Monday, June 7, 2021

कांग्रेस के प्रमुख अधिवेशन- ये अधिवेशन इतिहास में बहुत महत्व रखते हैः

कांग्रेस की स्थापना सन् 1885 में की गयी थी जिसके संस्थापक ए.ओ.ह्यूम माने जाते है, कांग्रेस आगे चलकर गरम दल व नरम दल दो गुटो में विभाजित हो गया और उसके पश्चात मुस्लिम लीग के साथ भी आ गया।

कांग्रेस से सम्बन्धित सभी जानकारियो को उनके प्रमुख अधिवेशनो के माध्यम से समझने की कोशिश करते है-


 कांग्रेस के प्रमुख   अधिवेशन

 

 

कांग्रेस के अधिवेशन

अधिवेशनो से सम्बन्धित जानकारी

प्रथम अधिवेशन

कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन सन् 1885 को बंबई शहर में हुआ था, प्रथम अधिवेशन के अध्यक्ष व्योमेशचन्द्र बनर्जी थे. कांग्रेस के प्रथम अधिवेशन में लगभग 72 व्यक्तियो ने भाग लिया था।

कांग्रेस की स्थापना ए.ओ. ह्यूम ने की थी.

fद्वतीय अधिवेशन

कांग्रेस का दूसरा अधिवेशन कलकत्ता में सन् 1886 में हुआ था जिसकी अध्यक्षता दादाभाई नौरोजी ने की थी।

तीसरा अधिवेशन

कांग्रेस का तीसरा अधिवेशन मद्रास में सन् 1887 में हुआ था जिसकी अध्यक्षता बदरूद्दीन तैय्यब जी ने की थी। वह कांग्रेस के प्रथम मुस्लिम अध्यक्ष थे.

चौथा अधिवेशन

कांग्रेस का चौथा अधिवेशन इलाहाबाद में सन् 1888 में हुआ था, जिसकी अध्यक्षता जार्ज यूल ने की थी जो कि प्रथम अंग्रेज अध्यक्ष थे.

बारहवां अधिवेशन

कांग्रेस का बारहवां अधिवेशन सन् 1896 में कलकत्ता में किया गया था जिसकी अध्यक्षता रहीमतुल्ला सयानी ने की था, इस अधिवेशन में पहली बार वंदे मातरम् गाया गया था।

इक्कीसवां अधिवेशन

कांग्रेस का इक्कीसवां अधिवेशन सन् 1905 में बनारस में हुआ था जिसकी अध्यक्षता गोपालकृष्ण गोखले ने की थी।

बाईसवां अधिवेशन

कांग्रेस का 22 वां अधिवेशन सन् 1906 में कलकत्ता में हुआ था जिसकी अध्यक्षता दादाभाई नौरोजी ने की थी पहली बार स्वराज शब्द का प्रयोग इसी अधिवेशन के दौरान हुआ था।

तेईसवां अधिवेशन

कांग्रेस का तेईसवां अधिवेशन सन् 1907 में सूरत में किया किया गया था जिसकी अध्यक्षता रास बिहारी बोस ने की थी, इसी अधिवेशन में कांग्रेस दो भागो में विभाजित हो गयी थी।

सत्ताइसवां अधिवेशन

यह अधिवेशन सन् 1911 में कलकत्ता में हुआ था जिसकी अध्यक्षता पं बिशननारायण धर ने की थी, इस अधिवेशन की विशेषता यह थी कि इसमें पहली बार जन-गण-मन गाया गया था।

बत्तीसवां अधिवेशन

यह अधिवेशन लखनऊ में सन् 1916 में हुआ ता जिसकी अध्यक्षता अंबिकाचरण मजमूदार ने की थी. इस अधिवेशन में मुस्लिम लीग से समझौता हुआ व कांग्रेस और मुस्लिम लीग एक साथ आये थें.

तैतीसवां अधिवेशन

यह अधिवेशन सन् 1917 में कलकत्ता में हुआ था जिसकी अध्यक्षता एनी बेसेंट मे की थी. वह कांग्रेस की अध्यक्षता करने वाली प्रथम महिला थी।

चालीसवां अधिवेशन

यह अधिवेशन सन् 1924 में बेलगाँव में आयोजित किया गया था जिसकी अध्यक्षता महात्मा गाँधी ने की थी. उन्होने कांग्रेस की अध्यक्षता सिर्फ एक ही बार की थी।

इकतालीसवां अधिवेशन

कांग्रेस का यह अधिवेशन सन् 1925 में कानपुर में आयोजित हुआ था जिसकी अध्यक्ष श्रीमती सरोजनी नायडू थी जो कि पहली भारतीय कांग्रेस महिला अध्यक्ष थी।

तेतालीसवां अधिवेशन

यह अधिवेशन सन् 1927 में मद्रास में हुआ था जिसकी अध्यक्षता डॉ एम.ए.अंसारी ने की थी.

चौवालीसवां अधिवेशन

यह अधिवेशन 1928 में पंडित मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में कलकत्ता में हुआ था।

पैतालीसवां अधिवेशन

कांग्रेस का यह अधिवेशन 1929 में लाहौर में आयोजित हुआ था जिसकी अध्यक्षता पंडित जवाहर लाल नेहरू ने की थी, इसमें पहली बार पूर्ण स्वराज की माँग की उठाया गया था।

छियालीसवां अधिवेशन

कांग्रेस का यह अधिवेशन 1931 में कराची में आयोजित हुआ था जिसकी अध्यक्षता सरदार बल्लभ भाई पटेल ने की थी जिसमें पहली बार मौलिक अधिकारो की माँग को उठाया गया था।

बावनवां अधिवेशन

कांग्रेस का बावनवां अधिवेशन 1938 में हरिपुरा में हुआ था जिसकी अध्यक्षता सुभाष चंद्र बोस ने की थी।

तिरपनवां अधिवेशन

यह अधिवेशन सन् 1939 में त्रिपुरी में आयोजित किया गया था, जिसकी अध्यक्षता सुभाषचंद्र बोस ने की थी.

पचपनवां अधिवेशन

कांग्रेस का यह अधिवेशन सन् 1946 में मेरठ में आयोजित किया गया था जिसकी अध्यक्षता आचार्य जे.बी कृपलानी ने की थी. आचार्य जे.बी कृपलानी स्वतंत्रता के समय कांग्रेस के अध्यक्ष थे.

 

Saturday, June 5, 2021

डॉ सत्यपाल की गिरफ्तारी के बाद अंग्रेज नीचता की किस हद तक गिर गये थे जानिये यहां से-

जलियांवाला हत्याकांड के वक्त पंजाब में डॉ सत्यपाल व डॉ किचलू लोगो के नेता बनकर उभरे थे व उन्हे जनता बेहद पसंद करती थी, वह भी लोगो की भलाई के लिए कार्य कर रहे थें। 

पंजाब में उत्पन्न रोष के कारण पंजाब सरकार ने इनको दोषी ठहराया व इन्हे अज्ञात जगह पर भेज दिया। पंजाब की जनता डॉ सत्यपाल व डॉ किचलू की गिरफ्तारी के विरोध में जलियांवाला बाग में इकठ्ठी हुई थी और इससे क्रोधित होकर जनरल डायर ने भीड पर गोली चलाने का आदेश दे दिया था। 

Image Source- Tribuneindia.com



उस घटना के बाद डॉ सत्यपाल ने क्या कहा था आइये पढते है-

 

मुझे 10 तारीख को अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर माइल्स इर्विग का संदेश प्राप्त हुआ कि मैं प्रात: दस बजे उनसे उनके सरकारी आवास पर जाकर भेंट करूं।उस समय मैने रेलवें स्टेशन के प्लेटफार्म पर भारतीयों को भी जाने की अनुमति देने की मुहिम छेङ रखी थी।
इस कारण सोचा कि उसी संदर्भ में वार्ता की जानी होगी, लेकिन वहां पहुंचते ही मुझे और डॉ किचलू को गिरफ्तार कर सशस्त्र सैनिकों के साथ मोटर वाहन द्वारा धर्मशाला भिजवा दिया गया।

 

एक महीने तक हमें कैद में रखने के बाद सिंहासन के प्रति राजद्रोह के जुर्म में बंदी बनाया गया व लाहौर की एक अदालत में पेश किया गया. तीन जून को मार्शल के सामने हाजिर किया गया । इस बीच यातनाऐ देने का कोई भी अवसर छोङा नही गया।
एक संकरी कोठरी में हमें रखा गया, वही पर सोना होता था और वही पर नित्य-कर्म भी करने होते थे।

 


मैने प्लेटफार्म पर प्रवेश देने के लिए शांतिपूर्ण आंदोलन किया था। जिसके बदले में मुझ पर लूटमार, आग लगाने, हत्या करने, डकैती डालने, माहौल खराब करने, षडयंत्र रचने, गोरो के खिलाफ जनभावना फैलाने व मुकुट के विरूद्ध की धाराऐ लगाकर मुकदमें कायम किए गयें।

 

पुलिस सर्वेसर्वा बन चुकी थी व उनके डर से सच्चाई की पैरवी करने वाला निडर शख्स कोई भी नहीं था। क्रूर गोरो के व्यवहार से स्तब्ध व भयभीत लोगो नें उनके खिलाफ गवाही नही दी। पूर्व में गवाहो को जिस प्रकार प्रताडित किया गया उससे भी वे सदमें में थे. अंतत: निर्णय का दिन आया और 7 लोगो को आजन्म कारावास, कुछ को रिहाई, दो को तीन वर्ष की कठोर कैद व डॉ बशीर को फांसी की सजा दी गई।

 

जेल में रहते हुए ही मैनें हंटर कमेंटी के बारे में सुना था और बताया गया कि न्यायिक कार्यवाही में सवाल-जवाब नही किये जाने थे और न ही वरिष्ठ नागरिक उपस्थित किए जाने थे। मैंने सरकारी रूख देखकर तय किया था कि खामोश रहना ही उचित होगा।

हम सभी गतिविधियां सार्वजनिक रूप से करते रहे थे। सभाएं भी खुलेआम ही होती थी। अत: बगावत का षडयंत्र रचा जाता तो उसे गुपचुप ही रचा जाता था। यह बगावत तो प्रशासकों के कुटिल गिमाग की उपज थी, ताकि बगावत का हौव्वा खङा कर लोगो को प्रताङित कर सकें।

मै और मेरे साथ के सभी लोग कानून में विश्वास करने वाले लोग थें। अंग्रेजों का यह कहना कि हिंदुस्तान पर आक्रमण करने के लिए अफगानिस्तान के अमीर के पास न्यौता भेजा गया था, कतई वागियात बात थी।

 


जो ब्रिटिश प्राशासन जर्मनी के छक्के छुङा रहा था, उस प्रशासन को किसी अफगानिस्तानी अमीर से भला किस प्रकार डराया जा सकता थायदि अफगानिस्तान से युद्ध छिडा था तो वह अंग्रेजो से युद्ध छिडा था तो वह अफगानिस्तान की अफगान नीति के कारण छिङा था। उसमें हमारा कोई लेना-देना नही था।

ब्रिटिश अत्याचाक की इंतहां को इसी बात से समझा जा सकता है कि उन्होने मेरे बुजुर्गवार पिता को, जिनसे प्रशासन को कोई खतरा नही था, उस पिता को जेल मे डालकर यातनाएं दी कि इस कारण बेटा टूट जायेगा।

डॉ सैफुद्दीन किचलू ने जलियांवाला बाग हत्याकांड के बारे में यह बताया जो अग्रेजो की पोल खोल देता है-

 डॉक्टर सैफुद्दीन किचलू अलीगढ़ विश्वविद्यालय के प्रतिभाशाली छात्र थे।  वार एट लॉ व  डॉक्टरेट करने के लिए वह इंग्लैंड गए व 1912 में डॉक्टरेट कर वापस भारत आ गए।

 इनका घर अमृतसर में था। इन्होंने 1916 से कांग्रेस व मुस्लिम लीग की सभा में भाग लेना शुरू कर दिया था। इनका उद्देश्य यह था कि भारतीयों का उत्थान हो व उन्नति हो, वह इसके लिए प्रयत्नशील भी थे जिसके कारण अंग्रेज इन्हें पसंद नहीं करते थे।

डॉ. सैफुद्दीन किचलू



 

 जलियांवाला बाग हत्याकांड के वक्त डॉ किचलू की आपबीती-

 

डॉ सत्यपाल तथा मैंने पंजाब के दूसरे शहरों में भी सभाएं करके कांग्रेस दल का और उसकी सोच का प्रचार किया था। अमृतसर कि वह सभा जो 21 मार्च 1919 को हुई थी उसमें 40000 लोगों की मौजूदगी दर्ज हुई थी।

 

हम दोनों को नोटिस दिया गया कि हम किसी भी सार्वजनिक सभा के मंच पर मौजूद नजर नहीं आने चाहिए। इस प्रकार हमें प्रताड़ित करने के लिए पाबंदी करने की कार्यवाही की गई।

 6 अप्रैल को अमृतसर में शांतिपूर्ण हड़ताल हुई, 9 तारीख को शहर में रामनवमी का जुलूस भी अच्छे माहौल से निकला और कोई अप्रिय वारदात नहीं घटी।

 

 मैं अपनी तारीफ नहीं करता किंतु सच्चाई यही है कि हिंदू मुस्लिम सौहार्द की भावना में यदि ऐसा हुआ तो उसका कारण यही था मैं इस प्रकार की तकरीरे करता था जिससे दोनों समुदायों के विश्वास में बढ़ोतरी होती।

 

 10 अप्रैल को कलेक्टर ने 11:00 बजे के मध्य अपने सरकारी आवास पर मुझे बुलाया। मेरे वहां पहुंचने पर मुझे व डॉ सत्यपाल को गिरफ्तार कर धर्मशाला भेज दिया। दोनों को अलग अलग रखा गया व हमें हमारे अपराध कें बारें में कुछ नही बताया गया। फिर 5 और 6 मई को हमें अदालत में प्रस्तुत कर बताया गया कि हम धारा 124 (अ) कें दोषी हैं। इसके पूर्व हमें परेशान और प्रताड़ित करके तोड़ने का प्रयास किया गया।

 

 आदतन मुजरिम जैसा सुलूक हमारे साथ किया गया, दुर्दशा वाली स्थिति में रखकर अंग्रेज अधिकारियों ने मेरी हंसी उड़ाई।

Friday, June 4, 2021

भारत की 10 प्रमुख जनजातियां- इस एक जनजाति में एक स्त्री कई पुरुषो से विवाह कर सकती है-

 भारत में ऐसी सैकड़ो जातियां और जनजातियां है जो आज भी अपनें पुरानें रीति-रिवाजों कें अनुसार चलतें है और आज की आधुनिकता सें कोसो दूर सामान्य जीवन जीतें है। इनकें कुछ नियम सामान्य समाज सें बिलकुल हटकर होतें है। आज भी यें लोग पर्वतों पर रहतें है और आधुनिकता सें बहुत दूर है।

आइयें जानतें है ऐसी ही जातियो और जनजातियों कें बारें में -

 

मिशमी 

 

यह जनजाति पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश असम और तिब्बत क्षेत्र में पाई जाती है जिसमें लोग तिब्बती बर्मी परिवार की भाषा बोलते हैं.

 

मिशमी लोगों का वंश पिता की तरफ से चलता है और युवा अपने पिता के कुल के बाहर विवाह के लिए बाध्य हैं उनकी बस्तियां छोटी होती है इनकी जनजाति का कृषि  कृषि का तरीका पुराना है यह देवताओं पर विश्वास करते हैं जनसंख्या के आधार पर यह अरुणाचल में सबसे बड़ी जनजाति है।

 

भील

यह भारत की एक प्रमुख जनजाति है इस जनजाति के लोग मुख्य रूप से कृषि करते हैं। सामाजिक दृष्टि से  इनकी पीढ़ियां पिता की तरफ से चलती हैं। यह जनजाति मुख्य रूप से गुजरात, मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और राजस्थान में पाई जाती है।

 भील जाति दो प्रकार उजलिया भील व लंगोट भील में विभाजित है और उजलिया भील मूल रूप से वे क्षत्रिय हैं जो मुगल आक्रमण के समय जंगलों में चले गए थे और मूल भीलो से विवाह कर वहीं रहने लगे। लंगोट भील वहीं के रहने वाले मूल भील है ।

 

खासी

 खासी जनजाति पूर्वोत्तर भारत के मेघालयअसम और बांग्लादेश के कुछ क्षेत्रों में निवास करती है। यह लोग जयंतिया पहाड़ियों में रहते हैं और हष्ट पुष्ट व परिश्रमी होते हैं।

 इस जनजाति में वंश मातृसत्तात्मक होता है शादी के बाद इनमें पति ससुराल में रहता है और महिलाओं द्वारा चुने गए पुरुषों से शादी होती है। यह लोग मुख्य रूप से खेती करते हैं।

 

गद्दी

यह जनजाति हिमाचल प्रदेश के पश्चिमी सीमा पर पाई जाती है। गद्दी जनजाति के लोग अपने आप को यह राजस्थान के 'गढवी' शासकों का वंशज बताते हैं, इनका मूल विश्वास है कि मुगलों के आक्रमण काल में धर्म व समाज की पवित्रता बनाए रखने के लिए राजस्थान छोड़कर हिमाचल में आकर बसे थे।

 गद्दी जनजाति के लोग हिंदू धर्मावलंबी होते हैं यें शिव व मां पार्वती के विविध रूपों के साथ उनकी आराधना करते हैं। उनके द्वारा नवरात्र का पर्व विशेष रूप से मनाया जाता है। इन लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती है यह जौं, गेहूं और चावल की खेती करते हैं।

 

गोंड

यह जनजाति विंध्य पर्वत, सतपुड़ा, छत्तीसगढ़ के मैदान में गोदावरी नदी के आसपास रहती है।गोंड, भारत की प्रमुख  जनजाति है यह  प्राचीन गोंड राजाओं को अपना वंशज मानती है। 

मध्य प्रदेशछत्तीसगढ़, उड़ीसा राज्य में यह जनजाति अब मुख्य रूप सें निवास करती है, गोंड जनजाति के लोग काले व भूरे रंग के होते हैं्।

 केसलापुर, जात्रा व मड़ाई गोंड जनजाति के प्रमुख पर्व है तथा गोसावी इस जनजाति का प्रमुख लोक नृत्य है।

 

थारू

इस जनजाति का निवास क्षेत्र नैनीताल, उत्तर प्रदेश व दक्षिण पूर्व से लेकर गोरखपुर और नेपाल की सीमा तक है। थारू लोग खेती, पशुपालन, शिकार मछली पकड़ते हैं वह वनों में कार्य करते हैं ।

समाज पितृसत्तात्मक होने के बावजूद संपत्ति पर पुरुष से ज्यादा महिला का अधिकार होता है, थारू जनजाति के लोग प्रेत-आत्माओं की पूजा करते हैं यह ईमानदार शांत प्रकृति वाले होते हैं तथा होली दीपावली व जन्माष्टमी पर्व को बड़े आनंद से बनाते हैं।

 

डफला

 यह जनजाति पूर्वी भूटान, अरुणाचल प्रदेश में निवास करती है। यह चीनी-तिब्बती परिवार की तिब्बती-बर्मी भाषा बोलते हैं। इन लोगों को 'बंगनी' भी कहा जाता है।

 यह लोग झूम खेती, शिकार व मछली पकड़ते है। यह बल्लियो से बने घरों में 3000 से 6000 फिट की ऊंचाई पर रहते हैं।  समाज पितृसत्तात्मक होता है व एक ही परिवार के नीचे अन्य परिवार के सदस्य रहते हैं लेकिन सब का चूल्हा अलग होता है।

 

टोडा

 

 यह जनजाति नीलगिरी पर्वत पर रहती है जिसका मुख्य व्यवसाय पशुपालन है  यह लोग 'टोडा' भाषा बोलते हैं जो कन्नड़ भाषा से संबंधित एक द्रविड़ भाषा है। यह लोग अपना परंपरागत दूध का धंधा और बांस की वस्तुओं का व्यापार  करतें है व नीलगिरी के अन्य लोगों से कपड़ा और मिट्टी के बर्तन लेते हैं।

 इस जनजाति में बहुविवाह आम बात है इसमें कई लोगों की एक ही पत्नी हो सकती है।

 टोडा जनजाति में जब कोई स्त्री गर्भवती होती है तो पुरुष उसे तीर व कमान खिलौने भेंट करता है और बच्चे का पिता होने की घोषणा करता है।

 

कुकी

यह जनजाति भारत और म्यांमार की सीमा पर मिजो पहाड़ियों पर रहती है यह लोग कद में छोटे होते हैं और नागा लोगों के ज्यादा खूंखार समझे जाते हैं।

  इस जनजाति के लोग अपने सरदार की आज्ञा का पालन करना अपना धर्म समझते हैं उनका सरदार एक प्रकार का राजा होता है जिस के आदेश का आंख मूंदकर पालन किया जाता है ।

 मुखिया का सबसे छोटा पुत्र अपने पिता की संपत्ति का उत्तराधिकारी होता है।

 

नागा

 यह जनजाति मुख्य रूप से नागालैंड में नंगा पर्वत श्रेणियों पर निवास करती है जो पूर्वोत्तर भारत और म्यांमार के पश्चिमोत्तर क्षेत्र में निवास करती है ।

 यह बांस के बने घरों में रहते हैं इनका मुख्य धंधा शिकार है यह एक योद्धा जनजाति है तथा उनकी वीरता को देखकर ही इनके विवाह होते हैं ।

 हॉर्नबिल उत्सव नगर लोगों का प्रमुख त्योहार है  इनका प्रमुख धर्म ईसाई  है ।

 

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  RRB NTPC Railway previous year Questions 28/12/2020 First Shift and Second Shift   ·         खालसा पंथ की स्थापना गुरू गोविंद सिंह जी...