भारतीय इतिहास में देश पर कुर्बानी देने वाले वीरों की कमी नहीं है पर उनमें से कुछ वीर ऐसे हैं जिनको इतिहास ने इतना सम्मान नहीं दिया जितने के वे हकदार हैं। उन्हें वीरो में से एक है शहीद उधम सिंह।
जिन्होंने बचपन में जलियांवाला बाग हत्याकांड देखने के बाद यह प्रतिज्ञा ली थी कि वह इस हत्याकांड के दोषियों को सजा अवश्य देंगे। इसके लिए उन्होंने 20 वर्षों तक इंतजार किया और 13 मार्च 1940 को अपनी प्रतिज्ञा पूरी की।
आइए जानते हैं उनके जीवन और जलियांवाला बाग के बाद 21 वर्ष के संघर्ष को :
ऊधम सिंह जी का बचपन
ऊधम सिंह जी के जन्म स्थान के बारे में अनेक मत हैं, उनका जन्म उत्तर प्रदेश के एटा में हुआ था। पिता का नाम चूहड़राम और माता श्रीमती नारायणी देवी थी। लगभग सन 1880 में उनके पिता नौकरी के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश को छोड़कर पंजाब में पटियाला जाकर निवास करने लगे।
ऊधम सिंह के पिताजी वहां सरदार धन्ना सिंह के यहां कार्य करने लगे, सरदार धन्ना सिंह के परिवार से प्रभावित होकर चूहड़राम और श्रीमती नारायणी देवी ने सिख धर्म अपना लिया। चूहड़राम केसधाधारी सिक्ख के रूप में सरदार टहल सिंह व उनकी पत्नी नारायणी देवी के स्थान पर श्रीमती हरनाम कौर सरदारनी बन गई।
ऊधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर सन 1899 को पटियाला, पंजाब राज्य में हुआ था।
माता-पिता के देहांत के बाद शिक्षा व भगत सिंह जी से मित्रता
सरदार टहल सिंह के दो पुत्र हुए, बड़े पुत्र का नाम साधु सिंह व छोटे पुत्र का नाम ऊधम सिंह था।
जब साधु सिंह 10 वर्ष के थे और उधम सिंह 5 वर्ष के थे तब उनकी माता का देहावसान बीमारी के चलते हो गया। उनके पिता यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाए और 1 वर्ष पश्चात अतिसार रोग से पीड़ित होने के कारण वह भी संसार छोड़ कर चले गयें।
इसके बाद सरदार चंचल सिंह ने दोनों का दाखिला अमृतसर स्थित पुतलीघर सेंट्रल खालसा अनाथालय में करा दिया।
बड़े भाई साधु सिंह, साधू-सन्यासियों की संगत में आने के फलस्वरुप सन्यासी बनने का निश्चय कर लिया और सन्यासियों के साथ ही चले गए। इसके बाद पंडित जयचंद्र ही ऊधम सिंह के पिता तुल्य थे।
ऊधम सिंह ने अंग्रेजी, पंजाबी और उर्दू का अच्छा अध्ययन किया था और 1916 में दसवीं पास की थी।
जब जलियांवाला बाग की घटना को ऊधम सिंह ने अपनी आंखों से स्वयं देखा
13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में भाषण चल रहे थे तब वहां के गवर्नर सर माइकल ओ डायर के आदेश से ब्रिगेडियर जनरल ई एच डायर ने सभा पर गोलियां चलवा दी।
इस भीषण हत्याकांड को देखकर 19 वर्षीय ऊधम सिंह पेड़ से उतरा और मातृभूमि की शपथ लेकर यह प्रतिज्ञा की कि ," मैं अपने देशवासियों के लहू की एक एक बूंद का हिसाब इस हत्याकांड के जिम्मेदार हत्यारों से चुकाऊंगा ।"
मृतकों में उधम सिंह ने 41 लड़कों और एक 7 सप्ताह के बच्चे को भी देखा था ।
जलियांवाला कांड के बाद वह बदला लेने के योजना बनाने लगे
इस घटना के बाद गिरफ्तारी से बचने के लिए ऊधम सिंह भी अन्य क्रांतिकारियों की तरह ही अमृतसर छोड़कर कश्मीर चले गए, वहां पर वह कुर्सी मेज बनाने वाली एक दुकान पर काम करने लगे । बाद में वह सुनाम लौट आए व नवंबर 1919 को अमृतसर वापस आ गए।
वहां से वह 1919 के अंत में दक्षिण अफ्रीका पहुंच गए, दक्षिण अफ्रीका में अपना काम समाप्त करके 1920 में अमेरिका पहुंचे व गदर पार्टी के संस्थापक लाला हरदयाल से मिले, वहां ऊधम सिंह ने गोली चलाना व कारतूस बनाना सीखा ।
एएच डायर की मृत्यु वह गवर्नर माइकल ओ डायर की सेवानिवृत्ति :-
सन 1920 में ई एच डायर को लकवा मार गया , ऊधम सिंह डायर को मारने ही लंदन गए थे । डायर को लकवा लगने के पश्चात उसकी मृत्यु 1927 ईस्वी में हो गई ।
किंतु पंजाब माइकल ओ डायर के अत्याचारों से परेशान हो उठा था इस कारण ब्रिटिश सरकार ने उसे पंजाब के गवर्नर के पद से मुक्त कर उसे लंदन बुला लिया ।
ऊधम सिंह को यह जानकर बहुत दुख हुआ कि भारत वासियों ने उसे जिंदा वापस कैसे जाने दिया। जनरल डायर को लकवा मारने के पश्चात अब ऊधम सिंह का एकमात्र लक्ष्य सर माइकल ओ डायर को समाप्त करना था।
लंदन में पढ़ाई व उसके बाद भारत में भगत सिंह के साथ कार्य करना:-
ऊधम सिंह ने लंदन में इंजीनियरिंग में प्रवेश ले लिया, उसी समय उनकी मुलाकात जर्मन महिला मिस मैरी से हुई। 1923 में भगत सिंह के बुलाने पर वह भारत लौट आए व इंजीनियरिंग की परीक्षा बीच में ही छोड़ दी।
भगत सिंह लाहौर के क्रांतिकारी दल का कार्यभार ऊधम सिंह को सौंपना चाहते थे अतः उन्होंने उधम सिंह को भारत बुलाने के लिए संदेश भेजा था, ऊधम सिंह लंदन से लाहौर वायसराय ऑफ इंडिया नामक जलयान से आए थे, उस समय भगत सिंह की गणना क्रांतिकारियों में होने लगी थी जब वह लाहौर नेशनल कॉलेज में थे।
भगत सिंह शादी नहीं करना चाहते थे इसलिए उन्होंने अपने पिता किशन सिंह को पत्र लिखकर, ऊधम सिंह को साथ लेकर, गुप्त रूप से कानपुर में रहने को चले गए, कुछ समय तक उधम सिंह और भगत सिंह ने समाचार पत्र बेंचकर भोजन और रहने की व्यवस्था की।
कुछ समय पश्चात अलीगढ़ कें शादीपुर गांव के नेशनल स्कूल में भगत सिंह को मुख्य अध्यापक व ऊधम सिंह को सहायक अध्यापक बना दिया गया।
अपनी प्रतिज्ञा की पूर्ति के लिए उनका लाहौर व लंदन आना जाना :
दादी के स्वास्थ्य खराब होने की खबर को पिता किशन सिंह ने अखबार में छपाया था ताकि भगत सिंह वापस आ जाएं। भगत सिंह के वापस जाने के साथ ही ऊधमसिंह भी उनके साथ लाहौर चले गए। भगत सिंह और ऊधम सिंह की सेवा के पश्चात दादी का स्वास्थ्य जल्दी ही ठीक हो गया।
लाहौर के बाद ऊधम सिंह अमृतसर आ गए और वहां पर फर्नीचर की दुकान खोली। वह दुकान क्रांतिकारियों की गतिविधियों का अड्डा हुआ करती थी।
ब्रिटिश सरकार की गिरफ्तारी के षड्यंत्र से बचने के उद्देश्य से ऊधम सिंह लंदन के लिए दोबारा रवाना हो गए।
ऊधम सिंह और मिस मैरी मिश्र, रूस, फ्रांस के रेगिस्तान में घूमते हुए अमेरिका पहुंचे।
अमेरिका में वह आयरिश व्यक्ति की सहायता से लंदन पहुंचे और वहीं रहने लगे।
कुछ समय पश्चात भगत सिंह ने ऊधम सिंह से महत्वपूर्ण विषय पर विचार विमर्श के लिए नवंबर 1926 में पत्र लिखा। वह पत्र ऊधम सिंह को दिसंबर अंत तक प्राप्त हुआ और दोनों फरवरी 1927 को लाहौर वापस आ गए।
ऊधम सिंह अपने साथ चार विश्वासपात्र मित्रों, विस्फोटक सामग्री ,कारतूस और कई पिस्टल को साथ लाए थे। ऊधम सिंह की भगत सिंह से भेंट नौजवान भारत सभा के प्रशिक्षण केंद्र में अन्य साथियों के साथ हुई थी ।
जब हथियारों के साथ पकड़े गए व 5 साल की जेल हुई
उस वक्त ऊधम सिंह अमृतसर में रुके थे उन पर गुप्तचर विभाग व एक कोतवाल को शक हो गया था। स्टेशन हाउस ऑफिसर सैयद सरदार अली शाह ने अपने साथ
कई सिपाही लेकर सादी वर्दी में छापा मारने पहुंच गया, वे लोग ऊधम सिंह को पकड़कर थाने में पूछताछ करने के लिए ले गए।
ऊधम सिंह से अधिक छानबीन करने पर उन्हें एक सूटकेस मिला जिसमें दो पिस्तौल और 139 कारतूस प्राप्त हुए, बाद में उन पर केस चला और उन्हें 5 वर्ष के कारावास की सजा हुई। जेल से छूटने के पश्चात वह जम्मू कश्मीर और अमरनाथ की यात्रा पर चले गए और अंत में वे अपने उद्देश्य की पूर्ति हेतु तीसरी बार लंदन के लिए रवाना हो गए।
ऊधम सिंह का तीसरी बार लंदन जाना और टैक्सी ड्राइवर के रूप में काम करना
1933 के मध्य में ऊधम सिंह और मिस मैरी लंदन पहुंचे लंदन में ऊधमसिंह शेफर्ड बुश गुरुद्वारे में रहने लगे और उसी गुरुद्वारे की टैक्सी को चलाने लगे।
ऊधम सिंह का परिचय वहां दो सरदार युवको महीप सिंह व आजाद सिंह से हुआ।
ऊधम सिंह ने सर माइकल ओ डायर के यहां ड्राइवर के रूप में नौकरी कर ली। माइकल ओ डायर के यहां नौकरी करने का उद्देश्य उनके विषय में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करना था ।
ऊधम सिंह माइकल ओ डायर की पुत्री गोल्डी और डायर को उसके कॉलेज से घर व घर से कॉलेज ले जाते थे।
ऊधम सिंह की प्रतिज्ञा पूर्ति
ऊधम सिंह ने 11 मार्च 1940 को इंडिया हाउस में एक सूचना पढी कि ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और रॉयल सेंट्रल एसोसिएशन सोसायटी द्वारा 13 मार्च 1940 को शाम 3:00 बजे की केक्स्टन हाल में एक विशेष सभा का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में पंजाब के पूर्व गवर्नर सर माइकल ओ डायर को बुलाया गया है ।
ऊधम सिंह इस अवसर की प्रतीक्षा पिछले 20 वर्ष 7 माह से कर रहे थे।
उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा पूर्ति करने की योजना बनाई और वह योजना मिस मैरी को बताई। मिस मैरी ने पूर्ण सहयोग करने का आश्वासन दिया ।
13 मार्च 1940 के दिन समय के आधे घंटे पहले मिस मैरी को केक्स्टनटन हाल के ट्यूडर कक्ष के मुख्य द्वार पर खड़े होने का कार्यभार सौंपा गया ।
13 मार्च 1940 के दिन ऊधम सिंह अपने दैनिक क्रियाकलापों से निवृत्त होकर शेफर्ड बुश गुरुद्वारे की गुरु ग्रंथ साहिब को माथा टेकने गए ।
ऊधम सिंह ने सिर पर पगड़ी के स्थान पर टोप पहन लिया व जैकेट व कोट में 17 कारतूस, पैंट की जेब में 8 कारतूस रखी और 1 तेज धार वाला चाकू रख लिया। एक पिस्टल बराबर इंग्लिश डिक्शनरी में पन्नो को काटकर उसमें पिस्टल रखकर तैयार हो गए।
ऊधम सिंह ने केक्स्टन हाल में पहुंचकर सारा वातावरण देखा और कक्ष के दाई और दरवाजे के पास अवसर की प्रतीक्षा में बैठ गए।
वह समय आ गया जब सारे व्यक्ति अपने भाषण कर चुके थे और अब माइकल ओ डायर की बारी थी।
जैसे ही माइकल ओ डायर अपना वक्तव्य देने के लिए खड़े हुए ऊधम सिंह ने तालियों की गड़गड़ाहट के बीच से ही 6 फायर किए। दो गोलियां लगने के बाद माइकल ओ डायर वहीं पर गिर गया।
सभी अपनी जान बचाकर भागने लगे, लेकिन ऊधम सिंह ने भागने की कोशिश नहीं की।
हाल में ड्यूटी पर तैनात अधिकारी रॉबर्ट विलियम ने ऊधम सिंह को अपने अधिकार में ले लिया।
बाद में ऊधम सिंह ने पुलिस से कहा
, " मेरा नाम ऊधम सिंह है और मैं एक इंजीनियर हूं। मैंने सर माइकल ओ डायर को अपना निशाना विरोध प्रकट करने के लिए बनाया। मैंने देखा कि अंग्रेजों के अत्याचारों से भारतीय भूखे मर रहे हैं। इन अत्याचारों का बदला लेने के लिए मैंने माइकल ओ डायर को मारा और इसका मुझे कोई दुख नहीं है। "
ऊधम सिंह को रात भर पुलिस हिरासत में रखा गया और प्रातः 14 मार्च 1940 को ब्रिंक्सटन जेल में भेज दिया गया।
4 जून 1940 को केंद्रीय आपराधिक न्यायालय ओल्ड बेले में ऊधम सिंह पर अभियोग चलाया गया और ऊधम सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई।
उधम सिंह को पेंटोन विला जेल में 31 जुलाई 1940 को अत्यंत गुप्त रूप से प्रातः काल चुपचाप फांसी दे दी गई। इस प्रकार भारत मां का यह साहसी बेटा देश की सेवा में शहीद हो गया ।