Friday, June 11, 2021

SSC के छात्र इतना प्रदर्शन क्यो करते है? वजह यहां से जानिये-

भारत में सरकारी विभागो में भर्ती के लिए एक आयोग है जो कि विभिन्न विभागो के लिए भर्ती करता है, नाम है कर्मचारी चयन आयोग. कर्मचारी चयन आयोग भारत में बी व सी ग्रेड की भर्तियो को करवाता है व अन्य कई प्रकार की भर्तियों की कराने की जिम्मेदारी भी इसी आयोग की रहती है।

यह विभाग अक्सर सुर्खियों में रहता है, सुर्खियों में रहने की वजह इसका निकम्मापन व लेटलतीफी है, अक्सर एसएससी से सम्बन्धित परीक्षाओ की तैयारी करने वाले विद्यार्थी प्रदर्शन करते हुए पाये जाते है तो आइये समझने की कोशिश करते है कि एसएससी की तैयारी करने वाले विद्यार्थी इतना प्रदर्शन क्यो करते है?

इसको समझने के लिए पहले एक घटना का जिक्र कर लेते है, 2018 होली के आसपास की बात है, एसएससी पर आरोप लगा कि यहां पैसे देकर सीटे बांटी गयी है। बाहर से सिस्टम को हैक कर के परीक्षा केन्द्र पर उन लोगो को फायदा पहुंचाया गया है जिन्होने पहले से ही 20–40 लाख रूपये दे दिये है। लोगो ने विभिन्न विभागो में विभिन्न पदो के लिए भिन्न-भिन्न कीमते बतायी, जैसे कि इनकम टैक्स इंस्पेक्टर के लिए 40 लाख, एक्साइज इंस्पेक्टर के लिए 30 लाख, आदि आदि.

एसएससी मेंस की परीक्षा मे ऐसे आरोप लगे जिसके जवाब में छात्रो नें बहुत सारे सबूत पेश कियें और न्याय की मांग की।

विभिन्न चैनलो पत्रकारो को ट्वीटर पर टैग कर करके मदद मांगी गयी लेकिन किसी को कोई भी मदद न मिली। तब हजारो की संख्या में विद्यार्थी एसएससी कॉम्पलेक्स के सामने इकठ्ठे हुए कि कोई तो उनकी बात को सुनेगा। होली का माहौल था,  हजारो बच्चे घर नही गये औऱ वही रोड पर तकरीबन 3–4 दिन बैठे रहे।

देश भर से बच्चे होली का त्यौहार छोङ कर दिल्ली आये और इस प्रदर्शन में शामिल हुए औऱ न्याय की मांग की।








कोई भी विद्यार्थियो की सुननें वाला नही था, एक दिन सुबह आसपास के शौचालयों पर ताला लगा दिया गया जहां पर लङकियों के जाने की व्यवस्था थी,  इसके बाद बहुत ही ज्यादा विरोध हुआ फिर शौचालयो को वापस खोला गया.

विद्यार्थियो की मांगे थी कि पारदर्शिता लायी जाये और अगर धांधलेबाजी हुई है तो उन्हे उचित न्याय मिलें। बाद में इस मामले को राजनीतिक मोङ देने के लिए कई राजनीतिक नेता बीच में कूदे परन्तु कोई खास सफलता नही मिली।

एसएससी के चेयनमैन उस वक्त आसिम खुराना हुआ करते थें छात्रो की एक मांग यह भी थी कि इतनी धांधली के बाद आसिम खुराना को हटाया जाये और कोई ईमानदार और योग्य व्यक्ति को एसएससी का चेयनमैन बनाया जायें.

कोई भी मीडिया यह कवर नही कर रहा था, खैर प्रदर्शन राजनीतिक मोङ लेता जा रहा था, मनोज तिवारी, एबीवीपी जैसे तमाम संगठन भी आंदोलन से जुङ चुके थे. जांच सीबीआई को सौपीं, जांच के आदेश दिये गये और यह भी पाया गया कि परीक्षा में गङबङिया हुई थी परन्तु कोर्ट ने यह कहा कि अब यह नही पता लगाया जा सकता कि कौन छात्र पैसे देकर आया है और कौन अपनी मेहनत सें.

कुल मिलाकर छात्रो की मेहनत और आंदोलन का कोई परिणाम नही निकला. और छात्रो के हाथ लगी तो सिर्फ निराशा और भ्रष्टारियो के हौसले और मजबूत हुए। साथ ही साथ आसिम खुराना एसएससी चेयनमैन का कार्यकाल भी दो वर्ष के लिए बढा दिया गया.

 

अब बात 2019-20 की है, एसएससी ने रौलेट एक्ट जैसा एक कानून पास किया UFM जिसमें बिना किसी पूर्वसूचना के छात्रो को अयोग्य घोषित कर दिया गया। एसएससी सीएचएसएल का दूसरा Descriptive paper जिसमें Essay writing and letters लिखने होते है उसमें छोटी, xyz , प्रिय अनुज जैसे शब्दो के कारण लगभग 5000 छात्रो को 0 नम्बर देकर फेल कर दिया गया।

बाद में आरटीआई डाली गयी तो यह बात सामने आयी कि दो समान व्यक्तियों नें समान शब्दो का चयन किया है फिर भी एक को फेल तथा दूसरे को पास कर दिया गया है। जिसके बाद हजारों छात्र मदद की भीख मांगने लगे कोई भी मीडिया चैनल और पत्रकार मदद के लिए खुलकर सामने नही आया।

बहरहाल छात्रो की बहुत ही ज्यादा मशक्कत के बाद UFM को हटवाने में सफलता पायी थी जिसमें छात्रो को बहुत बार ट्वीटर पर कैंपेन करनी पङी थी, परन्तु अभी भी बहुत सारी चीजें ऐसी है जिसके माध्यम से एसएससी छात्रो को परेशान कर रही है जैसे कि एसएससी एमटीएस की परीक्षा 24 नवम्बर 2019 को हुई थी जिसका परिणाम तकरीबन एक साल बाद आया था, एसएससी मेंस व टियर 3 की परिक्षा 23 नवम्बर 2020 को हुई थी परन्तु आज 6 महीने बाद भी छात्रो को नम्बर तक नही बताये गये है।

अभी हाल ही में नवम्बर 2020 में एक नया विवाद एसएससी के साथ जुङा, जहां पर एसएससी मेंस की परीक्षा तीन दिनो में हुई, 15–16–18 नवंबर, 15 और 16 नवम्बर वाले छात्रो के औसतन नम्बर 120 के आसपास बन रहे थें, और 18 नवम्बर वाले छात्रो के 170–180 के बीच में।

बाद में नार्मलाइजेशन प्रक्रिया के तहत छात्रो के 60–60 नम्बर तक बढाये जा रहे है और इतने ही कम किये जा रहे है। कई छात्र तो ऐसे है जो कि 200/200 लाने के बाद भी क्वालिफाई नही कर पाये है।

पिछले महीनों एसएससी सीएचएसएल की कटऑफ 160/200 गयी है, इस बार जनरल की 528/600 गयी है। छात्रो का कहना है कि 1 लाख बच्चे मेंस देते है उनकी परीक्षा एक दिन भी करायी जी सकती है या फिर सभी पेपर्स का लेवल एक भी रखा जा सकता है।

मई 2021 होने को है और 2017 के सभी छात्रो की ज्वाइनिंग अभी नही हुई है, व 2018 सीजीएल के बच्चो की ज्वाइनिंग अभी नही मिली है।

2019 सीजीएल के टिअर 2 व 3 का रिजल्ट अभी तक नही आ पाया है व 2018 सीएचएसएल की भर्ती 4 साल में भी पूरी नही हुई है व टाइपिंग टेस्ट का रिजल्ट 6 महीने बाद भी नही आया है।


छात्रो की एसएससी को लेकर क्या शिकायते है:-

·         एसएससी सीजीएल 2013 का पूरा एग्जाम कैंसिल कर दिया गया था और बाद में 2014 में दोबारा एग्जाम कराया गया था, साल 2013 में प्रश्नपत्र लीक हो गया था जिसमें 14 दोषियो को पकङा गया था जिसमें से एक पुलिसवाला भी था। इस सम्पूर्ण परीक्षा को निरस्त कर इसकी दोबारा परीक्षा 2014 में ली गयी थी।

·         एसएससी सीजीएल 2017 में मेंस का एग्जाम भी लीक हुआ था जिसके लिए छात्रो नें प्रदर्शन किया था व बाद में यह केस सीबीआई को सौंपा गया था, परन्तु कोई संतुष्टजनक परिणाम नही निकला और कोर्ट ने कहा कि ईमानदारी से चयनित हुए अभ्यर्थियों और नकल से चयनित हुए अभ्यर्थियो में विभेद करने का कोई तरीका नही है इसीलिए 2017 सीजीएल की परीक्षा को यथावत रखा गया।

·         एसएससी सीजीएल 2018 के छात्रो की ज्वाइनिंग अभी तक नही आयी है जबकि तीन साल होने को है।

·         एसएससी सीजीएल 2019 के टिअर 2 और टिअर 3 नवम्बर 2020 में हो चुके है और छात्रो को नम्बर अभी तक नही बतायें गयें है।

·         छात्र इस संस्था की लेटलटीफी और भ्रष्टाचार से इतना त्रस्त है कि एक डेट निकलवाने तक के लिए छात्रो के ट्वीटर पर प्रदर्शन करना पङता है, संस्था के गैर-जिम्मेदाराना रवैया इस कदर तक हावी है कि छात्र खून के आंसू रोने को मजबूर है।

 

नीचे दिया गया चार्ट देखिए और समझिये कि किस प्रकार 2012 के बाद से एसएससी के वेकैंसीज कम होती चली गयी है-



·        

छात्र एसएससी से क्या-क्या मांगे रखते है-

 

1.      छात्रो की एसएससी से जो पहली मांग है वह यही है कि भर्ती प्रक्रिया को तेज किया जाये क्योकि एक भर्ती प्रक्रिया को पूरी होने में तकरीबन 4 साल लगते है। इसी मध्य एक छात्र 4 सालों तक एसएससी के सभी पेपर देता है। एक भर्ती प्रक्रिया के पूरे होने का समय 1 साल है जो कि एक साल में पूरी हो जानी चाहिए उसके पश्चात् दूसरी साल की भर्ती प्रक्रिया चालू करनी चाहिए. लेकिन ऐसा रणनीति के तहत नही होता क्योकि एसएससी ऐसा करके एक ही छात्र से कई बार के पैसे वसूलती है।

2.      छात्रो का कहना है कि यूपीएससी व अन्य परीक्षाओ की भाति एसएससी में भी वेटिंग लिस्ट होनी चाहिए कि यदि कोई छात्र ज्वाइन नही करता है तो उसकी जगह पर कोई अन्य छात्र ज्वाइन कर सके जो कुछ नम्बर कम होने की वजह से ज्वाइन नही कर सका था।

3.      एक ही लेवल के पेपर बनाये जाने चाहिए और जितना हो सके उतनी कम शिफ्टो में एग्जाम लिये जाने चाहिए ताकि सबके लिए एक ही लेवल मेनटेन हो सके और मेंस की परीक्षा एक ही दिन करायी जानी चाहिए.

 

ऐसी बहुत सारी समस्याऐ है जिनसे छात्र निजात पाना चाहते है जिनके लिए अक्सर ट्वीटर पर कैपेन व प्रदर्शन किया करते है। एसएससी की सबसे खराब विशेषता यही है कि यह सबसे भ्रष्ट संस्था है जो कि लेट-लटीफी कर के लाखों युवाओ का समय बर्बाद कर रही है।

अगर आप या आपका कोई अन्य व्यक्ति भी एसएससी की लेटलतीफी और गैर जबावदेही से परेशान है तो हमें कमेंट कर के बतायें और यह आर्टिकल हर उस व्यक्ति तक शेयर करें जो सिस्टम की कमियों को आप पर थोपने की कोशिश करता है और आपको नाकाम साबित करनें में जुटा रहता है।

 

Monday, June 7, 2021

कांग्रेस के प्रमुख अधिवेशन- ये अधिवेशन इतिहास में बहुत महत्व रखते हैः

कांग्रेस की स्थापना सन् 1885 में की गयी थी जिसके संस्थापक ए.ओ.ह्यूम माने जाते है, कांग्रेस आगे चलकर गरम दल व नरम दल दो गुटो में विभाजित हो गया और उसके पश्चात मुस्लिम लीग के साथ भी आ गया।

कांग्रेस से सम्बन्धित सभी जानकारियो को उनके प्रमुख अधिवेशनो के माध्यम से समझने की कोशिश करते है-


 कांग्रेस के प्रमुख   अधिवेशन

 

 

कांग्रेस के अधिवेशन

अधिवेशनो से सम्बन्धित जानकारी

प्रथम अधिवेशन

कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन सन् 1885 को बंबई शहर में हुआ था, प्रथम अधिवेशन के अध्यक्ष व्योमेशचन्द्र बनर्जी थे. कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में लगभग 72 व्यक्तियो ने भाग लिया था।

कांग्रेस की स्थापना ए.ओ. ह्यूम ने की थी.

fद्वतीय अधिवेशन

कांग्रेस का दूसरा अधिवेशन कलकत्ता में सन् 1886 में हुआ था जिसकी अध्यक्षता दादाभाई नौरोजी ने की थी।

तीसरा अधिवेशन

कांग्रेस का तीसरा अधिवेशन मद्रास में सन् 1887 में हुआ था जिसकी अध्यक्षता बदरूद्दीन तैय्यब जी ने की थी। वह कांग्रेस के प्रथम मुस्लिम अध्यक्ष थे.

चौथा अधिवेशन

कांग्रेस का चौथा अधिवेशन इलाहाबाद में सन् 1888 में हुआ था, जिसकी अध्यक्षता जार्ज यूल ने की थी जो कि प्रथम अंग्रेज अध्यक्ष थे.

बारहवां अधिवेशन

कांग्रेस का बारहवां अधिवेशन सन् 1896 में कलकत्ता में किया गया था जिसकी अध्यक्षता रहीमतुल्ला सयानी ने की था, इस अधिवेशन में पहली बार वंदे मातरम् गाया गया था।

इक्कीसवां अधिवेशन

कांग्रेस का इक्कीसवां अधिवेशन सन् 1905 में बनारस में हुआ था जिसकी अध्यक्षता गोपालकृष्ण गोखले ने की थी।

बाईसवां अधिवेशन

कांग्रेस का 22 वां अधिवेशन सन् 1906 में कलकत्ता में हुआ था जिसकी अध्यक्षता दादाभाई नौरोजी ने की थी पहली बार स्वराज शब्द का प्रयोग इसी अधिवेशन के दौरान हुआ था।

तेईसवां अधिवेशन

कांग्रेस का तेईसवां अधिवेशन सन् 1907 में सूरत में किया किया गया था जिसकी अध्यक्षता रास बिहारी बोस ने की थी, इसी अधिवेशन में कांग्रेस दो भागो में विभाजित हो गयी थी।

सत्ताइसवां अधिवेशन

यह अधिवेशन सन् 1911 में कलकत्ता में हुआ था जिसकी अध्यक्षता पं बिशननारायण धर ने की थी, इस अधिवेशन की विशेषता यह थी कि इसमें पहली बार जन-गण-मन गाया गया था।

बत्तीसवां अधिवेशन

यह अधिवेशन लखनऊ में सन् 1916 में हुआ ता जिसकी अध्यक्षता अंबिकाचरण मजमूदार ने की थी. इस अधिवेशन में मुस्लिम लीग से समझौता हुआ व कांग्रेस और मुस्लिम लीग एक साथ आये थें.

तैतीसवां अधिवेशन

यह अधिवेशन सन् 1917 में कलकत्ता में हुआ था जिसकी अध्यक्षता एनी बेसेंट मे की थी. वह कांग्रेस की अध्यक्षता करने वाली प्रथम महिला थी।

चालीसवां अधिवेशन

यह अधिवेशन सन् 1924 में बेलगाँव में आयोजित किया गया था जिसकी अध्यक्षता महात्मा गाँधी ने की थी. उन्होने कांग्रेस की अध्यक्षता सिर्फ एक ही बार की थी।

इकतालीसवां अधिवेशन

कांग्रेस का यह अधिवेशन सन् 1925 में कानपुर में आयोजित हुआ था जिसकी अध्यक्ष श्रीमती सरोजनी नायडू थी जो कि पहली भारतीय कांग्रेस महिला अध्यक्ष थी।

तेतालीसवां अधिवेशन

यह अधिवेशन सन् 1927 में मद्रास में हुआ था जिसकी अध्यक्षता डॉ एम.ए.अंसारी ने की थी.

चौवालीसवां अधिवेशन

यह अधिवेशन 1928 में पंडित मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में कलकत्ता में हुआ था।

पैतालीसवां अधिवेशन

कांग्रेस का यह अधिवेशन 1929 में लाहौर में आयोजित हुआ था जिसकी अध्यक्षता पंडित जवाहर लाल नेहरू ने की थी, इसमें पहली बार पूर्ण स्वराज की माँग की उठाया गया था।

छियालीसवां अधिवेशन

कांग्रेस का यह अधिवेशन 1931 में कराची में आयोजित हुआ था जिसकी अध्यक्षता सरदार बल्लभ भाई पटेल ने की थी जिसमें पहली बार मौलिक अधिकारो की माँग को उठाया गया था।

बावनवां अधिवेशन

कांग्रेस का बावनवां अधिवेशन 1938 में हरिपुरा में हुआ था जिसकी अध्यक्षता सुभाष चंद्र बोस ने की थी।

तिरपनवां अधिवेशन

यह अधिवेशन सन् 1939 में त्रिपुरी में आयोजित किया गया था, जिसकी अध्यक्षता सुभाषचंद्र बोस ने की थी.

पचपनवां अधिवेशन

कांग्रेस का यह अधिवेशन सन् 1946 में मेरठ में आयोजित किया गया था जिसकी अध्यक्षता आचार्य जे.बी कृपलानी ने की थी. आचार्य जे.बी कृपलानी स्वतंत्रता के समय कांग्रेस के अध्यक्ष थे.

 

Saturday, June 5, 2021

डॉ सत्यपाल की गिरफ्तारी के बाद अंग्रेज नीचता की किस हद तक गिर गये थे जानिये यहां से-

जलियांवाला हत्याकांड के वक्त पंजाब में डॉ सत्यपाल व डॉ किचलू लोगो के नेता बनकर उभरे थे व उन्हे जनता बेहद पसंद करती थी, वह भी लोगो की भलाई के लिए कार्य कर रहे थें। 

पंजाब में उत्पन्न रोष के कारण पंजाब सरकार ने इनको दोषी ठहराया व इन्हे अज्ञात जगह पर भेज दिया। पंजाब की जनता डॉ सत्यपाल व डॉ किचलू की गिरफ्तारी के विरोध में जलियांवाला बाग में इकठ्ठी हुई थी और इससे क्रोधित होकर जनरल डायर ने भीड पर गोली चलाने का आदेश दे दिया था। 

Image Source- Tribuneindia.com



उस घटना के बाद डॉ सत्यपाल ने क्या कहा था आइये पढते है-

 

मुझे 10 तारीख को अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर माइल्स इर्विग का संदेश प्राप्त हुआ कि मैं प्रात: दस बजे उनसे उनके सरकारी आवास पर जाकर भेंट करूं।उस समय मैने रेलवें स्टेशन के प्लेटफार्म पर भारतीयों को भी जाने की अनुमति देने की मुहिम छेङ रखी थी।
इस कारण सोचा कि उसी संदर्भ में वार्ता की जानी होगी, लेकिन वहां पहुंचते ही मुझे और डॉ किचलू को गिरफ्तार कर सशस्त्र सैनिकों के साथ मोटर वाहन द्वारा धर्मशाला भिजवा दिया गया।

 

एक महीने तक हमें कैद में रखने के बाद सिंहासन के प्रति राजद्रोह के जुर्म में बंदी बनाया गया व लाहौर की एक अदालत में पेश किया गया. तीन जून को मार्शल के सामने हाजिर किया गया । इस बीच यातनाऐ देने का कोई भी अवसर छोङा नही गया।
एक संकरी कोठरी में हमें रखा गया, वही पर सोना होता था और वही पर नित्य-कर्म भी करने होते थे।

 


मैने प्लेटफार्म पर प्रवेश देने के लिए शांतिपूर्ण आंदोलन किया था। जिसके बदले में मुझ पर लूटमार, आग लगाने, हत्या करने, डकैती डालने, माहौल खराब करने, षडयंत्र रचने, गोरो के खिलाफ जनभावना फैलाने व मुकुट के विरूद्ध की धाराऐ लगाकर मुकदमें कायम किए गयें।

 

पुलिस सर्वेसर्वा बन चुकी थी व उनके डर से सच्चाई की पैरवी करने वाला निडर शख्स कोई भी नहीं था। क्रूर गोरो के व्यवहार से स्तब्ध व भयभीत लोगो नें उनके खिलाफ गवाही नही दी। पूर्व में गवाहो को जिस प्रकार प्रताडित किया गया उससे भी वे सदमें में थे. अंतत: निर्णय का दिन आया और 7 लोगो को आजन्म कारावास, कुछ को रिहाई, दो को तीन वर्ष की कठोर कैद व डॉ बशीर को फांसी की सजा दी गई।

 

जेल में रहते हुए ही मैनें हंटर कमेंटी के बारे में सुना था और बताया गया कि न्यायिक कार्यवाही में सवाल-जवाब नही किये जाने थे और न ही वरिष्ठ नागरिक उपस्थित किए जाने थे। मैंने सरकारी रूख देखकर तय किया था कि खामोश रहना ही उचित होगा।

हम सभी गतिविधियां सार्वजनिक रूप से करते रहे थे। सभाएं भी खुलेआम ही होती थी। अत: बगावत का षडयंत्र रचा जाता तो उसे गुपचुप ही रचा जाता था। यह बगावत तो प्रशासकों के कुटिल गिमाग की उपज थी, ताकि बगावत का हौव्वा खङा कर लोगो को प्रताङित कर सकें।

मै और मेरे साथ के सभी लोग कानून में विश्वास करने वाले लोग थें। अंग्रेजों का यह कहना कि हिंदुस्तान पर आक्रमण करने के लिए अफगानिस्तान के अमीर के पास न्यौता भेजा गया था, कतई वागियात बात थी।

 


जो ब्रिटिश प्राशासन जर्मनी के छक्के छुङा रहा था, उस प्रशासन को किसी अफगानिस्तानी अमीर से भला किस प्रकार डराया जा सकता थायदि अफगानिस्तान से युद्ध छिडा था तो वह अंग्रेजो से युद्ध छिडा था तो वह अफगानिस्तान की अफगान नीति के कारण छिङा था। उसमें हमारा कोई लेना-देना नही था।

ब्रिटिश अत्याचाक की इंतहां को इसी बात से समझा जा सकता है कि उन्होने मेरे बुजुर्गवार पिता को, जिनसे प्रशासन को कोई खतरा नही था, उस पिता को जेल मे डालकर यातनाएं दी कि इस कारण बेटा टूट जायेगा।

डॉ सैफुद्दीन किचलू ने जलियांवाला बाग हत्याकांड के बारे में यह बताया जो अग्रेजो की पोल खोल देता है-

 डॉक्टर सैफुद्दीन किचलू अलीगढ़ विश्वविद्यालय के प्रतिभाशाली छात्र थे।  वार एट लॉ व  डॉक्टरेट करने के लिए वह इंग्लैंड गए व 1912 में डॉक्टरेट कर वापस भारत आ गए।

 इनका घर अमृतसर में था। इन्होंने 1916 से कांग्रेस व मुस्लिम लीग की सभा में भाग लेना शुरू कर दिया था। इनका उद्देश्य यह था कि भारतीयों का उत्थान हो व उन्नति हो, वह इसके लिए प्रयत्नशील भी थे जिसके कारण अंग्रेज इन्हें पसंद नहीं करते थे।

डॉ. सैफुद्दीन किचलू



 

 जलियांवाला बाग हत्याकांड के वक्त डॉ किचलू की आपबीती-

 

डॉ सत्यपाल तथा मैंने पंजाब के दूसरे शहरों में भी सभाएं करके कांग्रेस दल का और उसकी सोच का प्रचार किया था। अमृतसर कि वह सभा जो 21 मार्च 1919 को हुई थी उसमें 40000 लोगों की मौजूदगी दर्ज हुई थी।

 

हम दोनों को नोटिस दिया गया कि हम किसी भी सार्वजनिक सभा के मंच पर मौजूद नजर नहीं आने चाहिए। इस प्रकार हमें प्रताड़ित करने के लिए पाबंदी करने की कार्यवाही की गई।

 6 अप्रैल को अमृतसर में शांतिपूर्ण हड़ताल हुई, 9 तारीख को शहर में रामनवमी का जुलूस भी अच्छे माहौल से निकला और कोई अप्रिय वारदात नहीं घटी।

 

 मैं अपनी तारीफ नहीं करता किंतु सच्चाई यही है कि हिंदू मुस्लिम सौहार्द की भावना में यदि ऐसा हुआ तो उसका कारण यही था मैं इस प्रकार की तकरीरे करता था जिससे दोनों समुदायों के विश्वास में बढ़ोतरी होती।

 

 10 अप्रैल को कलेक्टर ने 11:00 बजे के मध्य अपने सरकारी आवास पर मुझे बुलाया। मेरे वहां पहुंचने पर मुझे व डॉ सत्यपाल को गिरफ्तार कर धर्मशाला भेज दिया। दोनों को अलग अलग रखा गया व हमें हमारे अपराध कें बारें में कुछ नही बताया गया। फिर 5 और 6 मई को हमें अदालत में प्रस्तुत कर बताया गया कि हम धारा 124 (अ) कें दोषी हैं। इसके पूर्व हमें परेशान और प्रताड़ित करके तोड़ने का प्रयास किया गया।

 

 आदतन मुजरिम जैसा सुलूक हमारे साथ किया गया, दुर्दशा वाली स्थिति में रखकर अंग्रेज अधिकारियों ने मेरी हंसी उड़ाई।

Friday, June 4, 2021

भारत की 10 प्रमुख जनजातियां- इस एक जनजाति में एक स्त्री कई पुरुषो से विवाह कर सकती है-

 भारत में ऐसी सैकड़ो जातियां और जनजातियां है जो आज भी अपनें पुरानें रीति-रिवाजों कें अनुसार चलतें है और आज की आधुनिकता सें कोसो दूर सामान्य जीवन जीतें है। इनकें कुछ नियम सामान्य समाज सें बिलकुल हटकर होतें है। आज भी यें लोग पर्वतों पर रहतें है और आधुनिकता सें बहुत दूर है।

आइयें जानतें है ऐसी ही जातियो और जनजातियों कें बारें में -

 

मिशमी 

 

यह जनजाति पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश असम और तिब्बत क्षेत्र में पाई जाती है जिसमें लोग तिब्बती बर्मी परिवार की भाषा बोलते हैं.

 

मिशमी लोगों का वंश पिता की तरफ से चलता है और युवा अपने पिता के कुल के बाहर विवाह के लिए बाध्य हैं उनकी बस्तियां छोटी होती है इनकी जनजाति का कृषि  कृषि का तरीका पुराना है यह देवताओं पर विश्वास करते हैं जनसंख्या के आधार पर यह अरुणाचल में सबसे बड़ी जनजाति है।

 

भील

यह भारत की एक प्रमुख जनजाति है इस जनजाति के लोग मुख्य रूप से कृषि करते हैं। सामाजिक दृष्टि से  इनकी पीढ़ियां पिता की तरफ से चलती हैं। यह जनजाति मुख्य रूप से गुजरात, मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और राजस्थान में पाई जाती है।

 भील जाति दो प्रकार उजलिया भील व लंगोट भील में विभाजित है और उजलिया भील मूल रूप से वे क्षत्रिय हैं जो मुगल आक्रमण के समय जंगलों में चले गए थे और मूल भीलो से विवाह कर वहीं रहने लगे। लंगोट भील वहीं के रहने वाले मूल भील है ।

 

खासी

 खासी जनजाति पूर्वोत्तर भारत के मेघालयअसम और बांग्लादेश के कुछ क्षेत्रों में निवास करती है। यह लोग जयंतिया पहाड़ियों में रहते हैं और हष्ट पुष्ट व परिश्रमी होते हैं।

 इस जनजाति में वंश मातृसत्तात्मक होता है शादी के बाद इनमें पति ससुराल में रहता है और महिलाओं द्वारा चुने गए पुरुषों से शादी होती है। यह लोग मुख्य रूप से खेती करते हैं।

 

गद्दी

यह जनजाति हिमाचल प्रदेश के पश्चिमी सीमा पर पाई जाती है। गद्दी जनजाति के लोग अपने आप को यह राजस्थान के 'गढवी' शासकों का वंशज बताते हैं, इनका मूल विश्वास है कि मुगलों के आक्रमण काल में धर्म व समाज की पवित्रता बनाए रखने के लिए राजस्थान छोड़कर हिमाचल में आकर बसे थे।

 गद्दी जनजाति के लोग हिंदू धर्मावलंबी होते हैं यें शिव व मां पार्वती के विविध रूपों के साथ उनकी आराधना करते हैं। उनके द्वारा नवरात्र का पर्व विशेष रूप से मनाया जाता है। इन लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती है यह जौं, गेहूं और चावल की खेती करते हैं।

 

गोंड

यह जनजाति विंध्य पर्वत, सतपुड़ा, छत्तीसगढ़ के मैदान में गोदावरी नदी के आसपास रहती है।गोंड, भारत की प्रमुख  जनजाति है यह  प्राचीन गोंड राजाओं को अपना वंशज मानती है। 

मध्य प्रदेशछत्तीसगढ़, उड़ीसा राज्य में यह जनजाति अब मुख्य रूप सें निवास करती है, गोंड जनजाति के लोग काले व भूरे रंग के होते हैं्।

 केसलापुर, जात्रा व मड़ाई गोंड जनजाति के प्रमुख पर्व है तथा गोसावी इस जनजाति का प्रमुख लोक नृत्य है।

 

थारू

इस जनजाति का निवास क्षेत्र नैनीताल, उत्तर प्रदेश व दक्षिण पूर्व से लेकर गोरखपुर और नेपाल की सीमा तक है। थारू लोग खेती, पशुपालन, शिकार मछली पकड़ते हैं वह वनों में कार्य करते हैं ।

समाज पितृसत्तात्मक होने के बावजूद संपत्ति पर पुरुष से ज्यादा महिला का अधिकार होता है, थारू जनजाति के लोग प्रेत-आत्माओं की पूजा करते हैं यह ईमानदार शांत प्रकृति वाले होते हैं तथा होली दीपावली व जन्माष्टमी पर्व को बड़े आनंद से बनाते हैं।

 

डफला

 यह जनजाति पूर्वी भूटान, अरुणाचल प्रदेश में निवास करती है। यह चीनी-तिब्बती परिवार की तिब्बती-बर्मी भाषा बोलते हैं। इन लोगों को 'बंगनी' भी कहा जाता है।

 यह लोग झूम खेती, शिकार व मछली पकड़ते है। यह बल्लियो से बने घरों में 3000 से 6000 फिट की ऊंचाई पर रहते हैं।  समाज पितृसत्तात्मक होता है व एक ही परिवार के नीचे अन्य परिवार के सदस्य रहते हैं लेकिन सब का चूल्हा अलग होता है।

 

टोडा

 

 यह जनजाति नीलगिरी पर्वत पर रहती है जिसका मुख्य व्यवसाय पशुपालन है  यह लोग 'टोडा' भाषा बोलते हैं जो कन्नड़ भाषा से संबंधित एक द्रविड़ भाषा है। यह लोग अपना परंपरागत दूध का धंधा और बांस की वस्तुओं का व्यापार  करतें है व नीलगिरी के अन्य लोगों से कपड़ा और मिट्टी के बर्तन लेते हैं।

 इस जनजाति में बहुविवाह आम बात है इसमें कई लोगों की एक ही पत्नी हो सकती है।

 टोडा जनजाति में जब कोई स्त्री गर्भवती होती है तो पुरुष उसे तीर व कमान खिलौने भेंट करता है और बच्चे का पिता होने की घोषणा करता है।

 

कुकी

यह जनजाति भारत और म्यांमार की सीमा पर मिजो पहाड़ियों पर रहती है यह लोग कद में छोटे होते हैं और नागा लोगों के ज्यादा खूंखार समझे जाते हैं।

  इस जनजाति के लोग अपने सरदार की आज्ञा का पालन करना अपना धर्म समझते हैं उनका सरदार एक प्रकार का राजा होता है जिस के आदेश का आंख मूंदकर पालन किया जाता है ।

 मुखिया का सबसे छोटा पुत्र अपने पिता की संपत्ति का उत्तराधिकारी होता है।

 

नागा

 यह जनजाति मुख्य रूप से नागालैंड में नंगा पर्वत श्रेणियों पर निवास करती है जो पूर्वोत्तर भारत और म्यांमार के पश्चिमोत्तर क्षेत्र में निवास करती है ।

 यह बांस के बने घरों में रहते हैं इनका मुख्य धंधा शिकार है यह एक योद्धा जनजाति है तथा उनकी वीरता को देखकर ही इनके विवाह होते हैं ।

 हॉर्नबिल उत्सव नगर लोगों का प्रमुख त्योहार है  इनका प्रमुख धर्म ईसाई  है ।

 

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