ऐसे मौके पर 55 करोड़ देखकर खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना नहीं चाहती थी। क्योंकि पाकिस्तान उस धन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ युद्ध में करता।
गांधी इस फैसले के खिलाफ थे, उनका कहना था कि जिस पैसे पर पाकिस्तान का जायज हक है, उसे उसको दे दिया जाए। ऐसा करने से दोनों देशों के बीच तनाव कम होगा और तनाव का एक कारण मिट जाएगा।
देश की गरिमा के हिसाब से उनका कहना था कि," जिसे अपने वचन का मूल्य नहीं वह तो कौड़ी का भी नहीं है।"
15 जनवरी को सुबह गांधी ने टब मैं लेटे-लेटे ही अपने सचिव प्यारेलाल को बोल कर एक वक्तव्य लिखवाया, जिसमें भारत सरकार से पाकिस्तान कों 55 करोड देने की बात कही।
15 जनवरी की रात को अनशन के तीसरे दिन मंत्रिमंडल ने पाकिस्तान को 55 करोड़ दे देने का निर्णय किया।
17 जनवरी को गांधी की जांच कर रहे डॉक्टरों ने लोगों को चेतावनी दे दी थी कि उनकी जान बचाने के लिए आवश्यक कदम उठाया जाए।
17 जनवरी को गहमागहमी काफी बढ़ गई । सुबह 11:00 बजे के आसपास कुछ मौलाना आए और बताया कि शहर की हालत काफी सुधर गयें है। शाम को कुछ व्यापारी आए और उन्होंने समझाया कि मुसलमानों ने जो व्यापार बंद कर दिया है, वह उसे फिर से चालू कर देंगे।
18 जनवरी को उपवास टूटा और एक 'शांति-प्रतिज्ञा' पर 100 से अधिक प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किए और उनका नेतृत्व राजेंद्र प्रसाद ने किया।
शांति-प्रतिज्ञा में लोगों ने यह प्रतिज्ञा की कि ,"हम यह घोषित करना चाहते हैं, कि हमारी दिली ख्वाहिश है कि हिंदू, मुसलमान और सिख और दूसरे धर्म के सब माननें वाले फिर से आपस में मिलकर भाई भाई की तरह दिल्ली में रहे और हम उनसे (गांधी ) यह प्रतिज्ञा करते हैं, कि मुसलमानों की जान, धन और धर्म की हम रक्षा करेंगे और जिस तरह की घटनाएं यहां पहले हो गई है, उनको फिर से ना होने देंगे ।"
Play casino - No.1 for the Casino Guru
ReplyDeleteNo longer have the opportunity to go to 바카라사이트 the casinos or https://sol.edu.kg/ read the reviews หาเงินออนไลน์ of the slots you love. But septcasino they're 토토사이트 not always the same. Sometimes you have a new online
Among the fifty six slots, additionally, 온라인 카지노 you will find some exciting jackpots with breathtaking quantities. To provide extensive variety|all kinds} of games may be} inventive, honest, and rewarding, suppliers of tablet casino apps associate with several of} software program creators. Throughout our listing, you’ll come throughout variety of the} finest Betsoft and RTG casinos where you will discover nearly all of of} games launched by these builders. You may even find loads of other games from other suppliers. There are hundreds of tablet-friendly casino games obtainable at MyB Casino.
ReplyDelete