Saturday, January 30, 2021

महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस के बीच मतभेद की इन वजहों को आप अभी तक जानते भी नही होगे-

नेताजी और गांधीजी के बीच में मतभेद जगजाहिर है, तो इसी बीच 6 जुलाई 1944 को रंगून से किए गए एक रेडियो प्रसारण में नेता जी ने कहा था," हे राष्ट्र पुरुष ! भारत के स्वाधीनता के इस पावन युद्ध में हम आपका आशीर्वाद और शुभकामनाएं चाहते हैं।"

वे गांधी जी ही थे जिन्होंने सुभाष के विरोध में पट्टाभि सीतारमैय्या को खड़ा किया परंतु इसमें सुभाष चंद्र बोस की जीत हुई। पट्टाभि की हार पर गांधी जी ने कहा था कि यह हार मेरी हार है। बदले में जब नेता जी ने आजाद हिंद फौज की स्थापना की तब उन्होंने अपनी रेजिमेंट का नाम महात्मा गांधी व नेहरू के नाम पर रखा।


असल में यह वैचारिक मतभेद थे या सच में नापसंदी ही थी?

आइए समझते हैं -

गांधी जी और नेता जी जब पहली बार मिले

सुभाष बाबू जब आईसीएस की परीक्षा पास कर के देश सेवा करने के लिए जब भारत पहुंचे तो उनका भव्य स्वागत हुआ। 16 जनवरी 1921 को सुभाष भारत लौटे, भारत पहुंचने पर सुभाष ने 'बाबू' का दर्जा प्राप्त कर लिया था। लोग अब उन्हें सुभाष बाबू बुलाने लगे थे, उनके आईसीएस पास करने के बाद पद छोड़ने की बात उस वक्त भारत में ऐसे फैली जैसे जंगल में आग।

सुभाष बाबू के भारत लौटने पर ब्रिटिश शासकों की कपट नीति से लोहा लेने का नैतिक साहस उन्हें सिर्फ महात्मा गांधी के चमत्कारी व्यक्तित्व में ही दिखाई दिया।

 

असहयोग आंदोलन के वक्त जोश और उत्साह का यह आलम था कि लोगों ने 'सर' और 'रायबहादुर' की उपाधि वापस कर दी. वकीलों ने वकालत, छात्रों ने स्कूल व किसानों ने मालगुजारी देनी बंद कर दी.
 

16 जुलाई 1921 को जब गांधीजी मुंबई पहुंचे तो सुभाष उनसें मिलनें जा पहुंचे, गांधी जी ने हर्ष के साथ सुभाष का स्वागत किया.


गांधी जी की सादगी देख सुभाष बाबू हतप्रभ रह गए और उन्हें विदेशी वस्त्रों में स्वयं गांधी जी से मिलने पर लज्जा के अनुभूति हुई. गांधीजी ने सुभाष को सुझाव दिया कि कलकत्ता जा कर देशबंधु चितरंजन दास से अवश्य मिले.

कांग्रेस में जब सुभाष बाबू नियुक्त हुए और उनके मतभेद गांधी और नेहरू से हुए
 

बंगाल के इतिहास में जितना निर्विरोध सहयोग सुभाष को मिला उतना किसी अन्य नेता को कभी नहीं मिला। 1927 के दिसंबर महीने में डॉक्टर एम अंसारी की अध्यक्षता में मद्रास में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन हुआ.  जिसमें पूर्ण स्वाधीनता का लक्ष्य घोषित किया गया ।

सुभाष बाबू को अखिल भारतीय कांग्रेस का जनरल सेक्रेटरी नियुक्त किया गया व जवाहरलाल नेहरू और शोएब कुरैशी की भी नियुक्ति हुई। दिसंबर 1928 में कांग्रेस का 45 वां अधिवेशन हुआ, मोतीलाल नेहरू व गांधी जी ने उपनिवेश राज्य को स्वीकार कर लिया।

परंतु सुभाष बाबू को यह अच्छा नहीं लगा उन्होंने तो प्रारंभ से ही पूर्ण स्वराज का सपना देखा था। इसके बाद सुभाष बाबू ने संशोधन प्रस्ताव प्रस्तुत किया और कहा," मुझे खेद है कि मैं महात्मा गांधी द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव में संशोधन कर रहा हूं यह इसलिए आवश्यक है कि भारत की जनता देश को पूर्ण स्वतंत्र कराने का प्रण ले चुकी है. "


सुभाष बाबू द्वारा प्रस्तुत इस संशोधन प्रस्ताव के साथ ही काग्रेस के दो गुट बट गए ।
 

एक गुट संशोधन प्रस्ताव का पक्षधर था व दूसरा विरोधी। आश्चर्यजनक बात यह है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू संशोधन प्रस्ताव के पक्ष में थे।


जब संशोधन प्रस्ताव सुभाष जी की कोशिशों के बाद भी गिर गया


एक वक्त यह स्थिति थी कि लग रहा था प्रस्ताव बहुमत के साथ पारित हो जाएगा, परंतु तभी प्रस्ताव के विरोधियों ने इसे ऐसे प्रचारित किया कि यदि महात्मा गांधी के उपनिवेश राज्य विधान के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया तो यह राजनीति से संन्यास ले लेंगे ।

इस अस्त्र के चलते ही शक्ति परीक्षण में सुभाष बाबू का संशोधन प्रस्ताव 1350 के मुकाबले 973 मतों से गिर गया । इसी बीच सुभाष बाबू व मोतीलाल नेहरू के बीच खुलकर मतभेद सामने आने लगे.

 जब गांधीजी ने सुभाष के विरुद्ध अपना प्रत्याशी खड़ा किया

 1 मई 1936 को कांग्रेस के राष्ट्रपति जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में पूरे भारत में सुभाष दिवस मनाया गया।
 

फरवरी 1938 में कांग्रेस का 51 वां अधिवेशन हरिपुरा गुजरात में हुआ, इस अधिवेशन के माध्यम से सुभाष का पुनः राजनीतिक अभिषेक हुआ और उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था।


ढाई मील लंबे रास्ते में राष्ट्रपति सुभाष का शानदार स्वागत हुआ वह 51 बलों द्वारा खींचे जाने वाले रथ सवार थे ।
 

अगले कांग्रेस अधिवेशन के अध्यक्ष पद के लिए फिर से चुनाव होने थे, काग्रेंस समितियां यह चाहती थे कि सुभाष ही अध्यक्ष पद पर बने रहे और यही देश की जनता भी चाहती थी ।


 परंतु उस वक्त महात्मा गांधी जवाहरलाल नेहरू को पद पर आसीन करना चाहते थे, नेहरू के मना करने के बाद, मौलाना अबुल कलाम आजाद का नाम सुझाया गया, व उनके मना करने के बाद अध्यक्ष पद के लिए पट्टाभि सीतारमैय्या का नाम बापू ने प्रस्तावित कर दिया।

सरदार वल्लभ भाई पटेल, जी बी कृपलानी, जमुना लाल बजाज, डॉ राजेंद्र प्रसाद, जयराम दास दौलत, शंकर राव देव ने गंभीर मंत्रणा के बाद यह संदेश प्रसारित किया।
 "कांग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव अब तक निर्विरोध होता आया है और जब तक विशेष हालात ना हो इस बार के अध्यक्ष को पुनः अध्यक्ष के लिए चुनाव लड़ने की आज्ञा नहीं दी जाती .इन तथ्यों के परिपेक्ष में अब सुभाष को डॉक्टर पट्टाभि सीतारमैय्या के मार्ग से हट जाना चाहिए।"
 
29 जनवरी 1939 को सुभाष की शानदार विजय से गांधी जैसे उदार नेता क्षुब्ध हो उठे। गांधी जी ने तो यहां तक कह दिया था कि डॉक्टर पट्टाभि सीतारमैय्या की हार मेरी हार है।


इसके बाद सुभाष ने मई 1939 में कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया वह फारवर्ड ब्लाक की स्थापना की घोषणा 3 मई 1939 को  की।
फारवर्ड ब्लाक का पहला अधिवेशन 22 जून 1939 को मुंबई में हुआ था ।

 11 जुलाई 1939 को वर्धा में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में एक निर्णय लिया गया जिसमें सुभाष को 3 वर्ष के लिए कांग्रेस कार्यसमिति में किसी भी स्थान से चुनाव लड़े जाने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया था ।

 ब्रिटिश सरकार गांधी और नेहरू से कहीं ज्यादा सुभाष से आतंकित थी तभी उनकी सभाओं पर रोक लगा दी जाती थी।
जब नेताजी ने आजाद हिंद फौज की स्थापना की तब उन्होंने गांधी और नेहरू के नाम पर ब्रिगेड बनाई .

 

23 अक्टूबर 1943 को जब आजाद हिंद सरकार बनी तब जापान तथा अन्य लगभग 11 देशों ने आजाद हिंद सरकार को मान्यता दे दी.


आजाद हिंद फौज में नेताजी ने नेहरू व गांधी ब्रिगेड की स्थापना की।


नेहरू व गांधी जी से मतभेद होने के बावजूद उन्होंने आजाद हिंद फौज की ब्रिगेडो के नाम उन पर रखें।


नेहरू ब्रिगेड गांधी ब्रिगेड व आजाद ब्रिगेड में से बेहतरीन पंक्तियों को चुनकर एक सुभाष ब्रिगेड बनाया गया था।


 सुभाष बोस ने आजाद हिंद फौज को संबोधित करते हुए कहा था," ईश्वर के नाम पर मैं यह पावन शपथ लेता हूं कि भारत और उसके 38 करोड़ देशवासियों को स्वतंत्र करवाऊँगा, मैं सुभाष चंद्र बोस अपने जीवन के अंतिम सांस तक स्वतंत्रता की पवित्र लड़ाई को जारी रखूंगा, मैं सदैव भारत का सेवक रहूंगा और 38 करोड़ भारतीयों भाइयों और बहनों के कल्याण को अपना सर्वोच्च कर्तव्य समझूंगा।"

जब रंगून से रेडियो प्रसारण के वक्त नेता जी ने महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहा और उनसे आशीर्वाद मांगा

 नेता जी ने 6 जुलाई 1944 को रंगून रेडियो से महात्मा गांधी के नाम एक अपील जारी की और रेडियो प्रसारण में उनसे कहा ," मैं सचमुच यह मानता हूं कि ब्रिटिश सरकार भारत के स्वाधीनता की मांग कभी स्वीकार नहीं करेगी मैं इस बात का कायल हो चुका हूं कि यदि हमें आजादी चाहिए तो मैं खून का दरिया से गुजरने को तैयार रहना होगा अगर मुझे कोई भी उम्मीद होती कि इस युद्ध में एक और मौका आजादी पाने का एक और सुनहरा मौका अपनी जिंदगी में मिलेगा तो मैं शायद घर छोड़ता ही नहीं .  मैंने जो भी किया है वह अपने देश के हित के लिए क्या है विश्व में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने और भारत के स्वाधीनता के लक्ष्य के निकट पहुंचने के लिए किया है "


गांधी के नाम अपने संदेश का समापन उन्होंने इन शब्दों में किया.
 

भारत की स्वाधीनता की आखिरी लड़ाई शुरू हो चुकी है आजाद हिंद फौज के सैनिक भारत की भूमि पर वीरता पूर्वक लड़ रहे हैं यह सशस्त्र संघर्ष आखिरी अंग्रेज को भारत से निकाल फेंकने और नई दिल्ली के वायसराय हाउस पर गर्वपूर्वक राष्ट्रीय तिरंगा लहराने तक चलता ही रहेगा हे राष्ट्र पुरुष भारत के स्वाधीनता के इस पावन युद्ध में हम आपका आशीर्वाद व शुभकामनाएं चाहते हैं "
 

सुभाष बाबू ने महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था तो वहीं गांधी जी ने सुभाष चंद्र बोस को देशभक्तों का देशभक्त कहा था गांधी जी ने अपने एक भाषण के दौरान कहा था कि यदि सुभाष अपने प्रयासों में सफल हो जाते हैं और भारत को आजादी दिला देते हैं तो उनकी पीठ थपथपा ने वाला सबसे पहला व्यक्ति में होऊँगा.


अत: इस आधार पर कहा जा सकता है कि नेताजी व गांधी जी कें बीच मतभेद थें, मनभेद नही ।

परन्तु भारत सरकार द्वारा कुछ साल पहलें नेताजी की फाइलें सार्वजनिक कियें जानें सें यें पता चला है कि आजादी कें बाद 20 साल नेताजी कें परिवार की जासूसी की जा रही थी।

जों सारें मतभेदो कों उजागर करता है।


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Friday, January 15, 2021

क्या सिर्फ 2.5% लोग ही इनकम टैक्स भरते है? सच्चाई जानिए और जागरूक बनिये

अक्सर यह देखा जाता है कि लोग कहते है कि आप कितना टैक्स देते है, या कितना इनकम टैक्स देते है। कहने का तात्पर्य अधिकतर यह ही होता है कि आप टैक्स भरते ही नही है। ऐसी बातें सोशल मीडिया पर अधिकतर कहीं जाती है।

लोग उनकी बातों को मान भी लेते है कि वे सरकार को टैक्स नही देते है क्योकि अधिकतर लोगो के पास जानकारी का अभाव है। इसीलिए आइये इस आर्टिकल के माध्यम से हम समझने की कोशिश करते है कि क्या आम व्यक्ति बिलकुल ही टैक्स नही देता है।

और क्या सिर्फ2%लोग ही इनकम टैक्स भरते है जबकि 97.5% जनता इन 2.5% लोगो के टैक्स पर पलती है ऐसी बातें राजनीतिक लाभ के लिए खूब वायरल की जाती है तो आइये समझने की कोशिश करते है कि क्या सच में 2.5% लोग ही इनकम टैक्स भरते है। चलिए उससे पहले यह समझने की कोशिश करते है कि सरकार टैक्स क्यो लेती है-

सरकार टैक्स क्यो लेती है और आप टैक्स क्यो देते है?

बहुत पहले आदमी आदिमानव के रूप में रहा करता था, तब किसी भी प्रकार का टैक्स जैसा सिस्टम नही था. धीरे-धीरे उसमें बुद्धि आयी और उसका विकास होता गया, विकास होता गया तो साथ-साथ रहने लगे और गांव, नगर व शहर बनने लगे। अब शहर में तो रोङ की भी जरूरत थी और बाकी की सुविधाओ की भी तो लोगो ने सोचा कि हम लोगो के बीच से ही कुछ लोगो को चुनकर भेजते है जो हमारी समस्याओ का निपटारा करेगे. यही से लोकतंत्र जैसी चीज बनी और सरकार भी इसी प्रकार के कांसेप्ट से बनी।

इस हिसाब से सरकार हम लोगो ने ही अपनी समस्या को दूर करने के लिए ही बनायी थी, क्योकि घर-परिवार सम्हालने के अलावा सब काम तो हर एक व्यक्ति नही कर सकता। सरकार बनी तो अब सरकार को भी पैसे चाहिए थे कि वह उन पैसो से लोगो की समस्याओ को दूर कर सके। तो सरकार ने लोगो से टैक्स के रूप में पैसे लेने शुरू किये.

जैसे मान लीजिए आपके शहर मे रोड की दिक्कत है तो हर एक नागरिक पैसा इकठ्ठा करें, फिर कोई कांट्रेक्टर से बात करे फिर रोड बनवायें। इन सारी दिक्कतो का समाधान निकालने के लिए सोचा गया कि कुछ लोगो को चुन कर भेजते है जो इस तरह की समस्याओ को दूर करेगे और हम उनको अपनी जेब से कुछ न कुछ पैसे देते रहेगे। असल में सरकार आपके पैसो से ही विकास करती है और बाकी सारे काम भी आपके पैसो से ही चलते है, सरकार बस उन पैसो की देखरेख करती है कि कब कितने पैसे कहां खर्च करने है? गरीब के उत्थान हेतु स्कीम, विकास, रक्षा व अन्य हजारों तरीको से सरकार सब कुछ मैनेज करती है.

आपसे सरकार है, सरकार से आप नही।

पुराने समय में जब राजशाही थी तब भी टैक्स का सिस्टम था, जनता से टैक्स लेकर राजा राज्य को बाकी सारें कामकाजों का निपटारा करते थें. टैक्स की प्रक्रिया में समय के साथ सुधार होता गया और आज हम 2021 में यहाँ खङे है।

अब बात आती है कि आप कितना टैक्स देते है और कितने तरह के टैक्स देते है?

जीएसटी आने से पहले एक आम नागरिक को कई तरह का टैक्स देना पङता था परन्तु जीएसटी आने के बाद मोटे तौर पर सिर्फ दो तरह का टैक्स देना पङता है जो कि जीएसटी व इनकम टैक्स है।

जीएसटी के बारें में समझने वाली बात यह है कि जीएसटी एक अप्रत्यक्ष कर है, जो कि वस्तुओ और सेवाओ पर लगता है और इसको मुख्यत दुकानदारो या व्यापारियों को देना होता है। व्यापारी जीएसटी देता है परन्तु जीएसटी वसूला आपसे जाता है।

मान लेते है कि कोई वस्तु 100 रूपये में व्यापारी उपभोक्ता को बेचना चाहता है परन्तु सरकार कह रही है कि आपको जीएसटी के तौर पर 18% टैक्स सरकार को देना पङेगा तो वह 18% टैक्स तो सरकार को दे देगा परन्तु 100 रूपये की चीज के दाम बढा कर अपनी सुविधानुसार 118 या इससे ज्यादा कर देगा।

अगर आपको ध्यान हो तो मार्च 2020 के बाद से मोबाइल फोन के दामों में काफी बढोत्तरी हुई है जिसका मुख्य कारण मोबाइल फोन पर लगने वाले जीएसटी दर को 12 से 18 प्रतिशत किया जाना है।


जीएसटी निम्न कैटेगरी में लिया जाता है- 

5%, 12%, 18%, 28%.

5% जीएसटी स्लैब के अंदर कुल 14% वस्तुऐ आती है जिनमें से अधिकतर खाने-पीने से जुङी चीजे है जैसे कि चाय, काफी, ब्रेड.

12% जीएसटी स्लैब के अंदर कुल 17% वस्तुऐ या सेवाऐ आती है जो कि लूडो, कैरम बोर्ड और अन्य ढेरो प्रकार की वस्तुऐ.

18% जीएसटी स्लैब के अंदर कुल 43% वस्तुऐ आती है.

28% जीएसटी स्लैब के अंदर कुल 19% वस्तुऐ और सेवाऐ आती है इनमें से अधिकतर शौक से जुङी हुई चीजे होती है जैसे कि हैयर ड्रायर, सनस्क्रीम, डिशवॉशर आदि.

कुल मिलाकर 7% वस्तुऐ ऐसी है जिनपर किसी भी प्रकार का जीएसटी नही लगता मतलब कि 0%. जैसे कि सब्जियॉ, अनाज, बेसन, नमक आदि.

 

खाने-पीने की चीजों पर जीएसटी बहुत कम है तो वही शौक से सम्बन्धित चीजो पर जीएसटी 28% है, जैसे कि आप परफ्यूम या फैशवॉश जैसी कोई चीज खरीदते है तो आप 100 में से 28 रूपये अप्रत्यक्ष रूप सें सरकार को दे रहे होते है। औसतन जीएसटी 18% मानी जाती है।

कुछ लक्जरी कारों में जीएसटी की दर 40% तक भी पहुँच जाती है।

अब आप इस प्रकार समझिये के यदि आप महीने भर में 10000 का खर्चा करते है तो उसमें से औसतन 18% यानी 1800 रूपये सरकार को सिर्फ जीएसटी दे देते है।

जीएसटी के दायरे से कई सारी चीजो को अलग रखा गया है जैसे कि शराब, पेट्रोल, मादक पदार्थ. पेट्रोल और शराब पर तो आप उतना टैक्स देते है जितना कि पेट्रोल की असल कीमत नही होती। मोटेतौर पर मानकर चले तो पेट्रोल और शराब पर यदि आप 100 रूपये खर्च कर रहे है तो आप 50 से ज्यादा रूपये सरकार को दे रहे है।

सरकार इन रूपयो से ही गरीबों को कल्याण के लिए योजनाऐ लाती है और सबकुछ आपके इन टैक्स के पैसो से ही करती है।

अब बात करते है इनकम टैक्स की-

क्या सिर्फ 2.5% लोग ही इनकम टैक्स भरते है?

सिर्फ 2.5% लोग ही इनकम टैक्स भरते है यह आंकङा एक प्रकार से भ्रमित करनें वाला है, क्योकि इसका मतलब यह भी निकाला जा सकता है कि 97.5% लोग इनकम टैक्स की चोरी करते है या फिर 97.5% लोग ईमानदार नही है, जो कि पूरी तरह से गलत है। 

यह अर्धसत्य है, क्योकि इनकम टैक्स उन लोगो को भरना पङता है जिनको सरकार मानती है कि ये इतना कमा रहे है कि इनको टैक्स देना चाहिए। वर्तमान समय में 5 लाख वार्षिक आय पर किसी भी प्रकार का इनकम टैक्स नही देना पङता है।

एक और उदाहरण से यह जानने की कोशिश करते है कि क्या 2.5% ही इनकम टैक्स भरते है.

मान लेते है वर्तमान में भारत की जनसंख्या 140 करोङ है. इन 140 करोङ लोगो में से तकरीबन 70 करोङ लोग ऐसे है जो कि 25 वर्ष से कम है और किसी प्रकार की कमाई नही करते है। अब बचे 70 करोङ लोगो में से आधी महिलाएं है, जिनमें से अधिकतर घरेलू महिलाएं है जो कि घर के काम करती है, इनमें से बहुत सारी महिलाएं ऐसी होगी जो कि दूसरो के घरों पर काम करती होगी, कुछ दिहाङी पर काम करनें वाली महिलाऐ होगी तो कुछ छोटी मोटी फैक्ट्रियों पर काम करनें वाली महिलाऐ होगी। हालांकि कुछ महिलाऐं ऐसी जरूर होगी जो कि 5 लाख से ज्यादा कमाती होगी लेकिन उनकी संख्या का अनुमान आप स्वयं के आसपास देखकर स्वयं लगाइयें.

अब बचते है 140 करोङ लोगो में से सिर्फ 35 करोङ पुरूष जो कि 25 वर्ष से ज्यादा की आयु के है। इन 35 करोङ पुरूषों में से लगभग 17-18 करोङ कृषि पर निर्भर है, और कृषि पर किसी भी प्रकार का इनकम टैक्स देना नही पङता. इनमें से बहुत से किसान ऐसे भी होगे जिनकी जमीन बहुत ही कम होगी.

अब बचते है 17 करोङ अन्य पुरूष जो कि 25 साल से ऊपर है और कृषि पर निर्भर नही है, ऐसे पुरूषों में बहुत बङी संख्या में ऐसे व्यक्ति है जो कि दिङाडी पर काम करते है जो कि मजदूर, आटोरिक्शा चालक, इलेक्ट्रीशियन, नाई, प्लम्बर, मिल में काम करने वाले लेबर, होटल में काम करनें वाले व्यक्ति, सङक पर ठेला लगाने वाले व्यक्ति, दूधवाले, पेट्रोल पंप पर काम करने वाले और अन्य बहुत सारे व्यक्ति.

 इनकी संख्या निकाल दे तो तकरीबन 5-7 करोङ व्यक्ति ही ऐसे बचते है जो कि 5 लाख से ज्यादा सालाना कमाते है और टैक्स भरने की सीमा के अंतर्गत आते है।इतना सब कहने का आशय यह है कि भारत में इनकम टैक्स 2.5% व्यक्ति इसलिए भरते है क्योकि कुछ प्रतिशत लोग ही ऐसे है जो सालाना 5 लाख से ज्यादा कमा पाते है। ऐसे लोगो की संख्या 5% के आसपास होगी।

 यदि आप सरकारी या प्राइवेट कर्मचारी है और आपकी सैलरी अकाउंट के माध्यम से आती है और वह 5 लाख सालाना से ज्यादा है तो आप इनकम टैक्स से बच नही सकते, अगर आप बचने की कोशिश करते है तो आपके खिलाफ कङी कार्यवाही भी हो सकती है।

 

आपको आपकी आय के अनुसार कितना इनकम टैक्स देना पङता है इसकी जानकारी के लिए आप नीचे की तस्वीर देख सकते है-

Image Source-ReLakhs.com


मोटे तौर पर कहूँ तो यदि आप 15 लाख से ज्यादा एक साल में कमा रहे है तो आपको सरकार को 30% टैक्स देना पडेगा।

एक व्यापारी के तौर पर यदि आप 10 करोङ रूपये कमाते है तो तकरीबन आपको 5 करोङ सरकार को टैक्स के रूप में देना पङता है. (30% इनकम टैक्स व 18% जीएसटी, जीएसटी अप्रत्यक्ष रूप से आपसे और हमसे वसूली जाती है लेकिन इसको भरता व्यापारी ही है.)

ज्यादातर इनकम टैक्स की चोरी व्यापारी वर्ग करता है क्योकि यहां पर सरकार को सही से अनुमान नही लग पाता कि कितना पैसा व्यापारी कमा रहा है। इसीलिए सरकार ऑनलाइन बैकिंग प्रणाली या ऑनलाइन ट्रांजेक्शन पर ज्यादा जोर देती है। क्योकि इसके माध्यम से सरकार को यह पता चल जाता है कि व्यापारी कितना कमा रहा है और उस पर टैक्स दे रहा है या नही।

ऐसा धन जिसपर टैक्स दिया जाना चाहिए और उस पर टैक्स नही दिया जाता व अघोषित ही रखा जाता है, ऐसे धन को काला धन कहते है।

कुछ अन्य सवालो के जवाब जानने की कोशिश करते है-

क्या इनकम टैक्स देने वाले 2.5% लोग बाकी के 97.5% लोगो को पाल कर ही देश को चला रहे है?

इसका जवाब ना है, क्योकि आप जीएसटी अप्रत्यक्ष रूप से देते ही है, आप पेट्रोल और शराब जैसी चीजो पर जीएसटी से ज्यादा टैक्स देते है। व टोल टैक्स जैसे अन्य कई प्रकार के अप्रत्यक्ष कर देते है। यदि आप 5 लाख से कम कमा रहे है तो आप इनकम टैक्स को दायरे में आते ही नही।

अक्टूबर 2020 में सरकार को 1 लाख 5 हजार करोङ का राजस्व सिर्फ जीएसटी से प्राप्त हुआ है, अधिक जानकारी के लिए आप नीचे का ग्राफ देख सकते है जो कि वित्तमंत्रालय को वेबसाइट से लिया गया है।

सरकार को राजस्व इनकम टैक्स, जीएसटी और कॉरपोरेट टैक्स इन सबसे ही प्राप्त होता है तो इसमें ऐसी कोई बात नही है कि 2.5% इनकम टैक्स देने वाले लोग ही देश को पाल रहे है।

फरवरी 2020 से जनवरी 2021 तक का कुल जीएसटी कलेक्शन. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि अप्रैल, मई और जून जैसे कुछ महीने ऐसे है जब देश में लॉकडाउन था.


एक रिपोर्ट के मुताबिक सरकार को प्राप्त होने वाले हर 300 रुपये में से 200 रूपये इनडायरेक्ट टैक्स से ही प्राप्त होते है।

सिर्फ 2% ही इनकम टैक्स देते है बाकी के 98% व्यक्तियो को सरकार पालती है ऐसी बाते सोशल मीडिया पर वायरल क्यो होती है?

ऐसी खबरे अधिकतर राजनीतिक उद्देश्य के लिए भी वायरल की जाती है जिसमें लोगो को सही जानकारी नही होती, और पढने वाले को भी लगता है कि वह टैक्स नही दे रहा है और इस प्रकार वह स्वयं को इन मामलो से अलग कर लेता है. परन्तु असल में वह सब पैसा आपका ही होता है.

एक और बात जो अक्सर कहीं जाती है कि अमेरिका जैसे देशो में 50% लोग इनकम टैक्स देते है जबकि यहां सिर्फ 2.5% लोग, यहां के लोगो को बैठे-बैठे खाना चाहिए, टैक्स नही देना चाहते। इसका सीधा जवाब यही है कि वहां के लोग अमीर है वो इतना कमाते है कि सरकार द्वारा जारी इनकम की सीमा से ज्यादा उनकी इनकम है तो वो टैक्स देते है। भारत में भारत सरकार द्वारा जारी इनकम टैक्स की सीमा से ज्यादा की इनकम वाले ज्यादा व्यक्ति है ही नही तो इनकम टैक्स कहां से देगे।

अब आपको अनुमान लग चुका होगा कि आप कितना धन सरकार को टैक्स के रूप में देते है, कोरोना महामारी के फलस्वरूप यह बात विचारणीय जरूर है कि क्या आप जितना टैक्स देते है उतनी ही सेवाऐ आपको वापस मिली भी है या नही.

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