दुनिया नें अभी तक बहुत सारी महामारियॉ देखी है जिसनें करोङो लोगो की जान ली है। तो इन्ही महामारियों में से एक महामारी ऐसी भी है जिसनें विश्व की एक तिहाई आबादी को प्रभावित किया और लगभग 5-10 करोङ लोगो की जान ली।
इस महामारी को "द फॉरगॉटेन पैनडेमिक" यानी कि भूली जा चुकी महामारी के नाम सें भी जाना जाता है।
यहां हम बात कर रहें है स्पैनिश फ्लू की जिसनें 1918-1920 के बीच में 1/3 आबादी को प्रभावित किया गया था व यह महामारी इतनी खतरनाक थी कि इससें भारत में करीब 2 करोङ के आस-पास मौतें हुई थी।
स्पैनिश फ्लू की शुरूआत:-
स्पैनिश फ्लू की शुरूआत कहां सें हुई इसके कोई पुख्ता साक्ष्य नही है परन्तु वैज्ञानिक ऐसा मानते है कि इसकी शुरूआत सबसें पहलें संयुक्त राज्य अमेरिका सें हुई थी। बाद में जब संयुक्त राज्य अमेरिका सें लोग प्रथम विश्वयुद्ध के लिए यूरोप आयें तो यह बीमारी उनके साथ यूरोप तक आ गयी।धीरें-धीरें यह बीमारी पूरें यूरोप में फैली और उसकें बाद सैनिको के माध्यम सें यह पूरें विश्व मे फैल गयी।
भारत में भी इसकी शुरूआत बॉम्बें सें हुई जहां यह बीमारी सैनिको के द्वारा ही लायी गयी थी।
बाद में वैज्ञानिको द्वारा यह बताया गया कि यह वायरस बर्ड या सुअरों में पाया जानें वाला वायरस था लेकिन किन्ही कारणों सें यह मनुष्यों में प्रवेश कर गया और धीरें-धीरें यह
एक मनुष्य सें दूसरें मनुष्य में फैलनें लगा।
इस महामारी का नाम स्पैनिश फ्लू कैसें पङा?
यह बीमारी संयुक्त राज्य अमेरिका के सैनिको द्वारा यूरोप में लायी गयी थी। उस वक्त द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था जिसके कारण सैनिको को बंकरो में महीनों तक रहना पडता था व वे सैनिक व्यक्तिगत स्वच्छता पर ध्यान नही दे पातें थें।
किसी भी बीमारी को फैलनें के लिए यह परिस्थितियॉ आदर्श होती है जिनकी वजह सें यह बीमारी बहुत तेजी सें सैनिको के बीच मे फैलनें लगी और फिर यूरोप के समस्त देशों में भी फैल गयी. बीमार सैनिको को छुट्टी देकर घर भेंज दिया जाता था जिसकें कारणों से यह बीमारी सैनिक अपनें साथ अपनें घर व देश तक ले गये और इस बीमारी नें महामारी का रूप ले लिया।
प्रथम विश्व युद्ध के वक्त रूस, फ्रांस व ब्रिटेन युद्ध में प्रतिभागी थें जिसकें कारण वह मीडिया में अपनें देशों के खिलाफ व अपनें सैनिको के खिलाफ नकारात्मक खबरों के प्रचार-प्रसार सें बचतें थें. वें कोई भी ऐसी खबर चलानें सें बचतें थें जो उनकें देश के नागरिकों को थोडा सा भी विचलित करें। इसलिए शुरूआत में यह बीमारी दुनिया की नजरो नें नही आ सकी।
लेकिन उस वक्त स्पेन एक ऐसा देश था जो कि प्रथम विश्व युद्ध में सामनें सें भाग नही ले रहा था जिसकी वजह सें वहॉ मीडिया सेंसरशिप नही थी। जब स्पेन में यह बीमारी फैलनें लगी तो उन्होने इस बीमारी के बारें में लिखना व बोलना चालू कर दिया जिसकें परिणामस्वरूप यह बीमारी दुनिया की नजरो में आयी। इसका नाम "स्पैनिश फ्लू" दिया गया।
स्पैनिश फ्लू सें स्पेन का राजा भी काफी प्रभावित हुआ था जिसकें कारण यह बीमारी और चर्चा में आयी थी।
स्पैनिश फ्लू कितनी खतरनाक बीमारी थी?
स्पैनिश फ्लू कितनी खतरनाक बीमारी थी इसका अंदाजा आप इसी बात सें लगा सकते है कि इसनें लगभग एक-तिहाई दुनिया को प्रभावित किया। बडे-बडे राजघरानों के लोग, उच्च अधिकारी भी इसकी चपेट में आने सें नही बच सकें।
एक अनुमान के मुताबिक इसमें कम सें कम 5 करोङ लोग मारें गयें थें जोकि द्वितीय विश्वयुद्ध में हुई हिंसा सें कहीं ज्यादा थें।
भारत में इस महामारी सें तकरीबन 1-2 करोङ लोग मारें गयें थें। और अमेरिका में इससें 6,75,000 लोगो की मौतें हुई थी। भारत में ज्यादा मौतें होने का कारण भारत पर अंग्रेजो द्वारा शासन था जिन्होनें भारत में कभी स्वास्थय पर ध्यान नही दिया औऱ भारतीय लोगो को मरनें के लिए छोड दिया।
स्पैनिश फ्लू की सबसें खतरनाक बात यह थी कि यह 20-40 वर्ष के लोगो पर ज्यादा हमला करती थी जिसके कारण सबसें ज्यादा मौतें इसी आयु वर्ग के लोगो में होती थी। इसमें मृत्युदर लगभग 10% के आसपास थी।
स्पैनिश फ्लू सें हुई इतनी ज्यादा मौतें क्यूँ हुई?
जब स्पैनिश फ्लू दुनिया की नजरों में आया तब विश्व प्रथम विश्वयुद्ध लङ रहा था। जिसके कारण पहलें कुछ समय तक लोगो का ध्यान इस तरफ नही गया। बाद में जब यह बीमारी स्पेन में फैली तब पूरा विश्न इससें आगाह हुआ लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी और करोडो लोग इससें प्रभावित हो चुकें थें।
स्पैनिश फ्लू पर काबू न पानें की एक वजह यह भी थी कि तब तक विज्ञान नें इतनी प्रगति नही की थी कि वह ऐसी महामारी सें लङ सकें। उस वक्त न तो एंटी बायोटिक्स का आविष्कार हुआ था और न ही इलेक्ट्रान सूक्ष्मदर्शी का। जिसके कारण वायरस को कभी देखा नही जा सका था।
बाद में 1931 में, Ernst Ruska और Max knoll द्वारा जब इलेक्ट्रान सूक्ष्मदर्शी का आविष्कार किया गया तब वायरस को पहली बार देखा गया था। पहली एंटीबायोटिक को खोज सन् 1928 ई में की गयी थी।
स्पैनिश फ्लू मनुष्य सें मनुष्य में फैल रही थी जिसकें कारण लोगो में यह बहुत तेजी सें फैला और इससें काफी लोगो की मौतें हुई।
स्पैनिश फ्लू सें बचनें के लिए क्या कदम उठाए गयें?
स्पैनिश फ्लू सें बचनें के लिए तब भी बहुत सारें शहरों में लॉक डाउन कर दिया गया था।
स्कूलों, सिनमाघरो व अन्य भीड-भाङ वाली जगहो को बंद कर दिया गया था। आर्मी कैंपो व स्कूलो को अस्पतालों में बदल दिया गया था व आम इंसानों को नर्सों को ट्रेनिग दी गयी थी ताकि वह मदद कर हालात को नियंत्रित कर सकें।
अमेरिका के कई शहरो में तो यहां तक सावधानी बरती जानें लगी थी कि यदि कोई व्यक्ति भीङ-भाङ वाली जगह पर खांसता या छींकत पाया जाता था तो उसके खिलाफ जुर्माना तक लगा दिया जाता था व उचित कार्यवाही की जाती थी।
स्पैनिश फ्लू से हम क्या सींख सकते है?
स्पैनिश फ्लू सें हम बहुत सारी सीख ले सकतें है जो कि हमें कोरोना वायरस सें लडनें में मदद कर सकती है।
संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रथम विश्नयुद्ध के बाद एक परेड आयोजित होनी थी, जिसकें लिए डॉक्टरों नें यह सलाह दी की ऐसी परेड को स्थगित किया जायें अन्यथा बहुत भयंकर परिणाम देखनें को मिल सकते है। लेकिन अमेरिकी सैन्य अधिकारियों नें उनकी बात माननें ये यह कहते हुए मना कर दिया कि यह बहुत भव्य परेड है और इसको न करनें से सैनिको का अपमान होगा।
औऱ कुछ ही वक्त बाद बहुत ही भव्य परेड का आयोजन हुआ जिसमें हजारो लोग शामिल हुए।
उसी परेड के एक सप्ताह के अंदर, 2600-2700 मौतें हुई औऱ उनमें वही लोग शामिल थें जो कि परेड में शामिल हुए थें।
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