Thursday, October 29, 2020

Fake News के जंजाल से कैसे बचे?

 ज्ञान की खोज में निकलने पर आप पाते है कि सब कुछ आप अर्जित नही कर सकते, ऐसी स्थिति में जरूरत पङती है एक गुरू की।

गुरू मिलने की स्थिति में आप आश्वस्त हो जाते है कि जो गुरू कह रहा है वही सच है क्योकि आप जो सीख रहे है वो चीज वह व्यक्ति कई वर्षो से सीख रहा है, तब आप ऐसी स्थिति में उस गुरू पर आँख बंद करके भी भरोसा कर सकते है। उसकी विद्वता पर भरोसा कर सकते है, इसके पीछे की वजह यह है कि आप जिस भी क्षेत्र से सम्बंधित जानकारी प्राप्त करना चाहते है गुरू वह जानकारी काफी पहले से और काफी अन्य स्त्रोतो से जानकारी प्राप्त कर चुका होता है।

वर्तमान में क्या हो रहा है. कि आपके पास एक व्हाट्सएप फार्वर्ड आता है, आपको नही पता कि उसको किसने लिखा है और लिखने का मकसद क्या है। लेकिन आप थोङा बहुत भरोसा कर लेते है। धीरे-धीरे ऐसे ही अनेको मैसेज मिलने लगते है और आप उस ही चीज को सच मान लेते है। ऐसे अधिकतर मैसेज ग्रुप्स के माध्यम से वायरल किये जाते है जिसके पश्चात लोग उनसे प्रभावित होकर एक दूसरे की धीरे-धीरे फार्वर्ड करना शुरू कर देते है।

आपको नही पता कि उसको किसने लिखा है कितनी सच्चाई है उसमें परन्तु आप उसपर भरोसा करने लग जाते है।

 

कुछ लोग जो इस तरह के मैसेज से ज्यादा ही प्रभावित होते है वह इनको फेसबुक पर डाल कर और अधिक तेजी से वायरल करते है। एक रिसर्च में यह बात सामने आयी है कि फेक न्यूज, सामान्य न्यूज से 6 गुना अधिक तेजी से फैलती है। फेक न्यूज कौन फैलाता है और फेक न्यूज कैसे वायरल होती है यह सब मै आप पर छोङ रहा हूँ आप थोङा रिसर्च करिये कि आपके पास  ऐसे मैसेज कहां से आते है और उनको आपके पास कौन भेजता है और भेजने वाले का मकसद क्या होता है?


 

फेक न्यूज की समस्या से बङी-बङी कम्पनियॉ और बङे-बङे देश तक परेशान है जिसकी वजह से फैक्ट चेक करने वाली वेबसाइट्स अस्तित्व में आयी है व अन्य प्लेटफार्म्स ने भी फेक न्यूज से निपटने के लिए तरह-तरह की फीचर्स लांच किये है।

फेक न्यूज वायरल होने के पीछे के कारण यह होते है कि फेक न्यूज आपकी भावनाओ और आपके दिमाग को बहुत अधिक प्रभावित करती है जिसकी वजह से लोग उसको अधिक से अधिक मात्रा में आगे पहुचाते है जबकि एक सच्ची खबर इतनी ज्यादा सनसनीखेज नही होती। इसीलिए आपने यह भी देखा होगा कि बहुत सी वेबसाइट्स और छोटे मोटे न्यूज चैनल्स फेक न्यूज फैलाने का काम करते है जिससे उनको ज्यादा रीच मिलती है और ज्यादा रिवेन्यू जनरेट होता है।

फेक न्यूज फैलाने के राजनीतिक कारण भी हो सकते है जिसमें एकमात्र उद्देश्य आपको प्रभावित करना होता है और आपको अपने पक्ष में लाना होता है। अन्तिम उद्देश्य आपका वोट ही होता है जिसके लिए विभिन्न प्रकार से आपको प्रभावित किया जाता है।

सोशल मीडिया वोटर्स को किस प्रकार प्रभावित करती है और कैसे उनके दिमाग को अपने से कंट्रोल करती है अगर आप यह समझना चाहते है तो Netflix की डाक्यूमेंट्री The Social Dilemma जरूर देखें।

फेक न्यूज के जंजाल से कैसे बचे?

 

Fake News से निपटने का वैसे तो कोई कारगर तरीका नही है क्योकि वर्तमान समय में सबसे बङी समस्याओ में से एक समस्या सही जानकारी न मिल पाना होता है। आपको भिन्न-भिन्न प्रकार की जानकारी भिन्न-भिन्न स्त्रोतो से प्राप्त होती है जिससे भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती है। 

ऐसे स्थिति में व्यक्ति वही सच मान लेता है जो उसको ज्यादा बार पढने को मिलता है। एक ही झूठ को अगर कई बार आपके सामने सच के जैसे प्रस्तुत किया जाये तो वह कुछ समय पश्चात सच जैसा ही प्रतीत होने लगता है। ऐसी परिस्थितियो से निपटने के लिए हमारी कोशिश रहती है कि हम आपको बिलकुल सटीक जानकारी दे और उसके बाद आप स्वयं किसी निर्णय पर पहुँच सकें, आपके ऊपर किसी भी प्रकार का निर्णय थोपा न जाये और सच ही बताया जाये यही हमारी कोशिश है।

Fake News से बचने के लिए आप निम्न तरीको को अपना सकते है-

  •  Fake News अधिकतर देखा गया है कि WhatsApp के ग्रुपो के माध्यम से फैलायी जाती है, एक ग्रुप में बहुत सारे लोग होते है जिसके बाद उनको अन्य ग्रुप में फार्वर्ड किया जाना बहुत ही ज्यादा आसान होता है। ऐसे में आपका दायित्व यह है कि ऐसी खबरो को फार्वर्ड करने से बचे जो ज्यादा ही सनसनीखेज हो और जिन पर आपको थोङा भी संशय हो। फेक न्यूज की समस्या से बचने के लिए WhatsApp ने फार्वर्ड फीचर में फार्वर्ड अब सिर्फ कुछ व्यक्तियो तक ही सीमित कर दिया है, मतलब कि अब आप चंद लोगो से ज्यादा लोगो को फार्वर्ड नही कर सकते।
  • जब चुनाव नजदीक होते है तब सैकङो झूठे मैसेज को फार्रवर्ड किया जायेगा, इस वक्त आपकी जिम्मेदारी यह बन जाती है कि आप लिखने वाले व्यक्ति को प्रोफाइल को चेक करें, राजनीति से प्रेरित और राजनीतिक पृष्ठभूमि वाला व्यक्ति अगर ज्यादा ज्ञान किसी ऐसी चीज पर दे रहा है जिसमें उसका व्यक्तिगत लाभ है तो उसको शेयर करने से बचें। व्हाट्सएप की मैसेजेस पर ज्यादा भरोसा ना करें और अगर करें भी तो ज्यादा फार्वर्ड ना करें। 
  • शेयर करने से पहले यह जरूर देखे कि किसने उस लेख को लिखा है, वह वेबसाइट भरोसेमंद है या नही और लेखक कितना भरोसेमंद है।
  • फेक न्यूज के माध्यम से कभी-कभार बहुत बङी घटनाऐ हो जाती है, कई बार देखा गया है कि कुछ लोगो की मृत्यु तक फेक न्यूज के माध्यम से हो जाती है। ऐसे में आपकी जिम्मेदारी है कि न्यूज को फार्वर्ड करने से पहले अपने स्तर पर सत्यता की जांच कर ले।
 वर्तमान समय में फेक न्यूज को बहुत ही ज्यादा फैलाया जा रहा है और उसका विपरीत असर समाज पर देखने को मिलता है ऐसे में यह जरूरी है कि फेक न्यूज के खिलाफ जागरूकता फैलायी जाये और फेक न्यूज को सबके सामने लाया जायें।

 

Wednesday, October 28, 2020

Save Tigers- शेरो को बचाना आखिर जरूरी क्यों है?

 प्रकृति ने खुद को इस प्रकार व्यवस्थित किया हुआ है कि प्रकृति में सारी चीजें एक-दूसरे से जुङी हुई है-

इस पृथ्वी पर लगभग 20 लाख जैव-प्रजातियों का अस्तित्व है, और प्रत्येक जीव का पारिस्थतिकीय तंत्र में महत्व होता है। जब किन्ही कारणोवश किसी एक जगह असंतुलन की स्थिति पैदा होती है तो उसका खामियाजा प्रकृति में मौजूद सभी जीवों को भुगतना पडता है।

 

मानवीय क्रियाकलापो के फलस्वरूप जब प्रकृति में असंतुलन पैदा होने लगता है, तो पृथ्वी पर प्रजातियां विलुप्त होने लगती है।

एक अनुमान के मुताबिक हर वर्ष विश्व में लगभग 10000-20000 प्रजातियां विलुप्त हो रही है। इस प्रकार की ही स्थिति Tigers के साथ में भी थी जिसको बचाने के लिए Save Tigers अभियान चलाया गया था।

Save Tigers मुहिम कब चलायी गयी थी?

Tiger जो कि प्रकृति का एक हिस्सा है, प्रकृति के संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।

वर्ष 2006 में भारत में सिर्फ 1411 Tigers ही बचे थे जिसके बाद भारत में Tigers को बचाने की मुहिम चलायी गयी थी। 29 जुलाई 2010 को रूस के एक शहर पीटर्सबर्ग में Tiger Summit का आयोजन किया गया जिसके बाद विश्वभर में Save Tigers अभियान चलाया गया था।

Save Tigers  मुहिम का उद्देश्य 2022 तक Tigers की संख्या को दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया था।

विश्वभर में 29 जुलाई को International Tiger Day मनाया जाता है।

भारत में टाइगर की स्थिति

साल 2006 में भारत में 1411 Tigers ही बचे थे जिसकी वजह से भारत सरकार नें Save Tigers अभियान चलाया था। जिसका उद्देश्य Tigers की संख्या में वृद्धि करना था।

Save Tigers अभियान के बाद भारत में टाइगर्स की संख्या

2018 के एक सर्वक्षण के अनुसार भारत में Tigers की संख्या बढकर 2967 हो गयी है, जो कि भारत के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि है।

यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि विश्व में पाये जाने वाले कुल Tigers के 70% Tigers  सिर्फ भारत में ही पाये जाते है।

वर्तमान में Tigers की संख्या 3000 के आसपास है।

Save Tigers अभियान का भारत में प्रभाव

Save Tigers अभियान के बाद भारत में Tigers की संख्या को 1411 से 2967 तक ले जाया जा सका है।

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2006 में भारत में सिर्फ 1411 Tigers थें जो कि बढकर 2010 में 1706 हो गये थें, भारत सरकार के प्रयासो के फलस्वरूप 2014 में 2225 वर्तमान में करीब 3000 की संख्या तक Tigers  भारत में मौजूद है।

मध्य प्रदेश में इस वक्त सबसे ज्यादा 526 Tigers है,  दूसरे नम्बर पर कर्नाटक है जहां 524 Tigers है, व तीसरे नम्बर पर उत्तराखंड है जहां 442 Tigers की संख्या ज्ञात है।

उङीसा में Tigers की संख्या में कोई बदलाव नही हुआ है, जबकि छत्तीसगढ और मिजोरम में गिरावट दर्ज की गयी है।

Tigers की संख्या का आंकलन करने के लिए मार्क-रिकैप्चर फ्रेमवर्क को शामिल किया गया था। जिसमें लगभग 26760  स्थानो पर कैमरे लगाकर 3 करोङ से ज्यादा तस्वीरें ली गयी थी, जिसमें सें 76523 तस्वीरें सिर्फ Tigers की थी ।

 

Friday, October 16, 2020

Inner Line Permit in India in Hindi- भारत के भीतर इन जगहो पर घूमने के लिए भी आपको इजाजत लेनी पङती है-

विदेशो मे जाने के लिए आपको जिस प्रकार वीजा की जरूरत होती है ठीक उसी प्रकार भारत में भी बहुत सारी ऐसी जगहे है जहां आपको घूमने जाने के लिए भारत सरकार की अनुमति लेनी पङती है व सम्बन्धित राज्य सरकार से भी आपको अनुमति लेनी पङती है।

इसे ही Inner Line Permit कहते है जो कि आपको अनुमति देता है उन जगहो पर जाने के लिए जहां भारत सरकार और राज्य सरकार ने बिना अनुमति से जाने की मनाही कर रखी है।

Inner line permit क्या होता है:-

 

INNER LINE PERMIT एक "आधिकारिक यात्रा दस्तावेज" है। जिसे भारत सरकार द्वारा दिया जाता है जो इन राज्यों में पर्यटन या काम के लिए जाते हैं।  ILP एक शक्ति है जो राज्य सरकारो को अधिकार देती है कि वे जिसे चाहे (प्रवासी) राज्य में जाने वा रहने की अनुमति दे या नहीं।

 





यह ठीक वैसे ही जैसे आप विदेश में जाते हुए वीजा का इस्तेमाल करते है।

 

 6th schedule क्या है:-

 

संविधान की छठ‍वीं सूची में अनुच्छेद 244 A (22वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1969) यह संसद को असम के कुछ आदिवासी क्षेत्रों और स्थानीय विधानमंडल या मंत्रिपरिषद या दोनों के लिए एक स्वायत्त राज्य स्थापित करने का अधिकार देता है.

ILP की तरह यह अनुसूची भी उस क्षेत्र की भूमि पर मूल निवासियों के विशेषाधिकार की रक्षा करती है। संविधान की छठवीं अनुसूची आदिवासी समुदायों को काफी स्वायत्तता वा संरक्षण प्रदान करती है।

 

Inner line permit किन राज्यों में लागू होता है:-

 

इनर लाइन परमिट निम्न राज्यों में लागू होता है-

 
1.      अरुणाचल प्रदेश
2.      नागालैंड
3.      मिजोरम
4.      मणिपुर

  •   मणिपुर में सन् 1950 के बाद इसे हटा दिया गया था व 2020 में पुनः परमिट लागू कर दिया गया है।
  •   लद्दाख के लेह जिले में कुछ जगह पर ये inner line permit लागू होता है।

 

6th schedule के किन राज्यो में लागू होता है:-

 

 

·         असम के कुछ भाग में

·          मेघालय (शिलांग को छोड़ कर)

·          त्रिपुरा (आधे से ज्यादा भाग पर)

 

मिज़ोरम ही एक ऐसा राज्य है जहां Inner line permit और 6th schedule दोनों लागू होता है।

 

ग्रे रंग में 6th schedule राज्य तथा नीले रंग में Inner line permit वाले राज्य है।

 

Inner line permit भिन्न भिन्न प्रकार के होते है:-

 

Ø  पर्यटक के रूप में ये लघु अवधि जैसे सात या पंद्रह दिन के हो सकते है।

Ø  एक कर्मचारी के रूप में बड़ी अवधि में इसे छ: माह से एक साल तक दिया जा सकता है, लेकिन केंद्रीय कर्मचारियों तथा आर्मी ऑफिसर के लिए ये नियम लागू नहीं होते है।

 

 

Inner line permit कौन देता है:-

 

यह अधिकार राज्य सरकार को दिया गया है कि वे किसे परमिट देते है। Inner line permit के नियम अलग अलग राज्य में अलग अलग हो सकते हैं।

आपको अपने दस्तावेजों का पूरा ब्यौरा देना होता है कि आप किस काम के लिए तथा किस जिले में किस जगह जाना चाहते है।

समय सीमा समाप्त होने के बाद यदि आप वहां पाए जाते है। तो आपको दोषी पाया जाएगा आपको गिरफ्तार किया जा सकता है।

यदि उन्हें लगता है कोई व्यक्ति वहां स्थाई रूप से रहना चाहता है और वह अनुचित है तो वे उसका I.L.P रिन्यूअल नहीं करेंगे जिसके बाद उसे जाना होगा।

 

Inner line permit क्यो बनाया गया था:-

 

इस तथ्य को समझने के लिए हमें इतिहास में अंग्रेजों द्वारा बनाए गए The Bengal Eastern Frontier Regulation- 1873 (BEFR) को समझना होगा।

अंग्रेजों ने पहाड़ी घाटियों आने के बाद इस नियम को बनाया ताकि मैदानी क्षेत्रों से और लोग यहां ना आ सके और यहां की आदिवासी सभ्यता में बाहरी प्रभाव ना पड़े।

इस नियम में उन्होंने मैदानी क्षेत्रों के लोगो को british subjects कहा था।

 लेकिन इसके पीछे उनका एक ही मकसद था व्यापार पर एकाधिकार बनाए रखना तथा भारत के प्राकृतिक संसाधनों जैसे चाय तेल तथा हाथियों का व्यापार करना।

अंग्रेजों के जाने बाद inner line permit नियम को यथावत रखा गया तथा ब्रिटिश subject की जगह Citizens of India कर दिया गया।

सन् 1950 में मणिपुर से ILP हटा दिया गया था।

 आजादी के बाद पूर्वोत्तर भारत में  संस्कृति तथा भाषा के संरक्षण के लिए राज्यो को अलग करने की मांग ने जोर पकड़ रखा था। कूटनीति के लिए भी ILP  एक आश्वासन के रूप में था।

 

पूर्वोत्तर भारत के कुछ राज्यों में CAA विरोध का कारण:-

 

1971 के बाद से बांग्लादेश से बड़ी संख्या में बांग्लादेशी नागरिक भागकर भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में पहुंचे थे। जिस कारण से पूर्वोत्तर राज्यों में इनर लाइन परमिट की मांग प्रबल हो उठी।

 

असम मेघालय मिजोरम और त्रिपुरा इनकी सीमा बांग्लादेश से लगी हुई है।

Inner line permit से अरुणाचल प्रदेश नागालैंड मणिपुर तथा मिज़ोरम राज्य तो संरक्षित हो गए है।

 

लेकिन असम राज्य का एक बड़ा भाग ब्रम्हपुत्र घाटी तथा बराक घाटी 6th शेड्यूल और ना ही ILP में आता है।

त्रिपुरा का भी थोड़ा सा हिस्सा 6th शेड्यूल और ना ही ILP में आता है।

ऐसे में यदि CAA बिना Inner line permit के लागू होता है। तो लाखो लोग जो माइग्रेंट्स है, भारत की नागरिकता पा जाने के बाद इन जगहों पर आ जाएंगे जहां ना तो 6th शेड्यूल और ना ही inner line permit है।

इसीलिए पूर्वोत्तर के सभी राज्य Inner line permit की मांग करते रहे है।

Thursday, October 15, 2020

Protected Area Permit and Restricted Area permit क्या होता है? जो आपको इन जगहो पर जाने से रोकता है-

सन् 1958 के अनुसार वे सभी राज्य जो भारतीय सीमा से लगे हुए हैं, तथा Inner line permit के अन्तर्गत है। उन्हें संरक्षित क्षेत्र में रखा गया था। जिस प्रकार पूर्वोत्तर भारत में आप जानते हो कि बिना Inner line permit  के भारतीयों के लिए प्रवेश वैध नहीं है। ठीक उसी प्रकार Protected Area Permit  होता है।

 

Protected Area Permit किस पर लागू होता है:-

 

जितने भी विदेशी या गैर भारतीय जो पर्यटन के लिए भारत घूमने आते है। उन्हें कुछ विशेष जगहों पर जाने के लिए Protected Area Permit लेना पड़ता है।

गृहमंत्रालय के दिशा-निर्देशों के अनुसार यह क्षेत्र संवेदनशील होते है, अतएव विदेशियों को वहां पर घूमने के लिए एक गाइड के साथ ही इस परमिट को लेना पड़ता है।

 

Protected Area Permit किन राज्यों में लागू होता है:-

 

अधिकतर सीमावर्ती राज्यों के बाहरी सीमाओं से सटे क्षेत्रों में यह परमिट लागू होता है।

 

1.     राजस्थान (कुछ हिस्से में)

2.      जम्मू-कश्मीर (कुछ हिस्से में)

3.     लद्दाख (कुछ हिस्से में)

4.     हिमाचल प्रदेश (कुछ हिस्से में)

5.     उत्तराखंड (कुछ हिस्से में

6.     सिक्किम (पूरे प्रदेश में)

7.     अरुणाचल प्रदेश (पूरे प्रदेश में)

8.     मणिपुर (पूरे प्रदेश में)

9.     मिज़ोरम (पूरे प्रदेश में)

1नागालैंड (पूरे प्रदेश में)

 

·        पर्यटन के बढ़ावा के लिए गृह मंत्रालय ने कुछ क्षेत्रों में नियमों में ढील दी है किन्तु - पाकिस्तान,चीन तथा अफगानिस्तान के नागरिकों को नए नियमो के अनुसार छूट नहीं दी गई है।

 

Restricted Area Permit क्या होता है:-

 

प्रतिबंधित क्षेत्र परमिट के तहत् 1963 में  यह नियम लागू किया गया कि कोई विदेशी पर्यटक बिना सरकार की अनुमति के ऐसे क्षेत्रो में नहीं जा सकता है। जहां का क्षेत्र उसकी सांस्कृतिक विरासत तथा अपनी विशेष भाषा के संरक्षण के लिए बाहरी प्रभाव नहीं चाहता है। और भारत सरकार द्वारा उसके अधिकार संरक्षित है।

·        भूटान के अतिरिक्त अन्य सभी देशों के नागरिकों को ऐसे क्षेत्रों के पर्यटन के लिए परमिट लेना अपरिहार्य है।

 

 

Restricted Area Permit किन जगहों पर लागू होता है:-

 

ये 2 जगहों पर लागू होता है।

 

A-) अंडमान निकोबार द्वीपसमूह (पूरे केंद्र शासित प्रदेश में)

B-) सिक्किम (कुछ जगहों पर)

 

1:- अंडमान निकोबार द्वीपसमूह (पूरे केंद्र शासित प्रदेश में)

 

विदेशी पर्यटक आवश्यक परमिट प्राप्त करने के बाद निम्नलिखित स्थानों पर जा सकते हैं, सक्षम प्राधिकारी से इन स्थानों में  45 दिन से अधिक  ठहराव प्रदान नहीं कर सकता है।

 

अंडमान निकोबार द्वीपसमूह पर 24 ऐसी जगह हैं।

 

(1) Municipal Area, Port Blair

(2) Havelock Island

(3) Long Island

(4) Neil Island

(5) Mayabunder

(6) Diglipur

(7) Rangat

(8) Entire Island of Middle Andaman, excluding Tribal reserve.

(9) All Islands in Mahatma Gandhi marine national Park except Boat, 

Bobday - twin Islands Tarmugti, Malay, and Pluto ( Night halt in 

these islands subject to special permission of the UT Admn.). 

(10) Entire Island of South Andaman, excluding tribal reserve.

(11) Baratang Islands.

(12) North Passage Island.

(13) Little Andamans Island excluding tribal reserve.

(14) Jolly Buoy

(15) South Cinque

(16) Red Skin

(17) Mount Harriet

 

(18) Madhuban

(19) Ross Island

(20) Narcondum Island

(21) Interview Island

(22) Brother Island

(23) Sister Island

(24) Barren Island

 

  • उपरोक्त दी गई जगहों में 14 से 24 तक की जगहों पर केवल दिन के समय ही जाया जा सकता है।
  •  म्यामांर के नागरिकों को (5) Mayabunder और (6) Diglipur में बिना रक्षा मंत्रालय के पूर्व अनुमति के प्रवेश निषेध है।

 

2:- सिक्किम (कुछ जगहों पर):-

 

सक्षम अधिकारी सिक्किम में अधिकतम पंद्रह (15) दिनों के लिए एरिया परमिट (आरएपी) दे सकता है।

 

सिक्किम के प्रतिबंधित क्षेत्र में पड़ने वाले पर्यटकों की रुचि के स्थान हैं

 

1:-Gangtok

2:-Rumtek

3:-Phodang

4:- Remayangtse

 कोई भी विदेशी नागरिक इन स्थानों पर बिना सक्षम अधिकारी से अनुमति के इस क्षेत्र में न तो प्रवेश कर सकता है और ना ही ठहर सकता है।

 

Protected Area Permit और Restricted Area Permit में क्या अन्तर है?

 

Protected Area Permit भारतीय सीमा सुरक्षा की दृष्टि से होता है। कोई बाहरी नागरिक भारत से लगे दूसरे देशों की सीमा पर जाता है तो वह अपना पूरा ब्यौरा दे कहीं कोई जासूस तो नहीं है। रक्षा मंत्रालय के द्वारा सुरक्षा की एहतियात से यह भी एक संभावना रहती है।

जबकि restricted area permit ऐसे क्षेत्रों के लिए होता है जो रचना कि दृष्टि से खतरनाक है। ऐसी जगहों पर अगर कोई पर्यटक ऐसा कृत्य करता है जिससे वहां की संस्कृति के विपरीत या वहां के माहौल के प्रतकूल है। तो आदिवासियों द्वारा कभी कभी उनके खुद के कानून के कारण भयानक  परिणाम भुगतना पड़ सकता है। और भारतीय संविधान के अनुसार वे दोषी भी नहीं होंगे।

अंडमान निकोबार द्वीपसमूह पर रहने वाली सेंटियाल जनजाति लगभग 60000 हजार सालों से यहां रह रही है। ये लोग बाहरी दुनिया के संपर्क में नहीं रहते है।

अतः restricted area permit ऐसे क्षेत्रों में बाहरी लोगों का काम प्रभाव पड़े इसलिए इसे लागू करती है।

Indian Navy और इंडियन कोस्ट गार्ड नॉर्थ सेन्टिनेन्टल द्वीप समूह की पेट्रोलिंग करते रहते हैं।

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