Inner line permit क्या होता है:-
INNER LINE PERMIT एक "आधिकारिक यात्रा दस्तावेज" है। जिसे भारत सरकार द्वारा दिया जाता है जो इन राज्यों में पर्यटन या काम के लिए जाते हैं। ILP एक शक्ति है जो राज्य सरकारो को अधिकार देती है कि वे जिसे चाहे (प्रवासी) राज्य में जाने वा रहने की अनुमति दे या नहीं।
यह ठीक वैसे ही जैसे आप विदेश में जाते हुए वीजा का इस्तेमाल करते है।
6th schedule क्या है:-
संविधान की छठवीं सूची में अनुच्छेद 244 A (22वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1969) यह संसद को असम के कुछ आदिवासी क्षेत्रों और स्थानीय विधानमंडल या मंत्रिपरिषद या दोनों के लिए एक स्वायत्त राज्य स्थापित करने का अधिकार देता है.
ILP की तरह यह अनुसूची भी उस क्षेत्र की भूमि पर मूल निवासियों के विशेषाधिकार की रक्षा करती है। संविधान की छठवीं अनुसूची आदिवासी समुदायों को काफी स्वायत्तता वा संरक्षण प्रदान करती है।
Inner line permit किन राज्यों में लागू होता है:-
इनर लाइन परमिट निम्न राज्यों में लागू होता है-
1. अरुणाचल प्रदेश
2. नागालैंड
3. मिजोरम
4. मणिपुर
- मणिपुर में सन् 1950 के बाद इसे हटा दिया गया था व 2020 में पुनः परमिट लागू कर दिया गया है।
- लद्दाख के लेह जिले में कुछ जगह पर ये inner line permit लागू होता है।
6th schedule के किन राज्यो में लागू होता है:-
· असम के कुछ भाग में
· मेघालय (शिलांग को छोड़ कर)
· त्रिपुरा (आधे से ज्यादा भाग पर)
मिज़ोरम ही एक ऐसा राज्य है जहां Inner line permit और 6th schedule दोनों लागू होता है।
ग्रे रंग में 6th schedule राज्य तथा नीले रंग में Inner line permit वाले राज्य है।
Inner line permit भिन्न भिन्न प्रकार के होते है:-
Ø पर्यटक के रूप में ये लघु अवधि जैसे सात या पंद्रह दिन के हो सकते है।
Ø एक कर्मचारी के रूप में बड़ी अवधि में इसे छ: माह से एक साल तक दिया जा सकता है, लेकिन केंद्रीय कर्मचारियों तथा आर्मी ऑफिसर के लिए ये नियम लागू नहीं होते है।
Inner line permit कौन देता है:-
यह अधिकार राज्य सरकार को दिया गया है कि वे किसे परमिट देते है। Inner line permit के नियम अलग अलग राज्य में अलग अलग हो सकते हैं।
आपको अपने दस्तावेजों का पूरा ब्यौरा देना होता है कि आप किस काम के लिए तथा किस जिले में किस जगह जाना चाहते है।
समय सीमा समाप्त होने के बाद यदि आप वहां पाए जाते है। तो आपको दोषी पाया जाएगा आपको गिरफ्तार किया जा सकता है।
यदि उन्हें लगता है कोई व्यक्ति वहां स्थाई रूप से रहना चाहता है और वह अनुचित है तो वे उसका I.L.P रिन्यूअल नहीं करेंगे जिसके बाद उसे जाना होगा।
Inner line permit क्यो बनाया गया था:-
इस तथ्य को समझने के लिए हमें इतिहास में अंग्रेजों द्वारा बनाए गए The Bengal Eastern Frontier Regulation- 1873 (BEFR) को समझना होगा।
अंग्रेजों ने पहाड़ी घाटियों आने के बाद इस नियम को बनाया ताकि मैदानी क्षेत्रों से और लोग यहां ना आ सके और यहां की आदिवासी सभ्यता में बाहरी प्रभाव ना पड़े।
इस नियम में उन्होंने मैदानी क्षेत्रों के लोगो को british subjects कहा था।
लेकिन इसके पीछे उनका एक ही मकसद था व्यापार पर एकाधिकार बनाए रखना तथा भारत के प्राकृतिक संसाधनों जैसे चाय तेल तथा हाथियों का व्यापार करना।
अंग्रेजों के जाने बाद inner line permit नियम को यथावत रखा गया तथा ब्रिटिश subject की जगह Citizens of India कर दिया गया।
सन् 1950 में मणिपुर से ILP हटा दिया गया था।
आजादी के बाद पूर्वोत्तर भारत में संस्कृति तथा भाषा के संरक्षण के लिए राज्यो को अलग करने की मांग ने जोर पकड़ रखा था। कूटनीति के लिए भी ILP एक आश्वासन के रूप में था।
पूर्वोत्तर भारत के कुछ राज्यों में CAA विरोध का कारण:-
1971 के बाद से बांग्लादेश से बड़ी संख्या में बांग्लादेशी नागरिक भागकर भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में पहुंचे थे। जिस कारण से पूर्वोत्तर राज्यों में इनर लाइन परमिट की मांग प्रबल हो उठी।
असम मेघालय मिजोरम और त्रिपुरा इनकी सीमा बांग्लादेश से लगी हुई है।
Inner line permit से अरुणाचल प्रदेश नागालैंड मणिपुर तथा मिज़ोरम राज्य तो संरक्षित हो गए है।
लेकिन असम राज्य का एक बड़ा भाग ब्रम्हपुत्र घाटी तथा बराक घाटी 6th शेड्यूल और ना ही ILP में आता है।
त्रिपुरा का भी थोड़ा सा हिस्सा 6th शेड्यूल और ना ही ILP में आता है।
ऐसे में यदि CAA बिना Inner line permit के लागू होता है। तो लाखो लोग जो माइग्रेंट्स है, भारत की नागरिकता पा जाने के बाद इन जगहों पर आ जाएंगे जहां ना तो 6th शेड्यूल और ना ही inner line permit है।
इसीलिए पूर्वोत्तर के सभी राज्य Inner line permit की मांग करते रहे है।
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