भारतीय इतिहास में ऐसी अनेकों घटनाएं हैं जिन्होंने स्वतंत्रता
के आंदोलन में घी डालनें का काम किया, तो अनेकों ऐसी घटनाएं है जिन्होंने भारतीय जन समाज को अंदर तक
झकझोर दिया और विदेशी
आक्रांताओं के अत्याचारों को उजागर किया।
ऐसी ही एक घटना है
जलियांवाला बाग हत्याकांड - जिसमें 1000 से अधिक लोग मारे गए
थे व लगभग 2000 से
ज्यादा घायल हुए थे। आइए जानते हैं कि हत्याकांड क्यों और कैसे हुआ? इसके दोषी कौन कौन थे?
अंग्रेजी सरकार ने इसे सही ठहराया या गलत ? इसके गुनहगारों काल बाद में क्या हुआ?
जलियांवाला बाग हत्याकांड क्यों और कैसे हुआ?
13 अप्रैल 1919 का दिन था और अमृतसर में लोग
बड़ी संख्या में बैसाखी पर्व मनाने को एकत्रित हुए थे। आंकड़ों के मुताबिक उस वक्त जलियांवाला बाग में तकरीबन 15000 से 20000 व्यक्ति वहां मौजूद
थे। उस
भीड़ में हजारों लोग ऐसे थे जो इस बात से अनजान थे कि वहां पर कोई राजनीतिक सभा का
भी आयोजन हो रहा है।
जब जलियांवाला बाग
में सभा चल रही थी तो उसी वक्त जनरल डायर राइफलों वाले सेना दस्ते के साथ वहां
पहुंचा। डायर
पैंसठ गोरखा और 25 बलूची
जवानों के साथ बाग में दाखिल हुआ जिनमें से 50
के पास राइफलें थी।
जनरल डायर अपने साथ 2
बख्तरबंद गाड़ियां लेकर पहुंचा था
जिनमें मशीन गन लगी हुई थी, लेकिन रास्ता छोटा होने के कारण वह उन मशीनों को बाग़ में ना
ले जा पाया। भीड़
को देखकर वह आग बबूला हो गया क्योंकि उसे वह अपने आदेश की नाफरमानी लगी थी, उसके
बिना किसी चेतावनी के गोलियां चलाने का आदेश दे दिया।
जनरल डायर के नेतृत्व
में ब्रिटिश सेना कें 90 सैनिकों
ने 10 मिनट
में 1650 राउंड
गोलियां चलाई थी।
गैर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस हत्याकांड में 1000 से अधिक लोग मारे गए
थे और दो हजार से अधिक घायल हुए थे। जलियांवाला
बाग में एक कुआं था जब भगदड़ मची तो कई व्यक्ति उसमें जा कूदें। बाद में उस कुएं सें 120
इंसानी
लाशों को बाहर निकाला गया था।
ऊधम सिंह ने अपनी आंखों से जो भयावह स्थिति देखी थी उसमें उसने
41 बच्चों
की लाशों को देखा था जिनमें से एक बच्चा 7
माह का भी था।
जलियांवाला बाग हत्याकांड के पहले पंजाब की स्थिति
जलियांवाला बाग हत्याकांड का
खलनायक जनरल डायर ने हंटर कमेटी के सामने कहा था कि उसने अप्रैल 1919 के दौरान अमृतसर में
मारे गए 5 गोरो
का बदला लेने के लिए ही जलियांवाला बाग हत्याकांड को अंजाम दिया था ।
पंजाब कें राजनीतिक आंदोलन
का बड़ा चेहरा माने जाने वाले डॉ. सत्यपाल और डॉ. किचलू को पंजाब सरकार
ने गिरफ्तार कर अज्ञात जगह (धर्मशाला) पर भेज दिया था । जिसके फलस्वरूप 10
अप्रैल 1919
को अमृतसर में डिप्टी कमिश्नर के घर के
बाहर उग्र प्रदर्शन किया गया था। इस
प्रदर्शन में मांग की गई थी कि क्रांतिकारी नेता डॉ सत्यपाल और डॉ सैफुद्दीन किचलू
को रिहा किया जाए।
जिसमें सेना के साथ प्रदर्शनकारियों की मुठभेड़ हुई थी जिसमें
कई प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी। इस घटना ने आग में घी डालने का काम किया। हिंसा का दौर जारी
रहा और इसमें पांच यूरोपियन भी मारे गए। सेना ने कई स्थानों पर दिन भर गोलियां चलाई जिसमें तकरीबन 8 से 20 व्यक्ति मारे गए।
पंजाब में हिंसा का
दौर जारी था, रेलगाड़ी
की पटरियां उखाड़ी गयी और टेलीग्राम की लाइनें तोड़ डाली गई, सरकारी इमारतों में
आग लगा दी गई । 13 अप्रैल
तक ब्रिटिश सरकार ने मार्शल लॉ लगाए जाने की घोषणा कर दी। जिसमें सभी सभाओं पर रोक लगा दी गई। 4 से ज्यादा व्यक्तियों
का एक स्थान पर एकत्र होना गैरकानूनी कर दिया गया था।
पंजाब
के गवर्नर माइकल ओ डायर ने एक पत्र पर
हस्ताक्षर करके अमृतसर की शासन
व्यवस्था रेजिनाल्ड डायर (जनरल डायर )
को दे दी । अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर
उस वक्त माइल्स इर्विंग थे ।
जलियांवाला बाग हत्याकांड के दोषी व्यक्ति
जलियांवाला बाग
हत्याकांड के वक्त पंजाब के गवर्नर माइकल ओ डायर थे, उसी समय अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर पद पर माइल्स एर्विग थे, सिविल प्रशासन की
सारी जिम्मेदारी उसकें ही जिम्मे थी । शहर में शांति व्यवस्था कायम रखना भी डिप्टी कमिश्नर का
कर्तव्य होता था।
माइकल ओ डायर से परामर्श
करने के बाद अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर माइल्स इर्विंग ने जनरल रेजिनाल्ड
डायर को एक फौजी दस्ते के साथ जालंधर से बुलाया था। डायर उस वक्त 45
ब्रिगेड का कमांडर था।
माइल्स इर्विंग ने
जनरल डायर को प्रशासन की सारी जिम्मेदारी सौंप दी,
जिस पर जनरल डायर ने लिखित रूप में आदेश
की मांग की।
इसके पश्चात माइल्स इरविन ने लिखित रूप में आदेश जनरल डायर को
उपलब्ध करा दिया ।
जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद हंटर कमेटी का गठन
भारतीय व्यक्तियों और
भारतीय नेताओं के आक्रोश को देखते हुए ब्रिटिश सरकार को दबाव में आकर हंटर कमेटी
का गठन करना पड़ा ।
हंटर कमेटी जलियांवाला बाग हत्याकांड के साथ-साथ अन्य कई
हिंसात्मक घटनाओं की भी जांच कर रही थी।
हंटर कमेटी के सदस्य
में भारतीयों को भी शामिल किया गया था। हंटर कमेटी बनाने की घोषणा 14 अक्टूबर 1919 को ब्रिटिश सरकार ने
की थी ।
हंटर कमेटी के सदस्य
इस प्रकार थे -
इसके सदस्य लार्ड हंटर, जी सी रैंकिन, डब्ल्यू एफ राइज, टॉयज स्मिथ, मेजर जनरल सर जान जॉन बैरो, सर
चिमनलाल हीरा सीतलवाड़, पंडित
जगत नारायण थे ।
लॉर्ड हंटर कमेटी के
अध्यक्ष थे सर चिमनलाल हीरालाल सीतलवाड़ मुंबई उच्च न्यायालय के अधिवक्ता थे, व पंडित जगन नारायण
संयुक्त प्रदेश विधानसभा के सदस्य थे।
इस कमेटी के सचिव पद
पर एच जी स्टोक्स को बैठाया गया था ।
हंटर कमेटी ने अपना
कार्य 29 अक्टूबर
1919 से
प्रारंभ किया व
46 दिनों
तक कार्य किया 8 दिन
दिल्ली में, 19 दिन
लाहौर में, अहमदाबाद
में 6 दिन, मुंबई में 6 दिन तक जांच पड़ताल
की गई।
हंटर कमेटी की रिपोर्ट
हंटर कमेटी ने मार्च 1920 में अपनी रिपोर्ट पेश
की, इस
समिति का कार्य संतोषजनक नहीं था, ब्रिटिश सरकार ने जलियांवाला बाग हत्याकांड के
दोषियों को बचाने के लिए पहला ही सारा इंतजाम कर
लिया था।
पंजाब के गवर्नर को
निर्दोष साबित कर दिया गया।
समिति ने पूर्ण रूप से जनरल
डायर को जिम्मेदार ठहराते हुए बताया कि कर्तव्य का पालन गलत तरीके से
किया गया व अत्यधिक बल का प्रयोग किया गया। डायर को इस अपराध के लिए नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया ।
अंग्रेजी अखबारों ने
जनरल डायर को "ब्रिटिश साम्राज्य का रक्षक" व "ब्रिटिश साम्राज्य का
शेर" कहा था।
रिपोर्ट के बाद जनरल डायर व माइकल ओ डायर का जीवन
हंटर कमीशन की
रिपोर्ट के बाद जनरल डायर को सेवानिवृत्त कर लंदन भेज दिया गया ।
सन् 1920 में जनरल डायर को
लकवा मार गया और लकवा मारने के 7 वर्ष पश्चात उसकी मृत्यु सन् 1927
में हो गई।
माइकल ओ डायर जिसें
निर्दोष साबित कर दिया गया था वह पंजाब का गवर्नर अभी भी था।
पंजाब माइकल ओ डायर
के अत्याचारों से परेशान हो गया था इस कारण सरकार ने उसे सेवानिवृत्त करके लंदन
भेज दिया ।
13 मार्च 1940 को केक्स्टन हॉल में
उस की गोली मारकर हत्या कर दी गई। गोली मारने वाले शख्स शहीद ऊधम सिंह जी थें।
जिन्होंने 21 वर्ष का लंबा इंतजार
जलियावाला बाग हत्याकांड का बदला लेने में किया था।
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