Sunday, November 8, 2020

जलियांवाला बाग हत्याकांड की पूरी कहानी- सिर्फ जनरल डायर ही नही ये लोग भी इसके जिम्मेदार थे.

भारतीय इतिहास में ऐसी अनेकों घटनाएं हैं जिन्होंने स्वतंत्रता के आंदोलन में घी डालनें का काम किया, तो अनेकों ऐसी घटनाएं है जिन्होंने भारतीय जन समाज को अंदर तक झकझोर दिया और विदेशी आक्रांताओं के अत्याचारों को उजागर किया।

 

ऐसी ही एक घटना है जलियांवाला बाग हत्याकांड - जिसमें 1000 से अधिक लोग मारे गए थे व लगभग 2000 से ज्यादा घायल हुए थे। आइए जानते हैं कि हत्याकांड क्यों और कैसे हुआ? इसके दोषी कौन कौन थे?

अंग्रेजी सरकार ने इसे सही ठहराया या गलत ?  इसके गुनहगारों काल बाद में क्या हुआ?

 

जलियांवाला बाग हत्याकांड क्यों और कैसे हुआ?

 

13 अप्रैल 1919 का दिन था  और अमृतसर में लोग बड़ी संख्या में बैसाखी पर्व मनाने को एकत्रित हुए थे। आंकड़ों के मुताबिक उस वक्त जलियांवाला बाग में तकरीबन 15000 से 20000 व्यक्ति वहां मौजूद थे।  उस भीड़ में हजारों लोग ऐसे थे जो इस बात से अनजान थे कि वहां पर कोई राजनीतिक सभा का भी आयोजन हो रहा है। 

जब जलियांवाला बाग में सभा चल रही थी तो उसी वक्त जनरल डायर राइफलों वाले सेना दस्ते के साथ वहां पहुंचा।  डायर पैंसठ गोरखा और 25 बलूची जवानों के साथ बाग में दाखिल हुआ जिनमें से 50 के पास राइफलें थी।

जनरल डायर अपने साथ 2 बख्तरबंद गाड़ियां लेकर पहुंचा था जिनमें मशीन गन लगी हुई थी,  लेकिन रास्ता छोटा होने के कारण वह उन मशीनों को बाग़ में ना ले जा पाया।  भीड़ को देखकर वह आग बबूला हो गया क्योंकि उसे वह अपने आदेश की नाफरमानी लगी थी, उसके बिना किसी चेतावनी के गोलियां चलाने का आदेश दे दिया।

 

 जनरल डायर के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना कें 90 सैनिकों ने 10 मिनट में 1650 राउंड गोलियां चलाई थी।

 

गैर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस हत्याकांड में 1000 से अधिक लोग मारे गए थे और दो हजार से अधिक घायल हुए थे। जलियांवाला बाग में एक कुआं था जब भगदड़ मची तो कई व्यक्ति उसमें जा कूदें। बाद में उस कुएं सें 120  इंसानी लाशों को बाहर निकाला गया था।

 

ऊधम सिंह ने अपनी आंखों से जो भयावह स्थिति देखी थी उसमें उसने 41 बच्चों की लाशों को देखा था जिनमें से एक बच्चा 7 माह का भी था।

 

जलियांवाला बाग हत्याकांड के पहले पंजाब की स्थिति

 

 जलियांवाला बाग हत्याकांड का खलनायक जनरल डायर ने हंटर कमेटी के सामने कहा था कि उसने अप्रैल 1919 के दौरान अमृतसर में मारे गए 5 गोरो का बदला लेने के लिए ही जलियांवाला बाग हत्याकांड को अंजाम दिया था ।

 

 पंजाब कें राजनीतिक आंदोलन का बड़ा चेहरा माने जाने वाले डॉ. सत्यपाल और डॉ. किचलू को पंजाब सरकार ने गिरफ्तार कर अज्ञात जगह (धर्मशाला) पर भेज दिया था जिसके फलस्वरूप 10 अप्रैल 1919 को अमृतसर में डिप्टी कमिश्नर के घर के बाहर उग्र प्रदर्शन किया गया था। इस प्रदर्शन में मांग की गई थी कि क्रांतिकारी नेता डॉ सत्यपाल और डॉ सैफुद्दीन किचलू को रिहा किया जाए।

 

जिसमें सेना के साथ प्रदर्शनकारियों की मुठभेड़ हुई थी जिसमें कई प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी।  इस घटना ने आग में घी डालने का काम किया।  हिंसा का दौर जारी रहा और इसमें पांच यूरोपियन भी मारे गए। सेना ने कई स्थानों पर दिन भर गोलियां चलाई जिसमें तकरीबन 8 से 20 व्यक्ति मारे गए।

 

 पंजाब में हिंसा का दौर जारी था, रेलगाड़ी की पटरियां उखाड़ी गयी और टेलीग्राम की लाइनें तोड़ डाली गई, सरकारी इमारतों में आग लगा दी गई ।  13 अप्रैल तक ब्रिटिश सरकार ने मार्शल लॉ लगाए जाने की घोषणा कर दी। जिसमें सभी सभाओं पर रोक लगा दी गई। 4 से ज्यादा व्यक्तियों का एक स्थान पर एकत्र होना गैरकानूनी कर दिया गया था।

 

पंजाब के गवर्नर माइकल ओ डायर ने एक पत्र पर हस्ताक्षर करके अमृतसर की शासन व्यवस्था रेजिनाल्ड डायर (जनरल डायर ) को दे दी । अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर उस वक्त माइल्स इर्विंग थे ।

 

जलियांवाला बाग हत्याकांड के दोषी व्यक्ति

 

 जलियांवाला बाग हत्याकांड के वक्त पंजाब के गवर्नर माइकल ओ डायर थे, उसी समय अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर पद पर माइल्स एर्विग थे,  सिविल प्रशासन की सारी जिम्मेदारी उसकें ही जिम्मे थी  शहर में शांति व्यवस्था कायम रखना भी डिप्टी कमिश्नर का कर्तव्य होता था।   

माइकल ओ डायर से परामर्श करने के बाद अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर माइल्स इर्विंग ने जनरल रेजिनाल्ड डायर को एक फौजी दस्ते के साथ जालंधर से बुलाया था। डायर उस वक्त 45 ब्रिगेड का कमांडर था। 

माइल्स इर्विंग ने जनरल डायर को प्रशासन की सारी जिम्मेदारी सौंप दी, जिस पर जनरल डायर ने लिखित रूप में आदेश की मांग की।

 

इसके पश्चात माइल्स इरविन ने लिखित रूप में आदेश जनरल डायर को उपलब्ध करा दिया ।

 

जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद हंटर कमेटी का गठन

 

 भारतीय व्यक्तियों और भारतीय नेताओं के आक्रोश को देखते हुए ब्रिटिश सरकार को दबाव में आकर हंटर कमेटी का गठन करना पड़ा ।

 

हंटर कमेटी जलियांवाला बाग हत्याकांड के साथ-साथ अन्य कई हिंसात्मक घटनाओं की भी जांच कर रही थी।

 

 हंटर कमेटी के सदस्य में भारतीयों को भी शामिल किया गया था। हंटर कमेटी बनाने की घोषणा 14 अक्टूबर 1919 को ब्रिटिश सरकार ने की थी ।

 

  हंटर कमेटी के सदस्य इस प्रकार थे -

इसके सदस्य लार्ड हंटर, जी सी रैंकिनडब्ल्यू एफ राइज, टॉयज स्मिथ,  मेजर जनरल सर जान जॉन बैरो, सर चिमनलाल हीरा सीतलवाड़, पंडित जगत नारायण थे ।

 

लॉर्ड हंटर कमेटी के अध्यक्ष थे सर चिमनलाल हीरालाल सीतलवाड़ मुंबई उच्च न्यायालय के अधिवक्ता थे,  व पंडित जगन नारायण संयुक्त प्रदेश विधानसभा के सदस्य थे।

 

इस कमेटी के सचिव पद पर एच जी स्टोक्स को बैठाया गया था ।

 

 हंटर कमेटी ने अपना कार्य 29 अक्टूबर 1919 से प्रारंभ किया  46 दिनों तक कार्य किया 8 दिन दिल्ली में, 19 दिन लाहौर में, अहमदाबाद में 6 दिन, मुंबई में 6 दिन तक जांच पड़ताल की गई।

 

हंटर कमेटी की रिपोर्ट

 

 हंटर कमेटी ने मार्च 1920 में अपनी रिपोर्ट पेश की, इस समिति का कार्य संतोषजनक नहीं था, ब्रिटिश सरकार ने जलियांवाला बाग हत्याकांड के दोषियों को बचाने के लिए पहला ही सारा इंतजाम कर  लिया था।

 पंजाब के गवर्नर को निर्दोष साबित कर दिया गया।

 समिति ने पूर्ण रूप से जनरल डायर को जिम्मेदार ठहराते हुए बताया कि कर्तव्य का पालन गलत तरीके से किया गया व अत्यधिक बल का प्रयोग किया गया। डायर को इस अपराध के लिए नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया ।

 

 अंग्रेजी अखबारों ने जनरल डायर को "ब्रिटिश साम्राज्य का रक्षक" व  "ब्रिटिश साम्राज्य का शेर" कहा था।

 

रिपोर्ट के बाद जनरल डायर व माइकल ओ डायर का जीवन

 

 हंटर कमीशन की रिपोर्ट के बाद जनरल डायर को सेवानिवृत्त कर लंदन भेज दिया गया ।

 

सन् 1920 में जनरल डायर को लकवा मार गया और लकवा मारने के 7 वर्ष पश्चात उसकी मृत्यु सन् 1927 में हो गई।

माइकल ओ डायर जिसें निर्दोष साबित कर दिया गया था वह पंजाब का गवर्नर अभी भी था।

 पंजाब माइकल ओ डायर के अत्याचारों से परेशान हो गया था इस कारण सरकार ने उसे सेवानिवृत्त करके लंदन भेज दिया 

 13 मार्च 1940 को केक्स्टन हॉल में उस की गोली मारकर हत्या कर दी गई। गोली मारने वाले शख्स शहीद ऊधम सिंह जी थें।

 

 जिन्होंने 21 वर्ष का लंबा इंतजार जलियावाला बाग हत्याकांड का बदला लेने में किया था।

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मिजोरम का इतिहास, संस्कृति, वर्तमान और अन्य तथ्य- पढिये मिजोरम अन्य राज्यो से किस प्रकार भिन्न है।

मिजोरम की संस्कृति तथा इस राज्य की भौगोलिक स्थिति  सामरिक व्यापार के दृष्टिकोण से काफी एहम है। मिजोरम की ‘नगहा लो डावर' संस्कृति जो स्विट्जरलैंड जैसे देशों में देखने को मिलती है।

आइए अन्य महत्वपूर्ण घटनाओं के साथ साथ जानते है एक ऐसे प्रदेश के बारे में जहां प्रत्येक 50 साल बाद ऐसे फूल खिलते है। जो राज्य में भुखमरी व अकाल जन्य जैसी समस्याओं का भी कारण बनते हैं।

 

मिजोरम का इतिहास:-   

मिजोरम का शाब्दिक अर्थ है - मि(व्यक्ति) जो(ढालू या पहाड़ी) रम(भूमि) अर्थात्- "पर्वतीय क्षेत्र के लोग"

  •  देश के आजाद होने के बाद तक मिजोरम पहले असम राज्य का ही एक जिला था।
  •  1891 में ब्रिटिश अधिकार होने के बाद उत्तर का लुसाई हिल असम राज्य के हिस्से में तथा आधा दक्षिण भाग बंगाल के अधीन रहा।
  •  1898 में दोनों को मिलाकर लुसाई हिल बना दिया गया तथा यह हिस्सा असम के मुख्य आयुक्त के हिस्से में आ गया था ।
  •  21 जनवरी 1972 को यह केन्द्र शासित प्रदेश बना
  •  20 फरवरी 1987 को यह भारत का 23 वां राज्य बन गया। किन्तु इस विवरण ने कई घटनाओं को जन्म दिया।

 

बांस के फूल और चूहे जो मिजोरम में अकाल लाते है:-

 

सन् 1861 तथा 1911 में भी ये बांस के फूल निकले जिसके 1 वर्ष उपरान्त मिजोरम में अकाल पड़ गया। इस घटना को "माउतम" कहते है।

प्रत्येक 45-50 सालों के बाद मिजोरम में बांस के जंगलो में फूल खिलते है। इन फूलों में बीज होते है। एक साल पश्चात ये फूल गिर जाते हैं।और जमींन पर इसके बीज बिखर जाते हैं।

ये बीज काले चूहों को अत्यधिक प्रिय होते है। इसको खाने के पश्चात इन चूहों की प्रजनन क्षमता काफी बढ़ जाती है। इन चूहों की संख्या में उत्तरोत्तर असंख्य वृद्धि होती है। जंगल में भोजन की समाप्ति होते ही ये काले चूहे कूच करते है, अन्नदाताओं के खेतों और भण्डारग्रहों की तरफ तथा कालांतर में ही ये तीव्र कृंतक खाद्य अनाज को समाप्त कर देते है।

क्योंकि पर्वतीय प्रदेश होने के कारण तथा अधिक वर्षा होने के कारण यहां अनाज भी काफी कम हो पाता है। अत: समस्या काफी जटिल हो जाती है।

 

असम सरकार की असंवेदनशीलता जिसने जन्म दिया उग्रवाद को:-

 

  • इसी कालक्रम के अनुसार सन् 1958-59 के बीच लुसाई हिल (मिजोरम) में फिर से बांस के फूल निकल आये थे। जिसके 1 वर्ष पश्चात् ही माउतम आ गया। माउतम मिजोरम के जिस क्षेत्र से होकर गुजरा वहां  भुखमरी व अकाल ने डेरा पसार दिया।
  • स्थानीय लोगों ने तत्कालीन असम सरकार से वहां के लोगो ने अपनी समस्या के अनुसार आर्थिक मदद मांगी और जिसे असम सरकार ने अस्वीकार कर दिया।
  •  सरकार से सारी उम्मीदें खत्म होते देख स्थानीय लोगों ने असम सरकार के खिलाफ़ सशस्त्र कार्रवाई करने हेतु *मिजो नेशनल फेमाईने फ्रंट (बाद में मिजो नेशनल फ्रंट)* नाम से संगठन बनाया जिसका नेतृत्वकर्ता लालडेन था।
  •  इधर एक घटना और घटी कि असम सरकार ने सम्पूर्ण असम में असमी भाषा अधिनियम लागू करने का निर्णय लिया ।जिसके विरोध में कई गैर असमी लोग संगठित होकर "मिजो नेशनल फेमाईने फ्रंट" के साथ आ गए।
  •  अब यह विद्रोह उग्र होकर आतंकवाद का रूप धारण कर चुका था।

 

  • इतना सब होने के पश्चात् भी अभी भारत सरकार का हस्तक्षेप नहीं हुआ था जिसका कारण उस समय चीन व पाकिस्तान जैसे पडो़सी देशों के साथ सीमा विवाद में उलझा हुआ होना था।

 

 ऑपरेशन जेरिचो:-

 

  • हिंसक रूप ले चुका मिजो फेमाईने नेशनल फ्रंट जिसने पूरी योजना के साथ मिजोरम के आइजाल शहर पर हमला कर दिया और असम राइफल्स तथा अन्य मदद न आ सके जिसके लिए इकलौते सिल्चर सड़क व्यवस्था को भी ध्वस्त कर दिया।
  • इस आपरेशन का उद्देश्य था,मिजोरम को अपने कब्जे मे लेकर असम से अलग करना तथा 1 March 1966तक एक प्रथक राष्ट्र बनाना। जिसमे यह संगठन सफल रहा था।
  • जिसमे गैर मिजोरम के लोगो को मारा गया व वे सभी कार्य हुए जो भारत की अखंडता व सौहार्द के लिए अस्वीकार्य है।

 

जब भारतीय वायुसेना को अपने ही देश में करना पड़ा रण:-

  • भारत सरकार को ऐसी स्थिति का अंदाजा होते ही त्वरित कार्रवाई हेतु वायुसेना को भेजना पडा़।
  •  इतिहास में पहली व आखिरी बार ऐसा हुआ कि भारतीय वायुसेना के तूफानी व हण्टर नाम के जेट फाइटरों को स्थिति नियंत्रण हेतु अपने ही राज्य पर शक्ति दिखानी पडी़।

 

  •  जिसके पश्चात सन् 1967 में भारतीय सेना द्वारा मिजो फ्रंट पर नियंत्रण होते ही भारत सरकार ने Grouping Policy लागू कर दी।जिसकी सहायता से आतंकवादियों का खात्मा किया जा सका।
  •  सन्1968 तक विद्रोहियों ने आत्मसमर्पण कर दिया।
  •  21 January 1972 को मिजोरम केन्द्र शासित प्रदेश बना।

 

1976 Mizo national front accord:-

 

  • सन् 1976 को मिजो नेशनल फ्रंट के साथ समझौता हुआ जिसमें इस पार्टी ने उग्रवाद के रास्ते का त्याग कर भारत की अखंडता व सौहार्द के साथ विकास करने के लिए सहमति दी।
  •  20 february 1987 को मिजोरम को 23वां पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त हो गया.

मिजोरम के आधारभूत तथ्य:-

  • mizoram map
    Mizoram political map
    image source- Indiainmaps.com

    केन्द्र शासित प्रदेश:- 21 January 1972 
  • राज्य:- 2 0 February 1987 
  • राजधानी:- आइजाल  
  • जिले:- 08 
  • राज्यपाल:- पी एस श्रीधरन पिल्लई 
  • मुख्यमंत्री:- जोरमथंगा 
  • हाईकोर्ट:- गुवाहाटी हाईकोर्ट आइजाल ब्रांच  
  • मुख्य न्यायाधीश:- अजय लांबा 
  • MLA:- 40 
  • Lok Sabha:- 1 
  • Rajya Sabha:- 1


 

सीमावर्ती राज्य:- 

यह राज्य असम, त्रिपुरा तथा मणिपुर के साथ अपनी सीमाएं साझा करता है। बांग्लादेश तथा म्यांमार  देश के साथ भी इसकी सीमाएं हैं।
  1. असम 
  2. त्रिपुरा 
  3. मणिपुर

राजकीय चिन्ह:-

  • राज्य पशु:- Himalayan Serow 
  • राज्य पक्षी:- Mrs Hume's Pheasant 
  • राज्य पुष्प:- Red Vanda 
  • राज्य वृक्ष:- Indian Rose chest nut

भौगोलिक स्थितियां:- 

मिजोरम में झूम व स्थानांतरित कृषि पद्धति है।‌‌‍

  •  दूसरा सबसे कम जनसंख्या वाला राज्य है। 
  • राज्य की साक्षरता दर 91.33% है,जो की राष्ट्रीय साक्षरता दर 74.04% से अधिक है। 
  • सर्वाधिक वन क्षेत्र 86.27% इसी राज्य का है। 
  • मिजो/लुशाई,म्हार,पोई चकमा,राल्ते,पोवाई तथा कुकी यहां की प्रमुख जनजातियां है। 
  • मिजोरम एक पर्वतीय प्रदेश है।

 

सामान्य तथ्य:-

  •  मिजोरम में कोई रेलवे नहीं है। 
  •  मिजो हिल्स में रहने वाली जनजाति कुकी कहलाती है।
  • तुईरियाल पनबिजली बांध से लगभग 60 mw तथा कालादान पनबिजली बांध से 500mw बिजली की आपूर्ति होती है। 
  •  राज्य की सबसे बड़ी नदी छिमतुइपुइ नदी है। जिसे कालादान नदी भी कहते हैं।

 

मिजोरम के प्रमुख त्योहार:- 

मिजोरम में त्यौहारों को कुट कहा जाता है।

  •  छपचर कुट  
  • पाल कुट 
  •  मिम कुट

 

मिजोरम के प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान तथा वन्य जीव अभयारण्य:-

 

  • Blue Mountain Park 
  • Dampa Tiger Reserve
  • Lengteng Wildlife Sanctuary 
  • Murlen National Park 
  • Thorangtlang Wildlife Sanctuary

 

मिजोरम का पर्यटन केंद्र:-

  •  Durtlang Hills 
  •  Palak Lake 
  • Tamdil Hills 
  • Hmuijang Hill

पूर्वोत्तर भारत में प्रकृति के ऐसे अनुपम उपहार है। जिनका लिखित में वर्णन करना सदैव असंभव ही होगा। मिजोरम में शिक्षा दर बहुत अच्छी है। किन्तु फिर भी यह एक पिछड़ा राज्य है। जो तेजी से विकास पथ पर अग्रसर है।

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